धर्म एवं दर्शन >> धर्म सार - 12 महीनो के व्रत और त्योहार धर्म सार - 12 महीनो के व्रत और त्योहारसूर्यकान्ता देवी
|
4 पाठकों को प्रिय 2 पाठक हैं |
हिन्दू धर्म के वर्ष भर में मनाये जाने वाले सभी व्रतों एवं त्योहारों के कारण और विधियों का वर्णन
व्रत क्यों किये जायें?
वर्ष भर में आने वाले व्रत-त्यौहारों का विश्लेषण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव-शरीर एवं मन को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से किया गया है। ग्रीष्म, वर्षा और शीत इन ऋतुओं के अनुरूप व्रत उपवासों की रचना हमारे मनीषियों ने की है। वर्षाकाल में प्रतिदिन कोई न कोई महत्वपूर्ण उपवास इसका अच्छा उदाहरण है।
मन की शुद्धि के लिये, वातावरण की पवित्रता के लिये और उच्च भावनाओं से दूसरों को प्रभावित करने के लिये व्रत करते हैं। विचारों को ऊँचा उठाने के लिये उपवास से बढ़कर कोई दूसरी चीज नहीं होती। व्रत दो प्रकार के होते हैं, काम्य और नित्य। काम्य वे हैं जो किसी कामना के लिये किये जाते हैं और नित्य वे हैं जिनमें कामना नहीं होती केवल भक्ति और ब्रेम होता है। निष्काम, निस्वार्थ व्रत का ही स्थान ऊँचा है।
व्रत के मुख्य अंग ध्यान और मनन है, परंतु साधारणतः लोग उपवास को ही व्रत समझते हैं। उपवास की व्याख्या वृद्ध कात्यायन ने यों की है - पापों से निवृत्त हुये मनुष्य का गुणों के साथ वास ही उपवास है।
गृहस्थाश्रम में अपने-अपने आराध्य की आराधना एक महत्वपूर्ण कर्त्तव्य है। आध्यात्मिक वातावरण से गृहस्थी की अनेकों समस्यायें सुचारु रूप से सुलझाई जा सकती हैं। पूजन-अर्चन, आध्यात्म की ओर बढ़ने का मार्ग है। जप मन को एकाग्र करता है। व्रत-उपवास भौतिक शक्ति से मानसिक शक्ति को जगाते हैं। इस सबसे स्वस्थ तन, शुद्ध मन एवं निर्मल बुद्धि प्राप्त होती है। अतः इनका मानव जीवन में मअत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
व्रतों के साथ पर्व त्योहारों का भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। इनसे भी हमें अनेक लाभ हैं। वास्तव में पर्व त्यौहार हमारी प्राचीन संस्कृति और सामाजिक दृष्टि से पथ-प्रदर्शक के रूप में आते है, ताकि हम अपने पूर्वजों द्वारा बनाई गई उच्च परम्पराओं-सामाजिक मूल्यों एवं समाजोपयोगी रीति-रिवाजों को कायम रखकर सम-सामयिक संदर्भों में उनसे प्रेरणा एवं प्रोत्साहन प्राप्त करें।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता में पर्व त्यौहार तो इस तरह से रचे बसे हैं कि उनके बिना जीवन का आनंद अधूरा लगता है। मानव दीवन को सफल बनाने के लिये तीर्थ-दान-व्रत और त्यौहारों का प्रमुख हाथ है, यह हर समाज में समय-समय पर किये जाते हैं। इन्हीं कारणों से बिना त्योहारों के मानव जीवन का आनंद अधूरा रह जाता है। इसी कारण त्योहारों के देश भारत में बारहों मास कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है।
उत्सवों और त्यौहारों के पीछे एक बात ही नहीं, इतिहास भी है, पवित्र गाथायें भी हैं। उन्हें मानकर हम अपने प्रातः स्मरणीय पूर्वजों के आदर्श जीवन को हर वर्ष ध्यान में लाकर उनके अनुकरणीय चरित्रों को पढ़ सुन कर स्वयं केऔर अपनी सन्तानों के जीवन को वैसा बनाने की कोशिश करते हैं।
वर्ष भर में आने वाले व्रत-त्यौहारों का विश्लेषण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव-शरीर एवं मन को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से किया गया है। ग्रीष्म, वर्षा और शीत इन ऋतुओं के अनुरूप व्रत उपवासों की रचना हमारे मनीषियों ने की है। वर्षाकाल में प्रतिदिन कोई न कोई महत्वपूर्ण उपवास इसका अच्छा उदाहरण है।
मन की शुद्धि के लिये, वातावरण की पवित्रता के लिये और उच्च भावनाओं से दूसरों को प्रभावित करने के लिये व्रत करते हैं। विचारों को ऊँचा उठाने के लिये उपवास से बढ़कर कोई दूसरी चीज नहीं होती। व्रत दो प्रकार के होते हैं, काम्य और नित्य। काम्य वे हैं जो किसी कामना के लिये किये जाते हैं और नित्य वे हैं जिनमें कामना नहीं होती केवल भक्ति और ब्रेम होता है। निष्काम, निस्वार्थ व्रत का ही स्थान ऊँचा है।
व्रत के मुख्य अंग ध्यान और मनन है, परंतु साधारणतः लोग उपवास को ही व्रत समझते हैं। उपवास की व्याख्या वृद्ध कात्यायन ने यों की है - पापों से निवृत्त हुये मनुष्य का गुणों के साथ वास ही उपवास है।
गृहस्थाश्रम में अपने-अपने आराध्य की आराधना एक महत्वपूर्ण कर्त्तव्य है। आध्यात्मिक वातावरण से गृहस्थी की अनेकों समस्यायें सुचारु रूप से सुलझाई जा सकती हैं। पूजन-अर्चन, आध्यात्म की ओर बढ़ने का मार्ग है। जप मन को एकाग्र करता है। व्रत-उपवास भौतिक शक्ति से मानसिक शक्ति को जगाते हैं। इस सबसे स्वस्थ तन, शुद्ध मन एवं निर्मल बुद्धि प्राप्त होती है। अतः इनका मानव जीवन में मअत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
व्रतों के साथ पर्व त्योहारों का भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। इनसे भी हमें अनेक लाभ हैं। वास्तव में पर्व त्यौहार हमारी प्राचीन संस्कृति और सामाजिक दृष्टि से पथ-प्रदर्शक के रूप में आते है, ताकि हम अपने पूर्वजों द्वारा बनाई गई उच्च परम्पराओं-सामाजिक मूल्यों एवं समाजोपयोगी रीति-रिवाजों को कायम रखकर सम-सामयिक संदर्भों में उनसे प्रेरणा एवं प्रोत्साहन प्राप्त करें।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता में पर्व त्यौहार तो इस तरह से रचे बसे हैं कि उनके बिना जीवन का आनंद अधूरा लगता है। मानव दीवन को सफल बनाने के लिये तीर्थ-दान-व्रत और त्यौहारों का प्रमुख हाथ है, यह हर समाज में समय-समय पर किये जाते हैं। इन्हीं कारणों से बिना त्योहारों के मानव जीवन का आनंद अधूरा रह जाता है। इसी कारण त्योहारों के देश भारत में बारहों मास कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है।
उत्सवों और त्यौहारों के पीछे एक बात ही नहीं, इतिहास भी है, पवित्र गाथायें भी हैं। उन्हें मानकर हम अपने प्रातः स्मरणीय पूर्वजों के आदर्श जीवन को हर वर्ष ध्यान में लाकर उनके अनुकरणीय चरित्रों को पढ़ सुन कर स्वयं केऔर अपनी सन्तानों के जीवन को वैसा बनाने की कोशिश करते हैं।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next