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जीवनी/आत्मकथा >> महानागर

महानागर

रमानाथ त्रिपाठी

प्रकाशक : राजपाल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8840
आईएसबीएन :9789350640029

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‘वनफूल’ लेखक की आत्मकथा का पहला भाग था और ‘महानागर’ द्वितीय भाग है।

Mahanaagar (Ramanath Tripathi)

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यह कथा है राष्ट्र को समर्पित ऐसे संवेदनशील व्यक्ति की संघर्ष-गाथा जिसने बार-बार टूटकर भी हार नहीं मानी...

आत्मकथा के इस द्वितीय भाग में लेखक डॉ. रमानाथ त्रिपाठी की दिल्ली विश्वविद्यालय में नियुक्ति से लेकर सेवानिवृति तक की स्थितियों का वर्णन है। इतिपूर्व जो ‘वनफूल’ (आत्मकथा-1) था वह महानगर दिल्ली में बसकर महानागर बना गया। पुस्तक में लेखक के साथ होने वाले अन्याय, पारिवारिक कष्ट, वात्सल्य, दाम्पत्य आदि का वर्णन तो है ही, उन राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण भी है जिन्होंने लेखक के मन को उद्वेलित किया है, जैसे कि भारत-पाक युद्ध, इमरजेन्सी, साम्प्रदायिक दंगे, खोखला सेक्युलरवाद, वामपंथियों की मनःस्थिति, बांग्लादेश की घुसपैठ, धर्मान्तरण आदि। राम के उदात्त चरित्र के माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने के प्रयास की झाँकी भी इसमें मिलेगी।

आत्मकथा में डायरी, संस्मरण, रिपोर्ताज़, यात्रा-वृत्तान्त और शोध की समन्वित शैली अपनायी गयी है। पुस्तक उपन्यास-जैसी रोचक है। आत्मकथाओं की परम्परा में डॉ. त्रिपाठी की आत्मकथाएँ अपना विशिष्ट महत्व रखती हैं।

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