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मनोविश्लेषण

सिगमंड फ्रायड

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :392
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8838
आईएसबीएन :9788170289968

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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद


दूसरे, यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है, खास तौर से कुछ ऐसी बातों को देखते हुए जिनकी हम बाद में चर्चा करेंगे, कि सबसे अधिक ज़बरदस्त विरोध स्वप्न और अचेतन में प्रतीकात्मक सम्बन्ध होने के प्रश्न पर सामने आया है। बड़े विवेक-बुद्धि वाले और प्रसिद्ध व्यक्तियों ने भी, जो और दृष्टियों से मनोविश्लेषण को काफी दूर तक स्वीकार करते रहे हैं, इस प्रश्न पर आकर इसे मानने से इनकार कर दिया है। यह व्यवहार तब और भी उल्लेखनीय हो जाता है जब हम दो बातें याद करते हैं, एक तो यह कि प्रतीकात्मकता स्वप्नों में नहीं होती, और न उसकी अनन्य विशेषता है, और दूसरी यह कि स्वप्नों में प्रतीकात्मकता का प्रयोग मनोविश्लेषण का आविष्कार नहीं है, यद्यपि इस विज्ञान ने और बहुत-से आश्चर्य में डालने वाले आविष्कार किए हैं। यदि आधुनिक काल में इस क्षेत्र में सबसे पहले आविष्कारक को ढूंढ़ना हो तो दार्शनिक के० ए० शरनर (1861) को इसका आविष्कारक मानना चाहिए। मनोविश्लेषण ने उसके आविष्कार की पुष्टि की है, यद्यपि कुछ महत्त्वपूर्ण दृष्टियों से इसमें संशोधन भी किए हैं।

अब आप स्वप्न-प्रतीकात्मकता की प्रकृति के बारे में कुछ सुनना, और उसके कुछ उदाहरणों पर विचार करना चाहेंगे। मैं जो कुछ जानता हूं, वह खुशी से आपको बताऊंगा, पर इस विषय में हमारी जानकारी बहुत अधिक नहीं है।

प्रतीकात्मक सम्बन्ध सारभूत रूप में तुलना का सम्बन्ध है, पर वह किसी भी प्रकार की तुलना नहीं है। हमारा ख्याल है कि यह तुलना कुछ विशेष अवस्थाओं में ही हो सकती होगी, यद्यपि हम नहीं बता सकते कि वे अवस्थाएं कौन-सी हैं। किसी वस्तु या घटना की जिस-जिस चीज़ से तुलना की जा सकती है, वह प्रत्येक चीज़ स्वप्नों में उसका प्रतीक बनकर नहीं आती, और दूसरी ओर, स्वप्न प्रत्येक चीज़ के लिए प्रतीकात्मकता का प्रयोग न करके गप्त स्वप्न-विचारों के खास अवयवों के लिए ही इसका प्रयोग करते हैं। इस प्रकार दोनों दिशाओं में कुछ सीमाएं हैं। हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि अभी हम बिलकुल निश्चित रूप से यह नहीं बता सकते कि हमारी प्रतीक की अवधारणा की सीमा कहां तक है क्योंकि यह स्थानापन्नता, निरूपण आदि में विलीन होने लगता है और अस्पष्ट निर्देश के निकट तक भी जा पहुंचता है। प्रतीकों के एक समुदाय में तुलना आसानी से दिखाई देने वाली हो सकती है, पर कुछ प्रतीकों में सामान्य अंश खोजना पड़ता है। हो सकता है, अधिक विचार करने से हमें यह पता चल जाए, पर यह भी हो सकता है कि यह हमसे सदा छिपा ही रहे। फिर, यदि प्रतीक वस्तुतः तुलना ही है तो यह बात उल्लेखनीय है कि यह तुलना मुक्त साहचर्य के प्रक्रम से सामने नहीं आती, और स्वप्नद्रष्टा को भी इसके विषय में कुछ पता नहीं होता, पर वह बिना जाने इसका प्रयोग करता है। इतना ही नहीं, वह तो उसके सामने पेश किए जाने पर इसे पहचानने को भी तैयार नहीं। इस प्रकार आप देखते हैं कि प्रतीकात्मक सम्बन्ध एक बिलकुल अनोखे किस्म की तुलना है, जिसकी प्रकृति अभी तक हम पूर्णतया नहीं जानते। शायद बाद में कोई ऐसा संकेत मिल जाए जो इस अज्ञात राशि पर कुछ प्रकाश डाले।

स्वप्नों में जो वस्तुएं प्रतीकों के रूप में दिखाई देती हैं, उनकी संख्या अधिक नहीं है- मनुष्य का सारा शरीर, माता-पिता, बच्चे, भाई और बहनें, जन्म, मृत्यु, नंगापन तथा एक चीज़ और। मनुष्य का रूप नियमित रूप से मकान द्वारा दिखाई देता है, जैसा कि शरनर ने पहचाना था, और वह तो इस प्रतीक को इतना अधिक सार्थक बताता था जितना यह वास्तव में नहीं है। लोगों को किसी मकान के सामने के हिस्से पर कभी आनन्द की भावना से और कभी भय की भावना से चढ़ने के स्वप्न आते हैं। जब दीवारें बिलकुल चिकनी होती हैं, तब मकान का अर्थ है पुरुष, जब उसमें छज्जे और जालियां हों जिन्हें पकड़ा जा सकता है, तब अर्थ है स्त्री। स्वप्नों में माता-पिता सम्राट और सम्राज्ञी, राजा और रानी या अन्य ऊंचे व्यक्तियों के रूप में दिखाई देते हैं। इस मामले में स्वप्न का ढंग बड़ा पितृभक्ति से पूर्ण है। बच्चों और भाइयों तथा बहनों के साथ कुछ सख्ती बरती गई है; उनके प्रतीक हैं छोटे पशु या कीड़े। जन्म प्रायः सदा पानी के रूप में होता है। या तो हम पानी में गिर रहे हैं या इसमें से निकल रहे हैं या इसमें से किसी को बचा रहे हैं; या कोई हमें बचा रहा है, अर्थात् माता और बच्चे का सम्बन्ध प्रतीक रूप में होता है। मरने के लिए हम किसी यात्रा पर गाड़ी से सफर पर रवाना हुए हैं, और मृत्यु की अवस्था बहुत-से धुंधले और मानो डरते हुए अस्पष्ट संकेतों से सूचित होती है। कपड़े या वर्दियां नंगपने को सूचित करती हैं। आप देखते हैं कि यहां प्रतीकात्मक और अस्पष्ट निर्देशात्मक निरूपणों की विभाजक रेखा मिटने लगती है।

इन थोड़ी-सी चीजों की तुलना में यह बात हमें विशेष रूप से प्रभावित किए बिना नहीं रह सकती कि एक और क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वाली वस्तुएं और मामले बहुत सारे प्रतीकों से सूचित होते हैं। मेरा मतलब यौन जीवन के क्षेत्र से है, अर्थात् जननेंद्रियां, लैंगिक कार्य और सम्भोग। स्वप्नों में अधिकतर प्रतीक लैंगिक या यौन प्रतीक होते हैं। इस प्रकार यह स्थिति होती है कि बहुत-सी कम काम में आने वाली बातों के लिए बहुत-से प्रतीक होते हैं, और इनमें से प्रत्येक चीज़ प्रायः समानार्थक बहुत-से प्रतीकों से प्रकट की जा सकती है। इसलिए जब उनका अर्थ लगाया जाता है, तब इस विचित्रता के कारण वह सबको बुरा लगता है क्योंकि स्वप्नों में तो यह अनेक रूपों में दिखाई देता है। पर प्रतीकों का निर्वचन बड़ा नीरस काम है; जिसे इसका पता चलता है उसे ही वह बुरा लगता है, पर हम कह ही क्या सकते हैं!

इन व्याख्यानों में यह पहला ही मौका है कि मैंने लैंगिक जीवन या यौन जीवन का उल्लेख किया है। इसलिए मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि इस विषय को मैं किस तरह पेश करूंगा। मनोविश्लेषण छिपाने या परीक्षा निर्देशन करने की कोई ज़रूरत नहीं समझता और ऐसी महत्त्वपूर्ण सामग्री से अपने सम्बन्ध पर शर्म महसूस करना आवश्यक नहीं समझता। इसकी सम्मति में प्रत्येक वस्तु को इसके ठीक नाम से ही पुकारना उचित है, और इस तरह वह विक्षोभजनक सांकेतिक शब्दों से आसानी से वच जाने की आशा रखता है। इसमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ सकता कि मेरे श्रोताओं में लड़के और लड़कियां दोनों हैं। कोई भी विज्ञान इस तरह नहीं पढ़ाया जा सकता कि वह छोटी लड़कियों के लिए उचित मालूम हो। जो स्त्रियां यहां उपस्थित हैं उन्होंने व्याख्यान के कमरे में हाजिर होकर बिना मुख से कहे यह ज़ाहिर कर दिया है कि वे पुरुषों की बराबरी में ही रहना चाहती हैं।

स्वप्नों में पुरुष की जननेन्द्रिय अनेक प्रकार के प्रतीकों के रूप में दिखाई देती है, जिनमें से अधिकतर में तुलना का आधारभूत सामान्य विचार आसानी से स्पष्ट हो जाता है। प्रथम तो पवित्र संख्या तीन सारी पुरुष-जननेन्द्रिय की प्रतीक है। इसके अधिक स्पष्ट दीखने वाले और दोनों लिंगों के व्यक्तियों के लिए अधिक दिलचस्पी वाले हिस्से-शिश्न की मुख्य प्रतीक वही वस्तुएं हैं जो आकृति में इससे मिलती-जुलती हैं, अर्थात् लम्बी और सीधी खड़ी होने वाली होती हैं, जैसे-लाठी, छतरी, खम्भा, पेड़ और ऐसी ही अन्य वस्तुएं; इसकी प्रतीक वे वस्तुएं भी होती हैं जिनमें शरीर के अन्दर घुसने और परिणामतः उसे घायल करने का गुण होता है, अर्थात् सब तरह के नोकदार शस्त्र-चाकू, छुरे, खंजर, तलवार; आग फेंकने वाले हथियार भी इसी तरह प्रयोग में आते हैं-बन्दूक, पिस्तौल और रिवाल्वर, जिनमें से अन्तिम दो अपने रूप के कारण बहुत उपयुक्त प्रतीक होते हैं। युवा लड़कियों के चिन्ता-स्वप्नों में चाकू या राइफल धारण करने वाला मनुष्य पीछा करता हुआ बहुत दिखाई देता है। शायद यह सबसे अधिक दीखने वाला स्वप्न-प्रतीक है। अब आप अपने लिए आसानी से इसका भाषांतर कर सकते हैं। पुरुष की जननेन्द्रिय के स्थान पर ऐसी वस्तुओं का आना भी आसानी से समझ में आता है जिनसे पानी बहता है-टोंटी, पानी का कनस्तर या झरना, और वे वस्तुएं भी इसकी प्रतीक होती हैं जो लम्बी हो सकती हैं, जैसे पुली-लैंप पेंसिलें, जो ढांचे के अन्दर आ-जा सकती हैं, इत्यादि। पेंसिलें, होल्डर, नेलफाइल, हथौड़े और अन्य उपकरण असंदिग्ध रूप से पुरुष-लिंग के प्रतीक हैं, जो पुरुषेन्द्रिय के उस विचार पर आधारित हैं जिसका इतनी आसानी से बोध हो जाता है।

इस अंग में गुरुत्व के नियम के विरोध में अपने को सीधा खड़ा कर सकने का जो विशेष गुण है, उसके कारण बैलून, विमान और अभी कुछ समय से जैपलिन उसके प्रतीक बन जाते हैं। पर स्वप्नों के दृढ़ीकरण1 के प्रतीक पेश करने का एक और अधिक प्रभावोत्पादक तरीका भी होता है। वे लिंग को सारे शरीर का आवश्यक भाग बना देते हैं जिसके परिणामस्वरूप स्वप्न देखने वाला स्वयं उड़ता है : यह सुनकर परेशान होने की ज़रूरत नहीं कि उड़ने के स्वप्नों, का जिनसे हम सब परिचत है, और जो प्रायः इतने सुन्दर होते है, सामान्य कामुक उत्तेजना या दृढ़ीकरण स्वप्नों के रूप में अर्थ लगाना चाहिए। एक मनोविश्लेषक पी० फेर्डन ने असंदिग्ध रूप से इस निर्वचन की सत्यता सिद्ध कर दी है; पर इसके अलावा, मोर्ली वोल्ड, जो गम्भीर निर्णय-बुद्ध के लिए बहुत प्रसिद्ध है और जिसने बांहों और टांगों की कृत्रिम स्थितियों से परीक्षण किए थे और जिसके सिद्धान्त असल में मनोविश्लेषण से बहुत दूर थे (हो सकता है कि उसे इसके बारे में बिलकुल भी पता न हो), अपनी खोजों से इसी नतीजे पर पहुंचा था। इस पर आपको इस आधार पर आक्षेप नहीं करना चाहिए कि स्त्रियों को भी उड़ने के स्वप्न आ सकते हैं, बल्कि आपको यह याद करना चाहिए कि स्वप्नों का प्रयोजन इच्छापूर्ति है, और स्त्रियों में पुरुष बनने की इच्छा बहुत बार होती है, चाहे उन्हें इसका ज्ञान हो या न हो। इसके अलावा, शरीर से परिचित कोई भी आदमी इस भ्रम में नहीं पड़ेगा कि स्त्रियों के लिए पुरुष के जैसे संवेदनों द्वारा इस इच्छा को पूरा करना असम्भव है, क्योंकि स्त्री के यौन अंगों में शिश्न से मिलता-जुलता एक छोटा-सा अंग भी होता है और यह छोटा अंग भगनासा2 बचपन में लैंगिक सम्भोग से पहले के वर्षों में सचमुच वही कार्य करता है जो पुरुष का बड़ा लिंग करता है।

पुरुष-लिंग के कम आसानी से समझने में आने वाले प्रतीक कुछ रेंगने वाले कीड़े और मछलियां हैं; सबसे विचित्र प्रसिद्ध प्रतीक है सांप। टोप और चोगा इस तरह क्यों प्रयोग में आते हैं, यह समझ में आना निश्चय ही कठिन है, पर उनका प्रतीकात्मक अर्थ बिलकुल असंदिग्ध है। अन्त में यह पूछा जा सकता है कि क्या पुरुष-लिंग का किसी अन्य अंग, जैसे हाथ और पैर, द्वारा निरूपण प्रतीकात्मक कहा जा सकता है। मैं समझता हूं कि जिस प्रसंग में यह हुआ करता है, और साथ ही स्त्री के जो अंग दिखाई देते हैं, उनसे हम मजबूरन इसी नतीजे पर पहुंचते हैं।

स्त्री-जननेन्द्रियों का प्रतीकात्मक निरूपण ऐसी सब वस्तुओं से होता है जिनमें उनकी तरह स्थान को चारों ओर से घेरने का गुण होता है, या जो पात्र के रूप में प्रयोग में आ सकते हैं, जैसे गढ़े, खोखली जगह और गुफा तथा मर्तबान और बोतलें, और सब तरह की और आकारों की पेटियां, तिजोरियां, जेब इत्यादि। जहाज़ भी इसी वर्ग में आते हैं। बहुत-से प्रतीक दूसरी जननेन्द्रियों के बजाय गर्भाशय का संकेत करते हैं। इस प्रकार अल्मारियां, स्टोव और इन सबसे बढ़कर, कमरे। कमरे की प्रतीकात्मकता यहां मकान के प्रतीक से जुड़ जाती है और दरवाजे तथा किवाड़ जननेन्द्रिय के द्वार के प्रतीक हैं। इसके अलावा, विभिन्न तरह की सामग्री स्त्री की प्रतीक है, जैसे लकड़ी, कागज़ और इनसे बनी हुई वस्तुएं, जैसे मेज़ और पुस्तकें। अल्प प्राणियों में से घोंघे और सीपी असंदिग्ध रूप से स्त्री के प्रतीक हैं। शरीर के अंगों में से मुख योनिद्वार का प्रतीक है, और मकानों में चर्च तथा चेपल (उपासनागृह) स्त्री के प्रतीक हैं। स्पष्ट है कि ये अब प्रतीक उतनी ही आसानी से समझ में नहीं आते जितनी आसानी से पुरुष-जननेन्द्रिय के प्रतीक आ जाते हैं।

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1. Frection
2. Clitoris

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