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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम

भगवन्नाम

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 914
आईएसबीएन :81-293-0777-4

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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।

Bhagvannam -A Hindi Book by Swami Ramsukhdas - भगवन्नाम - स्वामी रामसुखदास

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भगवन्नाम नाम-महिमा

राम राम राम....
एक भी श्वास खाली खोय ना खलक बीच,
कीचड़ कलंक अंक धोय ले तो धोय ले;
उर अँधियारो पाप-पुंज सों भरी है देह,
ज्ञान की चराखाँ चित्त जोय ले तो जोय ले।
मानखा जनम फिर ऐसो ना मिलेगा मूढ़,
परम प्रभुजी से प्यारो होय ले तो होय ले;
छिन भंग देह ता में जनम सुधारिबो है,
बीज के झबाके मोती पोय ले तो पोय ले।।

भाई-बहिनों ने पैसों को बहुत कीमती समझा है। पैसा इतना कीमती नहीं है, जितना कीमती हमारा समय है। मनुष्य-जन्म का जो समय है, वह बहुत ही कीमती है। मनुष्य-जन्म के समय को देकर हम मूर्ख से विद्वान बन सकते हैं। समय को देकर हम धनी बन सकते हैं। समय को लगाने पर एक आदमी के परिवार के सैकड़ों लोग हो जाते हैं। समय को लगाकर हम संसार में मान, आदर, प्रतिष्ठा आदि प्राप्त कर सकते हैं; बहुत बड़ी जमीन-जायदाद आदि को अपने अधिकारों में कर सकते हैं समय लगने से स्वर्गादि लोकों की प्राप्ति हो सकती है। इतना ही नहीं, मनुष्य-शरीर का समय लगाने से हो जाय परमात्मतत्व की प्राप्ति, जिसके बाद प्राप्त करना कुछ बाकी न रहे। इस प्रकार समय लगाकर सांसारिक सब चीजें प्राप्त हो सकती हैं; परन्तु सब-की-सब चीजें, रुपये-पैसे आदि देने पर भी जीने का समय नहीं मिलता।



।। श्रीहरिः ।।
भगवन्नाम नाम-महिमा

राम राम राम.....

एक भी श्वास खाली खोय ना खलक बीच,
कीचड़ कलंक अंक धोय ले तो धोय ले;
उर अँधियारो पाप-पुंज सों भरी है देह,
ज्ञानकी चराखाँ चित्त जोय ले तो जोय ले।
मानखा जनम फिर ऐसो ना मिलेगा मूढ़,
परम प्रभुजीसे प्यारो होय ले तो होय ले;
छिन भंग देह ता में जनम सुधारिबो है,
बीजके झबाके मोती पोय ले तो पोय ले।

भाई-बहिनों ने पैसों को बहुत कीमती समझा है। पैसा इतना कीमती नहीं है, जितना कीमती हमारा समय है। मनुष्य-जन्मका जो समय है, वह बहुत ही कीमती है। मनुष्य-जन्मके समयको देकर हम मूर्खसे विद्वान् बन सकते हैं। समयको देकर हम धनी बन सकते हैं। समय लगनेपर एक आदमीके परिवारके सैकड़ों लोग हो जाते हैं। समयको लगाकर हम संसारमें मान, आदर, प्रतिष्ठा आदि प्राप्त कर सकते हैं; बहुत बड़ी जमीन-जायदाद आदिको अपने अधिकारमें कर सकते हैं। समय लगनेसे स्वर्गादि लोकोंकी प्राप्ति हो सकती है। इतना ही नहीं, मनुष्य-शरीरका समय लगानेसे हो जाय परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति, जिसके बाद प्राप्त करना कुछ बाकी न रहे। इस प्रकार समय लगाकर सांसारिक सब चीजें प्राप्त हो सकती हैं, परन्तु सब-की-सब चीजें, रुपये-पैसे आदि देनेपर भी जीनेका समय नहीं मिलता।

जैसे, आपने सत्तर-पचहत्तर वर्षोंकी उम्रमेंसे साठ वर्ष रुपये कमानेमें लगाये, साठ वर्षों में बहुत जमीन-जायदाद इकट्ठी कर ली, मकान बना लिये, बहुत सम्पत्ति इकट्ठी कर ली। अब उस सम्पत्तिको पीछे देकरके अगर हम साठ घंटे भी और जीना चाहें तो जी सकते हैं क्या ? इसमें थोड़ा-सा विचार करें। जिस सम्पत्तिके संग्रहमें साठ वर्ष खर्च हुए, उस सम्पूर्ण सम्पत्तिको देकर हम साठ घंटे भी खरीद सकते हैं क्या ? एक वर्षकी कीमतमें हम एक घंटा भी लेना चाहें तो नहीं मिल सकता । जिस पूँजीके बटोरनेमें एक वर्ष लगा, उस पूँजीके बदलेमें एक मिनट और साठ वर्षकी पूँजीसे साठ मिनट लेना चाहें तो नहीं मिल सकते तो हमारा समय बरबाद हो गया न ?

वैश्य भाई ऐसा व्यापार नहीं करते कि जिसमें पूँजी तो लग जाय और पीछे कौड़ी एक बचे नहीं। व्यापारमें तो कुछ-न-कुछ पैदा होना ही चाहिये, परन्तु इधर साठ वर्षोंकी उम्रमें जितनी पूँजी इकट्ठी की, उसके बदलेमें साठ महीने मिल जायँ, साठ दिन मिल जायें तो भी बारहवाँ अंश तो मिला; परन्तु साठ दिन तो दूर रहे साठ घंटा, साठ मिनट भी नहीं मिलते और समय हमारा लग गया साठ वर्षका, तो हम बहुत घाटेमें चले गये। बहुत क्या, केवल कोरा घाटा-ही-घाटा।

आज दिनतकके समयमें हमने जो संग्रह किया है, उस संग्रहके बदलेमें हमारा गया हुआ समय मिलेगा क्या ? नहीं मिलेगा। ऐसे समय बरबाद न हो, इसके लिये आजसे ही विशेषतासे सावधान हो जायें। हम विशेष सावधान तभी हो सकते हैं, जब निर्णय करके आयें कि हम क्या चाहते हैं। यदि हम रुपये-पैसे चाहते हैं, मान-बड़ाई चाहते हैं, नीरोगता चाहते हैं, सदा जीते रहना चाहते हैं तो ये सब बातें कभी नहीं हो सकतीं, असम्भव हैं।

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