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कविता संग्रह >> मिटने वाली रात नहीं

मिटने वाली रात नहीं

आनन्द विश्वास

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8987
आईएसबीएन :9788128838163

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‘मिटने वाली रात नहीं’ में ढेर सारी अच्छी कविताओं में से कुछ चुनिन्दा अच्छी कविताओं का संकलन है...

Mitne Wali Raat Nahin - Anand Vishwas

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तावना


‘मिटने वाली रात नहीं’ हाँ, सच है, रात कभी भी मिटने वाली नहीं है। रात है, तभी तो दिन का महत्त्व है। अँधकार है तभी तो प्रकाश का एहसास होता है। दुख से ही तो सुख की अनुभूति होती है। बुराई से ही तो अच्छाई का ज्ञान हो पाता है। रावण ही तो था, जिसके कारण हम राम के महत्त्व और आदर्शों को समझ पाए। कंस और दुर्योधन के अस्तित्व ने ही तो हमें गीता का ज्ञान और आदर्श दिया।

मानव-मन तो सागर से भी अधिक गहरा होता है, इस घट में विष और अमृत दोनों का वास होता है। विष को विषपायी बन कर पी जाना और अमृत-कलश को जग में बाँट देना ही तो कवि का परम लक्ष्य होता है।

बस, प्रकाश-अँधकार, सुख-दुख, दिन-रात, सूरज-चंदा, विष-अमृत आदि के प्रतीकात्मक कोमल स्पर्शों के माध्यम से मानव-मन की पीड़ा को व्यक्त किया गया है। झोपड़ी की पीड़ा और आँख का आँसू सदैव असहनीय रहा है। दर्द और पीड़ा ने सदैव लिखने को बाध्य किया है। कभी दर्द की उपमा, कभी दर्द की प्रतिमा तो कभी दर्द का पलना बन, सुख-दुख के पलने में झूला हूँ।

‘मिटने वाली रात नहीं’ में, मैंने ढ़ेर सारी अच्छी कविताओं में से कुछ चुनिन्दा अच्छी कविताओं का संकलन किया है, जो सभी वर्ग के पाठकों के लिये उपयोगी सिद्ध होंगी।

इस संग्रह में एक ओर तो अपने नन्हें-मुन्ने बच्चों के लिये प्रेरणा दायी एवं शिक्षात्मक कविताएं हैं, तो दूसरी और युवावर्ग का पथ-प्रदर्शन और नई दिशा। कुछ कर गुजरने का संकल्प।

संघर्ष, जीवन का पर्याय है, इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। संघर्षों में जम कर जीने का आह्वान है तो मेहनत का मधुरस पीने का निमंत्रण भी। जीवन जीने की कला, अपने दायित्व के प्रति समर्पण, मन की निर्मलता ही नहीं बल्कि धन भी निर्मल हो, शुद्ध हो। संयम, निष्ठा और शुद्ध-कर्म की प्रेरणा।

मानव-मन को झंकृत कर सके तथा कुछ सोचने के लिये विवश करे। ऐसे प्रश्न भी कविता के माध्यम से उठाये गये हैं। समाज की बौनी मान्यताओं के प्रति विद्रोही स्वर, शासन में व्याप्त असंतोष से मैं अपने आप को बचा नहीं सका। अस्तु।

- आनन्द विश्वास

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