लोगों की राय

अतिरिक्त >> जानकीदास तेजपाल मैनशन

जानकीदास तेजपाल मैनशन

अलका सरावगी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9084
आईएसबीएन :9788126727735

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

14 पाठक हैं

जानकीदास तेजपाल मैनशन...

Jaankidas Tejpal Mansion - A Hindi Book by Alka Saraogi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

जानकीदास तेजपाल मैनशन जो सतह पर दिखता है, वह अवास्तविक है। कलकत्ता के सेंट्रल एवेन्यू पर ‘जानकीदास तेजपाल मैनशन’ नाम की अस्सी परिवारों वाली इमारत सतह पर खड़ी दिखती है, पर उसकी वास्तविकता मेट्रो की सुरंग खोदने से ढहने और ढहाए जाने में है। अंग्रेजी में एक शब्द चलठ्ठता है ‘अंडरवर्ल्ड’, जिसका ठीक प्रतिरूप हिन्दी में नहीं है। अंडरवर्ल्ड गैरकानूनी ढंग से धन कमाने, सौदेबाजी और जुगाड़ की दुनिया है। इस दुनिया के ढेर सारे चरित्र हमारे जाने हुए हैं, पर अक्सर हम नहीं जानते कि वे किस हद तक हमारे जीवन को चलाते हैं और कब हमें अपने में शामिल कर लेते हैं। तब अपने बेदखल किए जाने की पीड़ा दूसरों को बेदखल करने में आड़े नहीं आती। जयगोविन्द 1970 के दशक में अमेरिका से पढ़कर कलकत्ता लौट आया एक कम्प्यूटर इंजीनियर है। वह अपना एक जीवन जयदीप के रूप में अपने अधूरे उपन्यास में जीता है, तो दूसरा जीवन नक्सलबाड़ी आन्दोलन से लेकर भारत के एक बड़े बाजार में बदलने या ‘नेशन स्टेट’ से ‘रीयल इस्टेट’ बनने के यथार्थ में। विडम्बना यह नहीं है कि जयगोविन्द का जीवन जयदीप से असम्पृक्त है; बल्कि यह है कि दोनों को अलग करना मुश्किल है। फर्क इतना भर है कि एक वस्तुनिष्ठ आत्मकथा लिखने की कोशिश में बार-बार अपने को बचाने की मुहिम चली आती है, जो अपने ही लिखे को नहीं मानती। इसी क्रम में आजादी के बाद इस देश की जवान हुई पहली पीढ़ी को मिले धोखे और नाकाम ‘सिस्टम’ की दास्तानें अमेरिका के वियतनाम-युद्ध से लेकर विकीलीक्स के धोखे तक फैली हैं। ‘अमेरिका’ इस उपन्यास में एक ‘मोटिफ’ की तरह है जिसमें विस्थापन के कई स्तर हैं-वहाँ कुछ साल बिताकर लौटा जयदीप है जो न इधर का है न उधर का; उसके एन.आर.आई. मित्र हैं जो इंफेक्शन के डर से इंडिया नहीं आते; वे हैं जो लौटने के लिए तड़प रहे हैं; उसका बेटा रोहित है जो इंडिया को चिड़ियाघर कहता है। सड़क पर गुजरती हर बस के साथ हिलता ‘जानकीदास तेजपाल मैनशन’ एक नया अर्थ-संकेत है-पूरे देश का, जिसका ढहाया जाना तय है। राजनीति, प्रशासन, पुलिस और पूँजी के बीच बिचौलियों का तंत्र सबसे कमजोर को सबसे पहले बेदखल करने में लगा हुआ है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book