पत्र एवं पत्रकारिता >> शब्दों की दहलीज से शब्दों की दहलीज सेरेणुका नैयर
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समाचार पत्रों में प्रकाशित रेणुका जी के सम्पादकीय लेखों का संग्रह
यद्यपि सम्पादकीय लेखों को रचनात्मक साहित्य का अंग मानने में कुछ विद्वान हिचकिचाते हैं, लेकिन यह हिचकिचाहट सिर्फ उन लोगों की विवशता है, जिन्होंने सम्पादकीय प्रक्रिया को करीब से नहीं देखा।
कई बार तो ऐसा भी लगता है कि सम्पादकीय लेखों में सृजनशीलता का दबाव ज्यादा झलकता है। सामयिक सन्दर्भों पर सटीक लेखन तब तक नामुमकिन है, जब तक वैचारिक प्रतिबद्धता न हो।
रेणुका नैयर के काव्यमय सम्पादकीय लेखों की एक विशेषता यह भी है कि उन्होंने मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक सरोकारों, स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, राजनैतिक वैचारिकता, छन्द विसंगतियों व जीवन मूल्यों को प्रमुखता दी। ज्यादातर लेख संदेशमूलक हैं और विश्लेषणात्मक भी। आतंकवाद के दिनों में मानवीय मूल्यों व मानवीय संवेदनाओं से सम्बद्ध उनके लेख समसामयिक इतिहास, समकालीन समाज व वैचारिकता को प्रखरता के साथ प्रस्तुत करते हैं।
कई बार तो ऐसा भी लगता है कि सम्पादकीय लेखों में सृजनशीलता का दबाव ज्यादा झलकता है। सामयिक सन्दर्भों पर सटीक लेखन तब तक नामुमकिन है, जब तक वैचारिक प्रतिबद्धता न हो।
रेणुका नैयर के काव्यमय सम्पादकीय लेखों की एक विशेषता यह भी है कि उन्होंने मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक सरोकारों, स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, राजनैतिक वैचारिकता, छन्द विसंगतियों व जीवन मूल्यों को प्रमुखता दी। ज्यादातर लेख संदेशमूलक हैं और विश्लेषणात्मक भी। आतंकवाद के दिनों में मानवीय मूल्यों व मानवीय संवेदनाओं से सम्बद्ध उनके लेख समसामयिक इतिहास, समकालीन समाज व वैचारिकता को प्रखरता के साथ प्रस्तुत करते हैं।
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