विविध >> बदहाली के बीच बदहाली के बीचसौमित्र राय
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पानी, पेड़ और पहाड़ किसी भूखे नहीं मरने देते....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पता नहीं चुपचाप एक दौर कब और कैसे आया और हमारे जीवन में समाता चला गया, साथ में लाया - बदहाली। धीरे-धीरे जंगल, जमीन, पानी, रोजगार, पेड़, कहीं गायब रोने लगे। मेरा पड़ोसी ढीमर था, मछली उसके जीवन का आधार थी।
जब तालाब खत्म होने लगे तो भला मछली भी कहां बचती और जब मछली नहीं बची तो ढीमर कैसे बचता?
चौरसिया जीपान उगाते थे, बड़ा सम्मान था उनका। बड़ी मेहनत और तकनीक का काम था यह। सूरज थोड़ा गर्म हो जाये तो पान के बरेजे बेकार हो जाते हैं। लेकिन यहां तो सूरज थोड़ा बहुत गर्म नहीं हुआ, बल्कि आग उगलने लगा।
अनाज, पानी और राज्य सत्ता का मानवीय व्यवहार समाज को ताकतवर बनाता है। पता नहीं, पर ऐसा कुछ हुआ कि हमारे यहां का अनाज, पानी और राज्य सत्ता का मानवीय व्यवहार कहीं गुम होने लगा।
कहते हैं हमारी अपनी सरकार विकास की बात कर रही थी, लेकिन उसने मेरे गांव के लोगों के विज्ञान और उनकी समझ का मोल नहीं जाना और सब-कुछ बाहर से लेकर आए।
जब तालाब खत्म होने लगे तो भला मछली भी कहां बचती और जब मछली नहीं बची तो ढीमर कैसे बचता?
चौरसिया जीपान उगाते थे, बड़ा सम्मान था उनका। बड़ी मेहनत और तकनीक का काम था यह। सूरज थोड़ा गर्म हो जाये तो पान के बरेजे बेकार हो जाते हैं। लेकिन यहां तो सूरज थोड़ा बहुत गर्म नहीं हुआ, बल्कि आग उगलने लगा।
अनाज, पानी और राज्य सत्ता का मानवीय व्यवहार समाज को ताकतवर बनाता है। पता नहीं, पर ऐसा कुछ हुआ कि हमारे यहां का अनाज, पानी और राज्य सत्ता का मानवीय व्यवहार कहीं गुम होने लगा।
कहते हैं हमारी अपनी सरकार विकास की बात कर रही थी, लेकिन उसने मेरे गांव के लोगों के विज्ञान और उनकी समझ का मोल नहीं जाना और सब-कुछ बाहर से लेकर आए।
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