विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
लिखने की गलतियां, जिनकी अब मैं चर्चा कर रहा हूं, अपने तन्त्र या प्रक्रिया
की दृष्टि से बोलने की गलतियों से इतनी मिलती-जुलती होती हैं कि उनसे किसी
नये दृष्टिकोण की आशा नहीं की जा सकती। शायद इस समूह से हमारी जानकारी में
थोड़ी वृद्धि हो जाने से हमें सन्तोष हो जाए। लिखने की उन ही आमतौर से होने
वाली छोटी-छोटी गलतियों, शब्दों के सिकुड़ जाने, बाद के शब्दों के विशेष रूप
से अन्तिम शब्दों के पहले लिखे जाने से यह सूचित होता है कि लिखने वाले को
लिखने में दिलचस्पी नहीं है, और उसमें अधैर्य है। लिखने की गलतियों में बहुत
मुख्य रूप से दीखने वाली बातों से बाधक प्रवृत्ति के स्वरूप और आशय का पता भी
चल जाता है। साधारणतया, यदि हमें किसी पत्र में लिखने की कोई गलती दिखाई दे,
तो हम समझ जाते हैं कि लेखक का मन उस समय बिना बाधा के कार्य नहीं कर रहा था।
बात क्या थी, यह हमेशा निश्चित नहीं हो सकता। बोलने की गलतियों की तरह, लिखने
की गलतियों पर भी स्वयं लिखने वालों का ध्यान नहीं जाता। इस प्रसंग में
निम्नलिखित बात बड़ी महत्त्वपूर्ण है। निस्सन्देह कुछ लोगों को सदा अपना लिखा
हुआ प्रत्येक पत्र भेजने से पहले दुबारा पढ़ने की आदत होती है। कुछ लोग ऐसा
नहीं करते; पर यदि ये लोग कभी किसी पत्र को दुबारा पढ़ें तो उन्हें कोई-न-कोई
महत्वपूर्ण गलती देखने और उसे सही करने का मौका सदा मिलता है। इसकी कैसे
व्याख्या की जाए। यह तो कछ ऐसा मालम होता है, जैसे उन्हें पता था कि उन्होंने
पत्र लिखने में कोई गलती की है। क्या हम सचमुच यह मान सकते हैं कि ऐसी बात
थी?
लिखने की गलतियों के व्यावहारिक महत्त्व के साथ एक मनोरंजक समस्या जुड़ी हुई
है। आपको उस हत्यारे ह का मामला याद होगा जिसने अपने-आपको जीवाणुशास्त्री1
बताकर वैज्ञानिक संस्थाओं से बड़े भयंकर रोगाणु-बीज प्राप्त कर लिये थे, पर
उनका उपयोग उसने अपने से सम्बन्धित व्यक्तियों से इस बिलकुल नये तरीके द्वारा
पिण्ड छुड़ाने में किया। इस व्यक्ति ने एक बार एक वैज्ञानिक संस्था के
अधिकारियों से शिकायत की कि मुझे भेजे गए रोगाणु-बीज प्रभावहीन थे, पर उसने
लिखने में एक गलती कर दी; पत्र में यह लिखने के बजाय कि 'Mausen and
Meerchweinchen' (चूहों और गिनी-पिगों) पर किए गए मेरे परीक्षणों में, उसने
लिखा कि 'Menschen' (लोगों) पर किए गए मेरे परीक्षणों में ये शब्द साफ पढ़े
जाते थे। इस गलती की ओर उस संस्था के डाक्टरों का ध्यान भी गया, पर जहां तक
मैं जानता हूं, उन्होंने इससे कोई नतीजा नहीं निकाला। अब आपका क्या विचार है?
क्या यह अच्छा नहीं होता कि डाक्टर उस गलती को उसकी अपराध-स्वीकृति मानते, और
जांच शुरू कर देते, जिससे हत्यारे की हलचलें समय पर रोकी जा सकतीं? इस उदाहरण
में क्या यह उपेक्षा, जो असल में बड़ी महत्त्वपूर्ण हो सकती थी, इसलिए नहीं
की गई कि हमें गलतियों की अपनी अवधारणा के बारे में जानकारी नहीं थी। मैं
कहता हूं कि लिखने की इस तरह की गलती से मेरे मन में निश्चय ही बड़ा सन्देह
पैदा हो गया होता, पर इसे अपराध-स्वीकृति मानने के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण
आपत्ति है। यह मामला इतना सीधा नहीं है। लिखने की गलती निश्चित रूप से एक
संकेत है, पर सिर्फ इसके आधार पर जांच करना उचित न होता। इससे यह बात सचमुच
सामने आती है कि वह आदमी मनुष्यों को रोगाणुओं से प्रभावित करने की बात सोच
रहा है, पर इससे यह बात निश्चित रूप से नहीं प्रकट होती कि यह विचार हानि
पहुंचाने की कोई सुनिश्चित योजना है; या एक कल्पना-मात्र है, जिसका व्यवहार
में कोई महत्त्व नहीं। यह भी सम्भव है कि ऐसी गलती करने वाला आदमी इस बात से
इनकार करे, और उसकी दृष्टि से उसका इनकार करना ठीक ही होगा, कि उसके मन में
कोई ऐसी कल्पना थी, और वह इस विचार को अपने से बिलकुल अपरिचित बताएगा। बाद
में, जब हम मानसिक यथार्थता और भौतिक यथार्थता के अन्तर पर विचार करेंगे, तब
आप इन सम्भावनाओं को अधिक अच्छी तरह समझ सकेंगे। पर यह भी वैसा ही उदाहरण है,
जिसमें बाद में गलती का ऐसा अर्थ निकल आया, जिसकी आशंका नहीं थी।
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1. Bacteriologist
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