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नकली नाक

नीलाभ

प्रकाशक : हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8995
आईएसबीएन :9788172238858

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जासूसी दुनिया का एक महत्वपूर्ण उपन्यास...

Diler Mujrim - Hindi Book by Neelabh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दो शब्द

यह इब्ने सफ़ी की ख़ूबी ही कही जायेगी कि उन्होंने अनुवादों और रूपान्तरों में फँसी इस परम्परा को मौलिकता की आज़ाद फ़िज़ा मुहैया करायी। शुरू-शुरू में अलबत्ता इब्ने सफ़ी पर विदेशी उपन्यासों का असर था; मिसाल के लिए, उनका पहला उपन्यास ‘दिलेर मुजरिम,’ जो मार्च १९५२ में प्रकाशित हुआ, विक्टर गन की अंग्रेज़ी कहानी ‘आयरनसाइड्स लोन हैण्ड’ पर आधारित है। इसी तरह ‘पहाडों की मलिका’ पर राइडर हैगर्ड के मशहूर उपन्यास किंग सॉलोमन्स माइन्ज़’ का असर है। उन्होंने अपने उपन्यास ‘ज़मीन के बादल’ की भूमिका में स्वीकार भी किया -

‘दिलेर मुजरिम का प्लॉट मैंने अंग्रेज़ी से लिया था, लेकिन फ़रीदी और हमीद मेरे अपने किरदार थे। मैंने उस कहानी में कुछ ऐसी दिलचस्पियों का इज़ाफ़ा भी किया था जो मूल प्लॉट में नहीं थीं। इसके अलावा ‘जासूसी दुनिया’ में ऐसे उपन्यास और भी हैं, जिनके प्लॉट मैंने अग्रेज़ी से लिये थे, मसलन ‘रहस्यमय अजनबी,’ ‘नर्तकी का क़त्ल,’ ‘हीरे की खान’ ‘ख़ूनी पत्थर।’ एक हंगामे वाला किरदार, ‘प्रोफ़ेसर दुर्रानी, अंग्रेज़ी से आया है। सिर्फ़ किरदार। कहानी मेरी अपनी है। इसी तरह ‘पहाड़ों की मलिका’ का बनमानुस और गोरी मलिका भी अंग्रेज़ी से आये हैं। लेकिन प्लॉट मेरा अपना है। इमरान के सारे उपन्यास बेदाग़ हैं।’’

इन शुरुआती उपन्यासों के बाद इब्ने सफ़ी ने अपनी मौलिक डगर पकड़ ली। पढ़ने-लिखने का शौक इब्ने सफ़ी को शुरू ही से था और सिर्फ़ शायरी और उपन्यास-कहानियाँ ही नहीं, बल्कि हर तरह के विषयों की किताबें, लिहाज़ा यह सारी जानकारी उनके उपन्यासों को और भी दिलचस्प और रोमांचक बनाने में मददगार साबित हुई। ‘तिलिस्मे-होशरूबा’ और राइडर हैगर्ड के अंग्रेज़ी उपन्यासों ने अगर उनकी कल्पना शक्ति को एड़ लगायी, तो उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेज़ी की दूसरी मशहूर किताबों ने उनकी भाषा-शैली को चमकाया।

कल्पना और जानकारी के इसी घोल से इब्ने सफ़ी ने अपने यादगार जासूसी उपन्यासों का लिबास तैयार किया। कई क़िस्से और किरदार तो चुनौती की तरह आये, मसलन जाबिर जो ‘ख़तरनाक बूढ़ा’ के अन्त में फ़रीदी के हाथ से फिसल कर निकल भागा था। इसी जाबिर से ‘नक़ली नाक’ में हम दोबारा रू-ब-रू होते हैं और जैसा कि इब्ने सफ़ी ने उपन्यास की भूमिका में लिखा -

यह उपन्यास एक चैलेंज के साथ लिखा गया है। इसका केन्द्रीय पात्र जाबिर सिर्फ़ डाकू ही नहीं, ब्लैक मेलर, ख़ूनी और साथ-ही-साथ बड़ी सूझ-बूझ वाला आदमी और साइन्सदान है।

क़दम-क़दम पर आपको ऐसी बातें मिलेगी कि आप काँप-काँप उठेंगे। नंगी लाशों का छत से टपकना, पाँच हज़ार कबूतरों का ख़ून, फ़रीदी से नवाब रशीदुज़्ज़ुमाँ कही दुश्मनी और ‘रहस्यमय कुआँ’ का अजीबो-ग़रीब बूढ़ा तारिक़-यह सब आपको इसी उपन्यास में मिलेगा ! एक और बड़े मज़ेदार आदमी कुँवर ज़फ़र अली ख़ाँ जो हमेशा रहस्य से घिरा रहता है। और जाबिर का अंजाम...वह कौन था ?...क्या करता था ?...क्यों करता था ? -इन सारे सवालों का जवाब यह उपन्यास ‘नक़ली नाक’ देगा।

और आख़िर में, आपका चहेता इन्स्पेक्टर फ़रीदी इस बार आपको तरह- तरह की मुसीबतों में घिरा दिखायी देगा। शायद यह पहली बार होगा कि इतने ज़बर्दस्त सुराग़रसाँ को जाबिर लड़कों की तरह खेलाता है !

‘नक़ली नाक’ बिला शक इब्ने सफ़ी के उन उपन्यासों में शामिल है जिसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं होगी और वह आज भी आपको लुभायेगा। आज़मा कर देखिए। इन्स्पेक्टर फ़रीदी के पसन्दीदा मुहावरे में कहें तो न घोड़ा दूर, न मैदान।

- नीलाभ

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