गजलें और शायरी >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
|
7 पाठकों को प्रिय 173 पाठक हैं |
तुम्हारे सजने-सँवरने के काम आयेंगे, मेरे खयाल के जेवर सम्भाल कर रखना....
3
सागर था क्या हुआ उसे झीलों में बँट गया
सागर था क्या हुआ उसे झीलों में बँट गया।
हिन्दोस्तान कितने क़बीलों में बँट गया।।
एहसास सच का झूठी दलीलों में बँट गया,
ये ज़िन्दगी का केस वकीलों में बँट गया।
ख़ुदगर्ज़ियों ने खींच दिये दायरे तमाम,
हर शख़्स अपनी-अपनी फ़सीलों में बँट गया।
कोई थकन को बाँटने वाला नहीं मिला,
हमने सफ़र जो तय किया मीलों मे बँट गया।
तश्नालबों को देख के आगे नहीं बढ़ा,
दरिया ठहर के सारा सबीलों में बँट गया।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book