विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
आप मुझ पर यह दोषारोपण करेंगे कि मैंने युद्ध का एकांकी दृष्टिकोण पेश किया
है और मुझसे कहेंगे कि इसने मनुष्य जाति के सर्वोत्तम और उदात्ततम
गुणोंवीरता, बलिदान और लोकमंगल की भावना को भी सामने आने का मौका दिया है। यह
सच है, पर अब वह अन्याय न कीजिए जो कि मनोविश्लेषण को इतनी बार सहना पड़ा है,
अर्थात् यह कहकर इसकी निन्दा न कीजिए कि यह इसलिए एक चीज़ का निषेध करता है
क्योंकि एक और चीज़ की पुष्टि करता है। हमारा यह प्रयोजन नहीं है कि
मनुष्य-स्वभाव में मौजूद उदादत्ता का निषेध करें, और न हमने कभी इसके महत्त्व
को गिराने की कोई चेष्टा की है। इसके विपरीत, मैं आपको न केवल वे दुष्ट
इच्छाएं दिखा रहा हूं, जो सेन्सर की जाती हैं, बल्कि वह सेन्सरशिप भी दिखा
रहा हूं जो उन्हें दबाती हैं, और उन्हें पहचान में आने के अयोग्य बना देती
है। हम मनुष्य की बुराई पर अधिक बल इसलिए देते हैं कि दूसरे लोग इसका निषेध
करते हैं और इस तरह वे मनुष्य जाति के मानसिक जीवन को अच्छे के बजाय दर्बोध
बना देते हैं। यदि हम एकांकी आचार-सम्बन्धी मूल्यांकन छोड़ दें तो
मनुष्य-प्रकृति में बुरे और अच्छे के आपसी सम्बन्ध का अधिक सही सूत्र हमें
प्राप्त होगा।
बस, इतनी ही बात है। हमें अपने स्वप्न-निर्वचन के काम के परिणामों को छोड़ना
नहीं है, चाहे वे हमें जितने अजीब लगें। शायद बाद में हम दूसरे रास्ते से
उन्हें समझने के अधिक निकट पहुंच जाएं। फिलहाल हमें इस बात को पकड़े रहना।
चाहिए कि स्वप्न-विपर्यास का कारण यह है कि अहम् या ईगो की कुछ पहचानी हुई
प्रवृत्तियां नींद में रात के समय हमारे अन्दर उठ पड़ने वाली भद्दे प्रकार की
इच्छाओं पर सेन्सरशिप या काट-छांट करती हैं। स्पष्ट है कि जब हम अपने-आपसे यह
पूछते हैं कि वे रात को ही क्यों दिखाई देती हैं और इन घृणित इच्छाओं का मूल
क्या है, तब हमें पता चलता है कि अभी बहुत कुछ पता लगाना है और बहुत-से
प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
परन्तु यदि हम यहां इस जांच-पड़ताल के एक और परिणाम को उचित महत्त्व देने में
कोताही करें तो यह हमारी गलती होगी। नींद को बिगाड़ने वाली स्वप्नइच्छाएं
हमारे लिए अज्ञात हैं। उनका हमें सबसे पहले स्वप्न-निवर्चन के द्वारा ही पता
चलता है। इसलिए उन्हें 'उस समय अचेतन' कहा जाएगा-यहां अचेतन शब्द उसी अर्थ
में है जिसमें हमने इसका प्रयोग किया है, पर हमें यह बात समझनी चाहिए कि वे
उस समय अचेतन से भी कुछ अधिक हैं; क्योंकि स्वप्न देखने वाला अपने स्वरूप के
निर्वचन द्वारा उन्हें जान लेने के बाद भी उनका निषेध करता है, जैसा कि हमने
अनेक बार देखा है। यहां हम फिर वही बात देखते हैं जो 'हिचकी' वाली बोलने की
गलती का निर्वचन करते समय पहले दिखाई दी थी। भोजन के बाद बोलने वाले वक्ता ने
रोष के साथ हमें यह विश्वास दिलाया था कि उसे अपने प्रधान के प्रति अनादर
भावना का न तो उस समय कोई ज्ञान था और न पहले कभी रहा था। हमने तब भी उसके इस
कथन की सचाई पर सन्देह किया था और इसके बदले यह माना था कि वक्ता अपने भीतर
इस भावना के अस्तित्व से स्थायी रूप से अपरिचित है। जिन स्वप्नों में बहुत
अधिक विपर्यास होता है उन सबके निर्वचन के समय यही स्थिति पैदा होती है और
इससे हमारे विचार का महत्त्व बढ़ जाता है। अब हम यह मानने के लिए तैयार हैं
कि मानसिक जीवन में ऐसे प्रक्रम और प्रवृत्तियां होती हैं जिनके बारे में हम
कुछ नहीं जानते; कुछ नहीं जानते रहे; बहुत लम्बे समय से या शायद कभी भी इनके
बारे में कुछ नहीं जानते थे। इससे अचेतन शब्द का एक नया अर्थ हमारे सामने आ
जाता है : 'उस समय' या 'अस्थायी' विशेषण कोई आवश्यक गुण नहीं रहता, और इस
शब्द का अर्थ न केवल 'उस समय गुप्त' बल्कि स्थायी रूप से अचेतन भी हो सकता
है। इस प्रश्न पर हम बाद में और आगे विचार करेंगे।
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