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नारी विमर्श >> नारी कामसूत्र

नारी कामसूत्र

विनोद वर्मा

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :343
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8776
आईएसबीएन :9788171195480

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लेखिका ने त्रिगुण पर आधारित एक नए सिद्धां का प्रतिपादन करते हुए नारी तत्व और पुरुष तत्व के आधआर पर नारी की मूल प्रकृति के अंतर को प्रतिपादित किया है

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पुरातन काल में नारी और काम, दोनों विषयों पर हमारे देश में बहुत कुछ लिखा गया। वात्स्यायन द्वारा रचित ‘कामसूत्र’ में तथा चरक और सुश्रुत के आयुर्वेद ग्रंथों में में नारी के काम से संबंधित कई पहलुओं पर ज्ञान प्राप्त हुआ। आयुर्वेद के आचार्यों ने गर्भ, प्रसव आदि विषयों पर भी बहुत विस्तार से लिखा। किंतु पुरुषों द्वारा रचित इन ग्रंथों में नारी को पुरुष-दृष्टि से देखते हुए उसमें सहचरी एवं जननी का रूप ही देखा गया है। नारी की इच्छाएँ, अनिच्छाएँ, उसकी आर्तव संबंधी समस्याएँ तथा उनका उसके काम-जीवन से संबंध और ऐसे अनेक विषय पुरुष-दृष्टि से छिपे ही रहे।

‘नारी कामसूत्र’ में न केवल इन सब विषयों का विस्तार से वर्णन है, बल्कि आधुनिक नारियों की समस्याओं तथा हमारे युग के बदलते पहलुओं के संदर्भ में नारी और नारीत्व को देखा है।

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