कविता संग्रह >> अन्तस के उद्गार अन्तस के उद्गारराजेन्द्र श्रीमाली
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अन्तस के उद्गार बहुमुखी एवं स्वाभाविक कृति
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
राजेन्द्र जी की पुस्तक वास्तव में नाम के अनुसार ही सम्पूर्ण पुस्तक उद्गार की वाचक बनकर कवि के हृदय की निष्ठा को उजागर करती प्रतीत होती है। जिस प्रकार अपने पूर्वजों के प्रति कवि हृदय से समर्पित है उसी प्रकार अपनी समर्पित भावनाओं को कवि ने कागज पर उतार दिया है। कवि हृदय की सूक्ष्म से सूक्ष्म भावना को शब्द प्रक्रिया में ढालने की अतिशयोक्ति नही की है, अपितु स्वयं को साक्षात काव्य मूर्ति के रूप में प्रकट किया है। जो कुछ भी है स्वाभाविक है, की उक्ति अपना मार्गदर्शन करती चलती है। कवि ने इन सबको अपने गुरुजनों के प्रति आभार मानते हुये दर्शाया है।
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