सामाजिक >> चीलवाली कोठी चीलवाली कोठीसारा राय
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चीलवाली कोठी...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अपने काव्य के लिए भाषा और शिल्प की रचना करनेवाली लेखिका हैं सारा राय ! सारा राय की यह कृति एक उपन्यास होते हुए भी अपने कथ्य के वितान में एक महाकाव्य जैसी विशिष्टता समेटे हुए है जिसमें अतीत और भविष्य साथ-साथ वर्तमान में घटित हो रहे होते हैं ! यह घटित होना भारतीय सामंतवादी ढूह पर एक लड़की यानी एक स्त्री का वह सच है जिसके प्रकृति और मनुष्य दोनों गवाह हैं, फिर भी सच ऐसा रंग बदलता रहता है कि झूठ भी अपनी भूमिका में हर बार एक संजाल बन जाता है ! उपन्यास में मीनाक्षी और विक्रम के बीच की जमीन प्रेम की वह जमीन है जहाँ प्रवृति हारती है और चेतना में वह युग हावी रहता है जो न ठीक से जीने देता है और न मरने; बस रिश्ते रिश्ते हैं और रिश्ते रिश्ते वह निर्माण नहीं कर पाते, जिसे निर्माण कहा जा सके ! अपने अनिर्णय-द्वन्द में सनद ढूंढते दृश्य परंपरा, संस्कृति, सभ्यता और ज्ञान, विज्ञान, दर्शन की इस दुनिया में नाकाम प्रतीत होते हैं ! इन्ही नाकामियों में चेतना-धार की तलाश है यह उपन्यास जिसकी जिम्मेवारी अपने विखंडन में एक स्त्री लेती है ! इस उपन्यास की नायिका अपने अनाथ होने, गोद लिए जाने के बाद ‘आरंभ’ और ‘युग-दर-युग’ को जिन व्यतीत-अनव्यतीत क्षणों में सृजन का तत्त्व रचती है, उससे स्त्री-विमर्श हो या दलित-विमर्श-समय एक कदम आगे घटित होता है-और मिथक ध्वस्त होते हैं, सत्ताएँ हिलती हैं ! ‘चीलवाली कोठी’ कलम के ‘विजन’ और ‘मिशन’ का उदाहरणों में एक उदहारण है !
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