विविध >> उड्डीश एवं क्रियोड्डीश तंत्र उड्डीश एवं क्रियोड्डीश तंत्रआचार्य रामानन्द सरस्वती
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महापंडित लंकाधिपति रावण विरचित दो दुर्लभ तंत्र-ग्रंथों का सरल-सहज भाषा में विवेचन....
ऋषि-मुनियों के वंश में उत्पन्न आसुरीवृत्ति पंडित रावण ने घोर तपस्या कर जो सिद्धियां हस्तगत की थीं, उन्हीं की सरल विधि इस तंत्र ग्रंथ में दी गई है। यदि आज का मानव भी ऐसी सिद्धियां हस्तगत करना चाहे तो दुर्लभ नहीं है। लेकिन ऐसे साधक को श्रमशील, लगनशील तथा आस्थावान होना चाहिये।
उड्डीश तंत्र में जिन सिद्धियों का वर्णन किया गया है, उनमें पादुका सिद्धि, जलोपरिभ्रमण सिद्धि, लोपासिद्धि, मृतसंजीवनी विद्या आदि हैं। इन सभी का उपदेश महामहिम रावण को स्वयं शिव ने दिया था।
उड्डीश तंत्र के महत्व को स्वयं शंभु ने प्रतिपादित करते हुये कहा भी है कि -
उड्डीशं यो न जानाति स रुष्टः किं करिष्यति।
मेरुं चालयते स्थानात्सागरैः प्लावयेन महीम्।।
अर्थात जो उड्डीश तंत्र के महत्व से अनभिज्ञ है, वह अन्य पर क्रोध करे भी तो व्यर्थ ही है। उड्डीश तंत्र का ज्ञाता मनुष्य चाहे तो पर्वत को हिला सकता है, सागर का स्थान परिवर्तन भी कर सकता है।
ऐसे मनुष्य में विलक्षण शक्तियों का समावेश हो जाता है।
उड्डीश तंत्र में जिन सिद्धियों का वर्णन किया गया है, उनमें पादुका सिद्धि, जलोपरिभ्रमण सिद्धि, लोपासिद्धि, मृतसंजीवनी विद्या आदि हैं। इन सभी का उपदेश महामहिम रावण को स्वयं शिव ने दिया था।
उड्डीश तंत्र के महत्व को स्वयं शंभु ने प्रतिपादित करते हुये कहा भी है कि -
उड्डीशं यो न जानाति स रुष्टः किं करिष्यति।
मेरुं चालयते स्थानात्सागरैः प्लावयेन महीम्।।
अर्थात जो उड्डीश तंत्र के महत्व से अनभिज्ञ है, वह अन्य पर क्रोध करे भी तो व्यर्थ ही है। उड्डीश तंत्र का ज्ञाता मनुष्य चाहे तो पर्वत को हिला सकता है, सागर का स्थान परिवर्तन भी कर सकता है।
ऐसे मनुष्य में विलक्षण शक्तियों का समावेश हो जाता है।
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