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गजलें और शायरी >> संभाल कर रखना

संभाल कर रखना

राजेन्द्र तिवारी

प्रकाशक : उत्तरा बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8809
आईएसबीएन :9788192413822

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तुम्हारे सजने-सँवरने के काम आयेंगे, मेरे खयाल के जेवर सम्भाल कर रखना....



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दिल को क्या सूझी है क्या गुल ये खिलाना चाहे


दिल को क्या सूझी है क्या गुल ये खिलाना चाहे।
क़ैद से छूट के फिर क़ैद में आना चाहे।।

कौन होगा जो न सीने से लगाना चाहे,
जब नदी कोई समन्दर में समाना चाहे।

आग बुझ जाती है पानी का बदन छूते ही,
लग भी सकती है, अगर कोई लगाना चाहे।

प्यार ख़ुश्बू है वो सांसों से महक जायेगा,
छुप नहीं सकता कोई लाख छुपाना चाहे।

अपनी परवाज़ से ग़ाफ़िल है परिन्दा शायद,
आस्मां छोड़ के पिंजरे को बसाना चाहे।

प्यार जंगल में तपस्या से नहीं मिलता है,
तुम ज़माने को जो चाहो तो ज़माना चाहे।

जाओ जाते हो मगर लौट के तुम आओगे,
हमसे वादा तो करो, फिर न निभाना चाहे।

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