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आध्यात्मिक >> पाञ्चजन्य

पाञ्चजन्य

गजेन्द्र कुमार मिश्र

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :443
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9103
आईएसबीएन :9788183616874

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पाञ्चजन्य...

Panchjanya - A Hindi Book by Gajendra Kumar Mishra

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पांचजन्य श्रीकृष्ण इतनी देर तक चुपचाप ये भावावेग भरी बातें सुनते रहे, अब अर्जुन की बातें पूरी होते ही गम्भीर तथा कठोर वाणी में बोले, ‘‘गांडीवी ! यह दर्प तुममें कैसे जन्मा कि यह युद्ध तुम कर रहे हो ? तुम क्या हो ? विश्व-सृष्टि के अनन्त विस्तार के विषय में सोचकर देखता हूँ - तो उसकी तुलना में क्षुद्रातिक्षुद्र कीट मात्रा, कीटानुकीट - क्या नहीं ? सुनो, ये जो अगणित सैनिक देख रहे हो - ये साधारण मनुष्य हैं, ये अपने सगे सम्बन्धियों, पुत्रा-कन्या को छोड़कर आए हैं, क्या ये सबके सब केवल वेतन की आशा अथवा लूट करने की लालच में आए हैं ? नहीं, ऐसा नहीं है। ये जानते हैं कि राजाओं के घृणित लोभ, आधारहीन काल्पनिक उच्चाकांक्षाओं, मात्सर्य, अहंकार आदि के कारण साधारण नर-नारी कैसी अवर्णनीय दुर्दशा भोग रहे हैं। वे आए हैं इस आशा में कि वह अवस्था समाप्त हो जाएगी। वर्तमान शासन-व्यवस्था में हर तरह से उच्च पदाधिकारियों के लिए ही सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ हैं। शासन-व्यवस्था के शक्ति-दर्प रूपी रथ के पहियों के नीचे लोग लगातार पिस रहे हैं; उस यन्त्राणा को यह राजा - तुम जिन्हें भारत रूपी कानन का पुष्प समझ रहे हो, दूर कल्पना में भी अनुभव नहीं कर पाएँगे। जब एक राजा दूसरे राजा के विरुद्ध युद्ध-यात्रा पर निकलता है - तब दो देशों के या जिस क्षेत्रा से गुजरकर जाना होता है, उसके निवासियों पर कितना अत्याचार होता है, कभी उसके बारे में सोचकर देखा है ? इस युद्ध का आयोजन न तुम्हारा है, न कौरवों का - यह आयोजन किसी ऐसी विराट् शक्ति का है, जिसे ईश्वरीय शक्ति कहा जाता है। अब उसका धैर्य चुक गया है। एक समय, साधारण, भाग्य द्वारा प्रताड़ित, शक्तिशाली द्वारा छला गया, सब तरह निहत्था, सहाय-सम्बलहीन व्यक्ति भी महादाम्भिक; शक्ति-मद में डूबी राज्य-सत्ता को नष्ट करके धर्म-राज्य की स्थापना कर सकता है - इस सम्भावना के प्रति सबको सचेत करने, सबकी आँखें खोलने के लिए ही इतना आयोजन किया गया है।

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