रहस्य-रोमांच >> सीक्रेट एजेंट सीक्रेट एजेंटसुरेन्द्र मोहन पाठक
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मेरा नवीनतम उपन्यास ‘सीक्रेट एजेंट‘ आपके हाथों में है....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मेरा नवीनतम उपन्यास ‘सीक्रेट एजेंट‘ आपके हाथों में है। क्रॉनोलाजिकल रिकार्ड के लिये उद्धृत है कि प्रस्तुत उपन्यास पॉकेट बुक्स में प्रकाशित मेरी अब तक की कुल रचनाओं में 285वां और थ्रिलर्स में साठवां है। प्रस्तुत उपन्यास के हीरो नीलेश गोखले से बतौर करप्ट कॉप आप पहले ‘गवाही‘ में मिल चुके हैं, अब आप उसी से उसके नये अवतार आनेस्ट कॉप, गुड कॉप से दो चार होंगे। करप्ट कॉप नीलेश गोखले का ये कायापलट, मुझे यकीन है कि, आपको न सिर्फ पसंद आयेगा, बल्कि द्रवित करेगा, भावविह्वल करेगा, उसकी तमाम गुजश्ता खतायें माफ कर देने के लिये प्रेरित करेगा। उपन्यास के प्रति आपकी अमूल्य, निष्पक्ष राय की मुझे बहुत व्यग्रता से प्रतीक्षा रहेगी और उसको प्रेषित करने की आपकी जहमत मेरे पर अहसान होगी, नवाजिश होगी।
मेरे पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘डबल गेम‘ को मेरे तमाम के तमाम पाठकों ने सर्वसम्मति से, एकमत होकर पूरे नम्बरों से पास किया है। उपन्यास को सबने दमदार, तेजरफ्तार, मनोरंजन से भरपूर, अत्यंत सुनीलियन जैसे विशेषणों से नवाजा और उपन्यास में भरपूर, आम से ज्यादा पठनीय सामग्री होने के बावजूद शिकायत की-बल्कि ख्वाहिश जाहिर की-कि पृष्ठ अभी और होने चाहियें थे। बहरहाल मैं धन्यवादी हूं अपने गुणग्राहक पाठकों का जो ऐसी तारीफ, ऐसी मंजूरी, ऐसी वाहवाही से नवाज कर मेरी हौसला अफजाई करते हैं और मुझे और बेहतर, बेहतरीन लिखने के लिये प्रेरित करते हैं।
‘टिप‘ की परम्परा बड़ी अनोखी है, बड़ी दिलचस्प है और कोई मेरी माने तो बहुत गलत है, नाजायज है। जो शै आपने हासिल की, आपने उसकी निर्धारित कीमत अदा कर दी तो टिप के तौर पर अतिरिक्त भुगतान का क्या मतलब ! वैसे तो टिप का प्रचलन आज कल हर सर्विस में है-मसलन बाल कटाओ तो टिप, जूता पालिश कराओ तो टिप, डोरमैन को टिप, वालेट पार्किंग के खिदमतगार को टिप, जिसका भी हाथ सामने पसरा दिखाई दे, उसको टिप-लेकिन होटल और केटरिंग बिजनेस में टिप का प्रचलन ज्यादा है। आज कल तमाम अच्छे, बड़े, नामलेवा रेस्टोरेंट बिल में पहले ही 10 से 15 प्रतिशत तक सर्विस चार्जिज वसूल लेते हैं फिर भी अधिकतर लोग वेटर को-कई तो स्टीवार्ड को भी-टिप देते हैं जबकि जानते हैं कि वसूले गये सर्विस चार्जिज उन्हीं लोगों के लिये हैं। सवाल किये जाने पर उनका कहना होता है कि टिप न देना-बल्कि समुचित, बल्कि बेतहाशा-टिप न देना कस्टमर की लीचड़पंती को उजागर करता है।
मेरे पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘डबल गेम‘ को मेरे तमाम के तमाम पाठकों ने सर्वसम्मति से, एकमत होकर पूरे नम्बरों से पास किया है। उपन्यास को सबने दमदार, तेजरफ्तार, मनोरंजन से भरपूर, अत्यंत सुनीलियन जैसे विशेषणों से नवाजा और उपन्यास में भरपूर, आम से ज्यादा पठनीय सामग्री होने के बावजूद शिकायत की-बल्कि ख्वाहिश जाहिर की-कि पृष्ठ अभी और होने चाहियें थे। बहरहाल मैं धन्यवादी हूं अपने गुणग्राहक पाठकों का जो ऐसी तारीफ, ऐसी मंजूरी, ऐसी वाहवाही से नवाज कर मेरी हौसला अफजाई करते हैं और मुझे और बेहतर, बेहतरीन लिखने के लिये प्रेरित करते हैं।
‘टिप‘ की परम्परा बड़ी अनोखी है, बड़ी दिलचस्प है और कोई मेरी माने तो बहुत गलत है, नाजायज है। जो शै आपने हासिल की, आपने उसकी निर्धारित कीमत अदा कर दी तो टिप के तौर पर अतिरिक्त भुगतान का क्या मतलब ! वैसे तो टिप का प्रचलन आज कल हर सर्विस में है-मसलन बाल कटाओ तो टिप, जूता पालिश कराओ तो टिप, डोरमैन को टिप, वालेट पार्किंग के खिदमतगार को टिप, जिसका भी हाथ सामने पसरा दिखाई दे, उसको टिप-लेकिन होटल और केटरिंग बिजनेस में टिप का प्रचलन ज्यादा है। आज कल तमाम अच्छे, बड़े, नामलेवा रेस्टोरेंट बिल में पहले ही 10 से 15 प्रतिशत तक सर्विस चार्जिज वसूल लेते हैं फिर भी अधिकतर लोग वेटर को-कई तो स्टीवार्ड को भी-टिप देते हैं जबकि जानते हैं कि वसूले गये सर्विस चार्जिज उन्हीं लोगों के लिये हैं। सवाल किये जाने पर उनका कहना होता है कि टिप न देना-बल्कि समुचित, बल्कि बेतहाशा-टिप न देना कस्टमर की लीचड़पंती को उजागर करता है।
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