कविता संग्रह >> मेरे सात जन्म मेरे सात जन्मरामेश्वर कम्बोज
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मेरे सात जन्म...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ हिन्दी साहित्य के एक ऐसे लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार हैं, जिन्होंने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में सृजन किया है और पाठकों के हृदय में सुखद अहसास जगाने का सफल प्रयास किया। श्री काम्बोज की पहचान हिन्दी लघुकथा में श्रेष्ठ लघुकथाकार एवं तटस्थ समीक्षक के रूप में बनी हुई है और हाइकुकार के रूप में भी हाइकु के पाठक उन्हें न केवल भली-भाँति पहचानते हैं, अपितु उनके हाइकुओं से अगाध प्रेम भी रखते हैं। मैं स्वयं उनके हाइकुओं का पाठक हूँ और प्रशंसक भी हूँ।
जापान से लौटी हाइकु विधा 5, 7, 5 वर्णों की ऐसी त्रिपदीय रचना है, जो अपने हाइकुपन के कारण दिल में उतर जाती है; किन्तु केवल 5, 7, 5 वर्णों की कोई त्रिपदीय रचना हाइकु नहीं होती। हाइकु होने के लिए उसमें सूक्ष्म आवेग की अभिव्यक्ति एवं जीवन के अनुभूत सत्य की अभिव्यक्ति भी वांछित है। यह तुकान्त- अतुकान्त कैसा भी हो, कोई अन्तर नहीं पड़ता। हाइकु का प्रकृति के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध है, किन्तु जीवन के सच से हटकर कोई भी रचना स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सकती। श्री काम्बोज साहित्य के इस यथार्थ को भली-भांति समझते हैं; अतः उनका प्रत्येक हाइकु जीवन के सच से जुड़कर संवेदना के स्तर पर किसी भी पाठक के हृदय को बहुत सहजता से छू जाता है।
उनके हाइकु सांकेतिक होने के बावजूद भाव और अर्थ के स्तर पर स्वतः सम्प्रेषित हो जाते हैं और पाठक सहजता से कवि के उद्देश्य तक पहुँच बना पाने में समर्थ हो जाते हैं। इनके हाइकुओं की यही विशेषताएँ इन्हें अपने समकालीनों की प्रथम पंक्ति में खड़ा कर देती हैं। ‘मेरे सात जनम’ की अशेष सफलता हेतु मंगल कामनाएँ !
जापान से लौटी हाइकु विधा 5, 7, 5 वर्णों की ऐसी त्रिपदीय रचना है, जो अपने हाइकुपन के कारण दिल में उतर जाती है; किन्तु केवल 5, 7, 5 वर्णों की कोई त्रिपदीय रचना हाइकु नहीं होती। हाइकु होने के लिए उसमें सूक्ष्म आवेग की अभिव्यक्ति एवं जीवन के अनुभूत सत्य की अभिव्यक्ति भी वांछित है। यह तुकान्त- अतुकान्त कैसा भी हो, कोई अन्तर नहीं पड़ता। हाइकु का प्रकृति के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध है, किन्तु जीवन के सच से हटकर कोई भी रचना स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सकती। श्री काम्बोज साहित्य के इस यथार्थ को भली-भांति समझते हैं; अतः उनका प्रत्येक हाइकु जीवन के सच से जुड़कर संवेदना के स्तर पर किसी भी पाठक के हृदय को बहुत सहजता से छू जाता है।
उनके हाइकु सांकेतिक होने के बावजूद भाव और अर्थ के स्तर पर स्वतः सम्प्रेषित हो जाते हैं और पाठक सहजता से कवि के उद्देश्य तक पहुँच बना पाने में समर्थ हो जाते हैं। इनके हाइकुओं की यही विशेषताएँ इन्हें अपने समकालीनों की प्रथम पंक्ति में खड़ा कर देती हैं। ‘मेरे सात जनम’ की अशेष सफलता हेतु मंगल कामनाएँ !
- डॉ. सतीशराज पुष्करणा
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