विविध >> कुपोषित बचपन कुपोषित बचपनसचिन कुमार जैन
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हमारा समाज भूख की स्पष्ट अभिव्यक्ति की अपेक्षा रखता है। लेकिन वह बचपन के किसी भी चरण पर बच्चों की भाषा नहीं समझ पाता है....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हमारा समाज भूख की स्पष्ट अभिव्यक्ति की अपेक्षा रखता है। लेकिन वह बचपन के किसी भी चरण पर बच्चों की भाषा नहीं समझ पाता है। बच्चे अपनी आँखों से बोलते हैं, अपने हाथ पाँब पटक कर रोते हुए अपनी माँग रखते हैं, लेकिन जो बच्चे लगातार भूखे रहे आते हैं उनकी आँखे तक बोलना बंद कर देती हैं। वे अपने हाथ-पाँव इधर-उधर नहीं फेंक पाते हैं। भूख व भुखमरी की वेदी पर लगातार बलि चढ़ते ये बच्चे हमें इस बात पर पछताने को मजबूर करते हैं कि हम उनकी बोली न समझ सके, उनके अस्तित्व को ही नकार बैठे।
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