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धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8953
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

बगलामुखी

व्यष्टि रूप में शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला हैं। पीतांबरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाक्-सिद्धि के लिए की जाती है। इनकी उपासना में हरिंद्रा-माला, पीत-पुष्प और पीत-वस्त्र का विधान है। महाविद्याओं में इनका आठवां स्थान है। इनके ध्यान में बताया गया है कि ये सधा समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मंडप में रत्नमय सिंहासन पर विराज रही हैं। ये पीत वर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले पुष्पों की माला धारण करती हैं। इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वह्म और दूसरे हाथ में मुद्गर है।

‘स्वतंत्र तंत्र' के अनुसार भगवती बगलामुखी के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है-सत्युग में संपूर्ण जगत को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियों के जीवन पर आए संकट को देखकर भगवान विष्णु चिंतित हो गए। वे सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्रीविद्या ने उस सरोवर से बगलामुखी के रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का स्तंभन कर दिया। महाविद्या बगलामुखी भगवान श्री विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी हैं। मंगलवारयुक्त चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इस विद्या का उपयोग दैवी प्रकोप की शांति, धन-धान्य के लिए पौष्टिक कर्म एवं अभिचार कर्म के लिए भी होता है। यह भेद प्रधानता के अभिप्राय से है, अन्यथा इनकी उपासना भोग और मोक्ष के लिए की जाती है।

'यजुर्वेद' की 'काठक संहिता' के अनुसार दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, सुंदर स्वरूपधारिणी एवं विष्णुपत्नी त्रिलोक की ईश्वरी मानी जाती हैं। स्तंभन कारिणी शक्ति व्यक्त और अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार पृथ्वीरूपा है। बगला उसी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं। शक्तिरूपा बगला की स्तंभन शक्ति से द्युलोक वृष्टि प्रदान करता है। उसी से आदित्य मंडल ठहरा हुआ है और उसी से स्वर्ग लोक भी स्तंभित है। श्रीकृष्ण ने 'गीता' में विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् कहकर उसी शक्ति का समर्थन किया है। तंत्र में वही स्तंभन शक्ति बगलामुखी के नाम से वर्णित हैं।

बगलामुखी को 'ब्रह्मास्त्र' के नाम से जाना जाता है। ऐहिक या पारलौकिक देश एवं समाज में अरिष्टों के शमन और शत्रुओं के दमन के लिए बगलामुखी के समान कोई मंत्र नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रय लेते चले आ रहे हैं। इनके बड़वामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद् भानुमुखी आदि पांच मंत्र भेद हैं। ‘कुंडिका तंत्र में बगलामुखी के जप के विधान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। ‘मुंडमाला तंत्र' में तो यहां तक कहा गया है कि इनकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार और कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है। सर्वप्रथम ब्रह्मा ने महाविद्या बगलामुखी की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने इस विद्या का उपदेश सनकादि मुनियों को दिया था।

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