अतिरिक्त >> खट्टे नहीं अंगूर खट्टे नहीं अंगूरचन्द्रकिशोर जायसवाल
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खट्टे नहीं अंगूर...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘खट्टे नहीं अंगूर’ चन्द्रकिशोर जायसवाल की कहानियों का प्रतिनिधि संग्रह है, जिसमें उनकी चौदह कहानियाँ हैं। हर कहानी का अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व है, मगर कहानियों की पृष्ठभूमि उनका अपना घर-गाँव ही है, जहाँ से उनका गहरा रागात्मक लगाव है।
जायसवाल भाषा का कोई नया प्रयोग नहीं करते और न ही उनमें शिल्प-साधने का विशेष आग्रह है, मगर कहानियों की विषय-वस्तु ज़्यादातर उन इलाक़ों से है, जहाँ पर भारतीय समाज की वर्गीय चेतना बेहद जटिल संरचना के साथ मौजूद दिखाई देती है।
प्रेम, घृणा, करुणा, संवेदना, सामाजिक जीवन के स्थायी भाव हैं और लेखक उन पर शोधपरक दृष्टि अख्तियार करते हुए कथा-विन्यास का अनुर्वर भूखंड खोज निकालता है। इतना ही नहीं कथाकार पूरी सजगता के साथ गाँव-घर के अन्तर्विरोधों और वहाँ की विडम्बनाओं को उजागर करता चलता है। चन्द्रकिशोर जायसवाल निःसन्देह ऐसे कथागो हैं, जिनको रेणु की कथा-भूमि पर खड़ा हुआ देखा जा सकता है।
जायसवाल भाषा का कोई नया प्रयोग नहीं करते और न ही उनमें शिल्प-साधने का विशेष आग्रह है, मगर कहानियों की विषय-वस्तु ज़्यादातर उन इलाक़ों से है, जहाँ पर भारतीय समाज की वर्गीय चेतना बेहद जटिल संरचना के साथ मौजूद दिखाई देती है।
प्रेम, घृणा, करुणा, संवेदना, सामाजिक जीवन के स्थायी भाव हैं और लेखक उन पर शोधपरक दृष्टि अख्तियार करते हुए कथा-विन्यास का अनुर्वर भूखंड खोज निकालता है। इतना ही नहीं कथाकार पूरी सजगता के साथ गाँव-घर के अन्तर्विरोधों और वहाँ की विडम्बनाओं को उजागर करता चलता है। चन्द्रकिशोर जायसवाल निःसन्देह ऐसे कथागो हैं, जिनको रेणु की कथा-भूमि पर खड़ा हुआ देखा जा सकता है।
के बोल कान्ह गोआला रे !
गाँव में जब कभी आते हैं गवैयाजी, उनके आने की खबर बभनटोली के घरों में कानोंकान पहुँच जाती है। साल में बहुत बार आना होता भी तो नहीं उनका, किसी एक गाँव में दो-तीन बार से अधिक नहीं। गँवई की बात छोड़े, तब भी इलाके में ढेर सारे बड़े गाँव हैं जहाँ उनका जाना होता है। गीतों के रसिया किस गाँव में नहीं हैं ! और विद्यापति के गीतों को सुनने के लिए तो बभनटोली की ललनाएँ मार करती हैं। इन ललनाओं के कंठ में ढेर सारे पर्व-त्योहारों के गीत हैं जिन्हें वे गाती रहती हैं, पर विद्यापति के श्रृंगारिक गीत उन्हें गवैयाजी के कंठ से ही सुनना अधिक भाता है।
हमेशा ऐसा नहीं होता कि उनका दौरा अपने कार्यक्रम के अनुसार ही होता है, कभी-कभी उन्हें किसी गृहस्थ के आमन्त्रण पर भी कहीं जाना पड़ सकता है। ऐसा तब होता है जब किसी विशिष्ट अतिथि या जामाता आदि के स्वागत के समय इन्हें गीत गाने के लिए बुलाया जाता है। तब गवैयाजी अतिथि की अभ्यर्थना करते हुए उन्हें शिव या कृष्ण जैसे किसी देवता के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। अतिथि कितना भी अनाम या गुणहीन क्यों न हो, गाया जाता है,
हमेशा ऐसा नहीं होता कि उनका दौरा अपने कार्यक्रम के अनुसार ही होता है, कभी-कभी उन्हें किसी गृहस्थ के आमन्त्रण पर भी कहीं जाना पड़ सकता है। ऐसा तब होता है जब किसी विशिष्ट अतिथि या जामाता आदि के स्वागत के समय इन्हें गीत गाने के लिए बुलाया जाता है। तब गवैयाजी अतिथि की अभ्यर्थना करते हुए उन्हें शिव या कृष्ण जैसे किसी देवता के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। अतिथि कितना भी अनाम या गुणहीन क्यों न हो, गाया जाता है,
स्रवन सुनिअ तुअ नाम रे।
जगत विदित सब ठाम रे।
लिखि न सकथि तुअ गून रे।
कहि न सकथि तुअ पून रे।
बदन बिलोकिअ तोर हे।
ससि जनि निरखु चकोर हे।
जब किसी अतिथि या जामाता को चमचमाने के लिए गवैयाजी का बुलावा नहीं होता और वे अपने कार्यक्रम के अनुसार पधारे होते हैं, तब भी गाँव में उनके प्रवेश की खबर नाच क्यों न गयी हो और जिस दरवाजे की ओर गवैयाजी बढ़ रहे हों उसके आँगन में औरतों का जुटाव क्यों न हो गया हो, ऐसा नहीं होता कि गवैयाजी दरवाजे पर आकर धड़धड़ाते हुए आँगन में घुस जाएँ बेसब्र हो रही ललनाओं को गीत सुनाने।
उन्हें दरवाजे पर रुकना-ठहरना होता है, हाल-चाल पूछना-बताना होता है, और वहाँ बैठे मरदों को गीत सुनाने पड़ते हैं। मगर अकसर ये यहाँ से छुट्टी पा लेते हैं दो-चार नचारी गाकर,
एलौं सब मिलि शिब दरबार
सुन लिय शिब मोर करुण पुकार
आनक बेरि छी अधम उधार
हमरहि बेरि किए एहन बिचार
अहींक हाथ सब गति सरकार
बिसरिय जनु शिब करिय उधार
औरतों की भीड़ में रसीले और श्रृंगारिक गीतों को सुनने के लिए सिर्फ गाँव की गदराई गुलाबी धनिया ही नहीं होतीं, वे कुँवारियाँ भी आती हैं जो अभी- अभी जवान हुई हैं...
शैशव छल नव जउवन भेल
श्रवणक पथ दुहूँ लोचन लेल।
वचनक चातुरि लहु-लहु हास
धरणिए चान्द करइ परकास।
मुकुर लेइ अब करइ सिंगार
सखि ठामे पूछइ सुरत-विहार।
जौवन सैसब खेदए लागल
छाड़ि देह मोर ठाम।
एत दिन रस तोहे बिरसल
अबहु नहि विराम।
बालाजोबन का क्या दोष ? भनइ कि इस बाला को कामदेव ने पंचवाण मार दिया है।