धर्म एवं दर्शन >> शब्द प्रकाश शब्द प्रकाशस्वामी अवधेशानन्द गिरि
|
5 पाठकों को प्रिय 446 पाठक हैं |
वेदांत ग्रंथों में शब्द को प्रमाण माना गया है। यहां शब्द का अर्थ है-वेद अर्थात् परमात्मा का शब्द विग्रह...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अपनी बात
वेदांत ग्रंथों में शब्द को प्रमाण माना गया है। यहां शब्द का अर्थ है-वेद अर्थात् परमात्मा का शब्द विग्रह। वेदांत ग्रंथों के अनुसार, आत्मज्ञान में कोई समय नहीं लगता। आपने महर्षि अष्टावक्र और महाराज जनक के बीच हुए संवाद की चर्चा सुनी होगी। कहा जाता है कि महर्षि ने जनक को परम तत्व का ज्ञान उतने समय में दिया था, जितने समय में कोई घुड़सवार अपना एक पैर एक एड़ पर रखने के बाद दूसरे पैर को दूसरी एड़ में रखता है। लेकिन ऐसा तभी संभव है, जब जिज्ञासु की तैयारी पूरी हो।
आपने सुनी होगी एक चर्चित कहानी, जिसमें दस व्यक्ति साथ-साथ एक नदी को पार करते हैं। उस पार पहुंचने के बाद यह निश्चय करने के लिए कि दसों सकुशल आ गए हैं, सभी एक-एक करके दसों को गिनते हैं। प्रत्येक व्यक्ति नौ तक गिनता है, दसवें का पता नहीं चलता। दसों द्वारा गिनी गई नौ संख्या के बाद निश्चित हो जाता है कि एक डूब गया। सब उस दसवें के लिए विलाप करते हैं। जब वहां से गुजर रहा एक मुसाफिर विलाप का कारण पूछता है, तो सभी एक साथ बोल उठते हैं, ’हम दस में से एक बह गया।’ मुसाफिर नजर दौड़ाता है। उसे गिनती में वो दस ही दिखते हैं। वह उनसे पुन: गिनने को कहता है। सभी गिनते हैं। मुसाफिर को गलती समझ में आ जाती है। वह कहता है-’दशमस्त्वमसि’ अर्थात् दसवें तुम हो। मुसाफिर के ऐसा कहने से तत्काल सारा शोक समाप्त हो जाता है। कुछ विचार नहीं करना पड़ता। मनन-निदिध्यासन की आवश्यकता नहीं पड़ती वहां। ऐसा ही तब होता है जब गुरु उपदेश देता है-’तत्त्वमसि’ अर्थात् वह आत्मा तुम हो। और शिष्य को अनुभव हो जाता है-’अहं ब्रह्मास्मि’ अर्थात् मैं ब्रह्म हूं।
शब्द का, श्रुति का अथवा गुरु वाक्यों का माहात्म्य यह है कि उन्हें सुनते ही जीवन से अंधकार सदा-सदा के लिए समाप्त हो जाता है। जीवन में प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है। हां, शब्द आत्मसात् तभी होता है, जब हृदय सीपी की तरह पूरी तरह खुला हुआ हो-स्वाति नक्षत्र की बूंद को आत्मसात् करने के लिए।
परम पूज्य स्वामी अवधेशानन्द जी महाराज द्वारा दिए गए इन उपदेशों को यदि आपने आत्मसात् कर लिया, तो जीवन में दुखों का नामो-निशान नहीं रह आएगा। जीवन की सोच पूरी तरह से बदल जाएगी। आपको लगेगा कि सब ठीक ही तो है-अर्थात् परम प्रसन्नता का सदैव अनुभव !
शब्द का, श्रुति का अथवा गुरु वाक्यों का माहात्म्य यह है कि उन्हें सुनते ही जीवन से अंधकार सदा-सदा के लिए समाप्त हो जाता है। जीवन में प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है। हां, शब्द आत्मसात् तभी होता है, जब हृदय सीपी की तरह पूरी तरह खुला हुआ हो-स्वाति नक्षत्र की बूंद को आत्मसात् करने के लिए।
परम पूज्य स्वामी अवधेशानन्द जी महाराज द्वारा दिए गए इन उपदेशों को यदि आपने आत्मसात् कर लिया, तो जीवन में दुखों का नामो-निशान नहीं रह आएगा। जीवन की सोच पूरी तरह से बदल जाएगी। आपको लगेगा कि सब ठीक ही तो है-अर्थात् परम प्रसन्नता का सदैव अनुभव !
- गंगा प्रसाद शर्मा
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book