गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम भगवन्नामस्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।
‘मायामें रह जाय बासना अजगर देह धरासी।'
रुपये-पैसोंमें वासना रह गयी तो साँप बनना पड़ेगा। धन साथमें नहीं चलेगा और यदि
भगवद्भजन कर लोगे तो वह साथमें चलेगा। वह असली पूँजी है- ‘राम नाम धन पायो प्यारा,
जनम जनमके मिटत बिकारा।'
‘पायो री मैंने राम रतन धन पायो।'
सन्तोंकी वाणीमें जहाँ गुरु महाराजकी महिमा गायी है, उसमें कहा है-“गुरुजी
महाराज बड़े दाता मिले। उन्होंने हमारेको भगवान्का नाम देकर धनवान् बना दिया-
‘धिन-धिन धनवंत कर दिया गुरु मिलिया दातार।' सज्जनो ! इसकी कीमत समझनेपर फिर
महिमा समझमें आती है। कि नाम कितना विलक्षण है। सन्त-महात्माओंसे जिनको नाम
प्राप्त हुआ है, वे लोग गुण गाते हैं। जो अच्छे-अच्छे महापुरुष हो गये हैं, वे
भी गुरुकी महिमा गाते हैं। किस बातको लेकर ? कि महाराजने हमारेको भगवान्का नाम
दे दिया।जनम जनमके मिटत बिकारा।'
‘पायो री मैंने राम रतन धन पायो।'
उस नामसे क्या-क्या आनन्द होता है, उसका कोई पारावार नहीं। नाम महाराजकी अपार महिमा है, असीम महिमा है। गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज सीतारामजीको इष्ट मानते हैं और वे उनके अनन्य भक्त हैं; परन्तु नामकी महिमा गाते हुए वे कहते हैं- “कहाँ कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई’ ॥ नामकी महिमा मैं कहाँतक कहूँ, भगवान् राम भी नामकी महिमा कह सकते नहीं। अपने इष्टको भी असमर्थ बता देते हैं। अर्थात् इस नामकी महिमाके विषयमें हमारे श्रीरघुनाथजी भी असमर्थ हैं। भाई, नामकी महिमा यहाँतक है, यहाँतक है, ऐसा कहनेमें भगवान् भी असमर्थ हैं। अपने इष्टको भी असमर्थ बता देना क्या तिरस्कार नहीं है ? नहीं, नहीं, आदर है। कैसे ? इस नामकी इयत्ता (सीमा) है ही नहीं कि भाई, इसकी इतनी-इतनी महिमा है। नामकी तो अपार असीम महिमा है। वह नाम हर समय लिया जा सकता है। काम-धन्धा करते हुए, उठतेबैठते, सोते-जागते, खाते-पीते आदि हर समयमें भगवान्को नाम लिया जा सकता है। चैतन्य महाप्रभु कहते हैं-भगवान्ने नाममें अपनी पूरी-की-पूरी शक्ति (महिमा) रख दी है और इसमें विलक्षणता यह है कि इसके लेनेमें कोई समय नहीं बाँधा गया है कि अमुक समयमें नाम ले सकते हो, उसके सिवाय नहीं, प्रत्युत भगवान्ने तो नाम लेनेमें सब समय छूट दे रखी है। नामको तो सुबह, शाम, दोपहर, रात्रि–हर समय ले सकते हैं-
नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्ति-
स्तत्रार्पितानियमितः स्मरणे न कालः।
एतादृशी तव कृपा भगवन्समापि
दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः॥
कई लोग कहते हैं कि क्या करें, हमारे नाम लेना लिखा नहीं है। सज्जनो ! अभी
नाम-जप करके नाम लिखा लो, इसमें देरीका काम नहीं है। इसका दफ्तर हर समय खुला
है, कभी करो। दिनमें, रातमें, सुबहमें, शाममें, सम्पत्तिमें, विपत्तिमें,
सुखमें, दुःखमें आप भगवान्का नाम लें तो स्तत्रार्पितानियमितः स्मरणे न कालः।
एतादृशी तव कृपा भगवन्समापि
दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः॥
अभी लिखा जायगा और नामकी पूँजी हो जायगी। अब नामको भूल न जायें, इसका ख्याल रखना है। उसके लिये एक उपाय बतायें। आपलोग ध्यान देकर सुनें। आपलोग मन-ही-मन भगवान्को प्रणाम करके उनसे यह प्रार्थना करें-“हे नाथ ! मैं आपको भूलू नहीं, हे प्रभो ! आपको मैं भूलें नहीं’—ऐसा मिनट-मिनट, आधे-आधे मिनटमें आप कहते रहो। नींद खुले तबसे लेकर गाढ़ी नींद न आ जाय तबतक ‘हे प्रभो ! आपको मैं भूलू नहीं।' ऐसा कहते रहो। राम-राम-राम कहते हुए साथमें कह दें-‘हे नाथ ! मैं भूलूँ नहीं।'
जब आप राम-राम-राम कह रहे हैं, राम-राम-राम कहते हुए भी मनसे दूसरी बात याद आ जाती है, उस समय हम भगवान्को भूल जाते हैं तो भगवान्से कहो–‘हे नाथ ! मैं भूलू नहीं, हे प्रभो ! भूलू नहीं। हे नाथ ! मैं आपका नाम लेता रहूँ और आपको भूलू नहीं। भगवान्से ऐसी प्रार्थना करते रहो तो भगवान्की कृपासे यह भूल मिट जायगी। भजन होने लगेगा। फिर अखण्ड भजन होगा, अखण्ड ! 'ताली लागी नामसे और पड्यो समॅदसे सीर’ भगवान्के नामकी धुन लग जायगी। फिर आपको भीतर स्मरण करनेका उद्योग नहीं करना पड़ेगा। स्वतः ही भगवान्की कृपासे भजन चलेगा। परन्तु पहले आप नाम लेनेकी चेष्टा करो और भगवान्से प्रार्थना करो।
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