विविध >> हक की बात हक की बातरोली शिवहरे, प्रशांत दुबे
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जहाँ एक ओर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानूून अपने आप में अधिकारो और हकों की बातों से भरा हुआ है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
यह तो हम सब मान ही रहे हैं कि ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानूून और योजना से गाँव के लोगों को अब रोजगार का कानूनी अधिकार मिल गया है, पर उपलब्धि केवल इतनी सी ही नहीं है।
जिस संघर्ष और जन अभियान के बाद हमें यह कानून मिला उससे यह बात भी सिद्ध हुई कि जन संघर्ष से ही जीवन के अधिकार और संविधान की भावनाओं को संरक्षित किया जा सकता है।
आज के दौर में जबकि लोक अधिकारो का दायरा लगातार सीमित किया जा रहा है, भूमण्डलीकरण के दबाव के बावजूद भारतीय राज्य को रोजगार को एक अधिकार का दर्जा देना पड़ा।
जिस संघर्ष और जन अभियान के बाद हमें यह कानून मिला उससे यह बात भी सिद्ध हुई कि जन संघर्ष से ही जीवन के अधिकार और संविधान की भावनाओं को संरक्षित किया जा सकता है।
आज के दौर में जबकि लोक अधिकारो का दायरा लगातार सीमित किया जा रहा है, भूमण्डलीकरण के दबाव के बावजूद भारतीय राज्य को रोजगार को एक अधिकार का दर्जा देना पड़ा।
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