विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
प्रभावों और अनुभवों को भूलने से पता चलता है कि स्मृति से उन बातों को दूर
करने की प्रवृत्ति क्रियाशील है जो नामों को भूलने की अपेक्षा अधिक स्पष्ट
रूप और सदा अप्रिय है। ये सारी की सारी बातें निस्सन्देह गलतियों की श्रेणी
में नहीं आती; गलतियों की श्रेणी में ये वहीं तक आती हैं, जहां तक सामान्य
अनुभव के पैमाने से नापने पर, ये हमें विशिष्ट और अनुचित प्रतीत होती हैं;
जैसे, उदाहरण के लिए वहां, जहां हाल के या महत्त्वपूर्ण प्रभाव भूल जाते हैं,
या जहां सारे अच्छी तरह याद सिलसिले में से एक घटना भूल जाती है। यह एक
बिलकुल जुदा समस्या है कि हममें भूलने की सामान्य क्षमता कैसे और क्यों होती
है, और विशेष रूप से हम उन अनुभवों को कैसे भूल जाते हैं जिनकी निश्चित रूप
से हम पर बहुत गहरी छाप पड़ी थी, जैसे कि हमारे बचपन की घटनाएं; इसमें
कष्टकारक साहचर्यों के विरुद्ध कही जाने वाली बातों का कुछ महत्त्व है, पर
उससे सारी समस्या की कुछ भी व्याख्या नहीं होती। यह तो असंदिग्ध तथ्य है कि
नापसन्द प्रभाव आसानी से भूल जाते हैं। अनेक मनोविज्ञान-विशारदों ने इस पर
विचार किया है; और महान् डारविन तो इस बात से इतनी अच्छी तरह परिचित था कि
उसने अपने लिए यह सुनहरा नियम बना लिया था कि जो प्रेक्षण उसे अपने सिद्धान्त
के लिए प्रतिकूल प्रतीत होते थे, उन्हें वह बड़ी सावधानी से लिख लेता था,
क्योंकि उसे यह निश्चय हो गया था कि ये ही स्मृति से निकलकर भाग जाएंगे।
जो लोग पहली बार यह सुनते हैं कि अप्रिय स्मृति पैदा करने वाली बातें भूल
जाती हैं वे यह एतराज ज़रूर उठाते हैं कि असल में वात इससे उल्टी है और
कष्टकारक बातों को भूलना ही सबसे कठिन होता है, क्योंकि वे बातें आदमी को दिक
करने के लिए उसकी इच्छा के विरुद्ध बार-बार उसके मन में आती हैं; जैसे उदाहरण
के लिए, शिकायतों या अपमानों की याद। यह तथ्य बिलकुल सही है पर एतराज़ कुछ
वज़नदार नहीं। यह समझने के लिए कि मन परस्पर विरोधी आवेगों के संघर्षों के
लिए एक अखाड़ा है, एक रणक्षेत्र है, कुछ और पहले से विचार शुरू करना आवश्यक
है; इस बात को निर्जीव क्रियाओं के रूपों में यों कह सकते हैं कि मन विरोधों,
और विरोधी वस्तुओं की जोड़ियों का बना हुआ है। किसी एक प्रवृत्ति के दिखाई
देने का यह अर्थ नहीं कि इसकी विरोधी प्रवृत्ति नहीं हो सकती; वहां उन दोनों
के रहने के लिए काफी गुंजायश है। महत्त्वपूर्ण प्रश्न ये हैं : ये विरोधी
प्रवृत्तियां एक-दूसरे के साथ किस तरह मौजूद हैं, और उनमें से एक से क्या
परिणाम पैदा होते हैं और दूसरी से क्या परिणाम पैदा होते हैं?
वस्तुएं खो देना या कहीं रखकर भूल जाना विशेष दिलचस्पी की बातें हैं, क्योंकि
इसके अनेक अर्थ हो सकते हैं, और ऐसी अनेक प्रवृत्तियां हो सकती हैं जो
गलतियों द्वारा प्रकट होती हों। इन सब उदाहरणों में सांझी बात 'कोई चीज़ खोने
की इच्छा' है; सबमें भिन्नता पैदा करने वाली बात इच्छा का कारण और उसका ध्येय
है। आदमी चीज़ खो देता है यदि वह खराब हो गई हो, या उसमें उसके स्थान पर उससे
अच्छी चीज लेने का आवेग हो. या आदमी ने उसकी परवाह करनी छोड दी हो, या यदि यह
किसी ऐसे व्यक्ति से मिली हो जिसके साथ अप्रियता पैदा हो गई है, या यदि वह
ऐसी परिस्थितियों में प्राप्त की गई है जिन्हें आदमी अब नहीं याद करना चाहता।
चीजें गिरने देने, बिगड़ने, या तोड़ने में भी वही प्रवृत्ति दिखाई देती है।
सामाजिक जीवन में कहा जाता है कि अनचाहे और नाजायज़ बच्चे उन बच्चों से बहुत
कमजोर पाए गए हैं जो अधिक सुखद परिस्थितियों में पैदा हुए हैं। इस परिणाम का
यह अर्थ नहीं है कि पेशेवर शिशु-पालकों के भद्दे तरीके काम लाए गए हैं, बच्चे
की देखभाल में थोड़ी लापरवाही ही काफी कारण है। वस्तुओं का हिफाजत से रखना और
बिगाड़ना या खोना भी बच्चों के ढंग से ही हो सकता है।
तब फिर यह भी हो सकता है कि कोई वस्तु पहले की तरह मूल्यवान रहती हुई भी
अवश्य खो जाती हो, अर्थात् जब किसी आशंकित बड़ी हानि से बचने के लिए कोई चीज़
भाग्य पर बलिदान करने का आवेग मन में हो। विश्लेषणों से पता चलता है कि इस
तरह भाग्य को प्रसन्न करने की प्रवृत्ति भी अभी हमारे अन्दर बहुत व्यापक है,
जिसका अर्थ यह है कि हमारी हानियां प्रायः स्वेच्छा से चढ़ाया हुआ बलिदान
होती हैं। इसी तरह खोने से विद्वेष के, या आत्मपीड़न अर्थात् स्वयं अपने को
दण्ड देने के आवेगों का पता चलता है। संक्षेप में, कोई चीज़ खोकर उससे पिण्ड
छुड़ाने के आवेग के पीछे जो दूरवर्ती प्रेरणाएं हो सकती हैं उनका आसानी से
कहीं अन्त नहीं ढूंढा जा सकता।
दूसरी गलतियों की तरह, गलत वस्तु उठा लेने या गलत रीति से कार्य करने के
द्वारा भी रोकी जाने वाली इच्छा को प्रायः पूरा किया जाता है; असली आशय
आकस्मिक मौके के रूप में प्रकट होता है। इस प्रकार, जैसा कि एक बार एक मित्र
के साथ हुआ भी था। आपको किसी उपनगर में किसी जगह जाना है, और बड़ी अनिच्छा से
आप गाड़ी पकड़ते हैं, और फिर किसी जंकशन पर गाड़ी बदलते समय आप, भूल से, शहर
लौटने वाली गाड़ी में बैठ जाते हैं, या किसी यात्रा में आप किसी जगह उतरने की
बड़ी तीव्र इच्छा रखते हैं, पर और जगह पहुंचने के समय दूसरों के साथ पहले ही
नियत कर चुकने के कारण आप वहां नहीं उतर सकते, और इस पर आप जंकशन पर गलती से
असली गाड़ी छोड़ देते हैं, या किसी गलत गाड़ी में बैठ जाते हैं, जिससे आप जो
देर लगाना चाहते थे, वह मजबूरन लग जाती है। या, जैसा कि मेरे एक मरीज़ के साथ
हुआ, जिसे मैंने अपनी प्रेमिका को टेलीफोन करने से मना कर दिया था; उसने मुझे
टेलीफोन करते समय 'भूल से' और 'बिना विचारे' गलत नम्बर बोल दिया जिससे उसका
टेलीफोन एकाएक उसकी प्रेमिका के टेलीफोन से मिल गया। एक इंजीनियर द्वारा
बताया गया निम्नलिखित वृत्तान्त इस बात का अच्छा उदाहरण है कि किन अवस्थाओं
में भौतिक पदार्थों को बिगाड़ा जाता है; इससे प्रत्यक्षतः दोषपूर्ण कार्यों
का व्यावहारिक महत्त्व भी स्पष्ट होता है।
कुछ समय पहले मैंने एक हाई स्कूल की प्रयोगशाला में अनेक सहयोगियों के साथ
प्रत्यास्थता1 के सम्बन्ध में कुछ उलझनदार परीक्षणों में हिस्सा लिया, और यह
काम हमने अपनी इच्छा से अपने ऊपर लिया था; पर इसमें हमें आशा से अधिक समय लग
रहा था। एक दिन जब मैं अपने मित्र फ के साथ प्रयोगशाला में गया, तब उसने कहा
कि आज इतना समय बर्बाद करना कितना परेशानी का काम है जबकि उसे घर पर बहुत-सा
काम करना है।-मुझे उससे सहमत होना ही था, और मैंने उससे कुछ मज़ाक में, पिछले
सप्ताह की घटना की चर्चा करते हुए कहा-भगवान से मनाओ कि मशीन फिर बिगड़ जाए,
और हम काम बंद करके जल्दी घर लौट सकें। काम बांटते समय ऐसा हुआ कि फ को प्रेस
या दावक का वाल्व खोलने, बंद करने का काम सौंपा गया; मतलब यह कि उसको सावधानी
से वाल्व खोलकर, डव के दाव को संचायक या एकुमुलेटर में से, धीरे-धीरे, जलदाबक
या हाइड्रॉलिक प्रेस के सिलिंडर में आने देना था। परीक्षण अध्यक्ष
दाब-प्रमापी (प्रेशर गेज) पर खड़ा था और जब ठीक दाब आ गया, तब उसने ज़ोर से
पुकारा-ठहरो!-इस आदेश पर फ ने पूरी ताकत से वाल्व पकड़कर उसे घुमा दिया-बाईं
ओर! (सभी वाल्व दाईं ओर को बंद होते हैं, और इसमें कोई अपवाद नहीं होता।)
इससे संचायक का सारा दाब एकाएक दावक में आ गया, पर संयोजक नलियां इतना दाब
सहने के लिए नहीं बनी होती और उनमें से एक फट गई। यह बिलकुल निरापद दुर्घटना
थी, पर तब भी उसने हमें काम बंद करके घर चले जाने के लिए मजबूर कर दिया। यह
विलक्षण बात है कि हम घटना के कुछ ही समय बाद जब हम बातें कर रहे थे तो मेरे
मित्र को मेरी बात से घटना की याद बिलकुल नहीं आई, पर मुझे वह अच्छी तरह याद
थी।'
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1. Elasticity
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