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नारी विमर्श >> औरत : कल आज और कल

औरत : कल आज और कल

आशा रानी व्होरा

प्रकाशक : कल्याणी शिक्षा परिषद् प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8775
आईएसबीएन :000000000

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श्रीमती व्होरा की महिला-उपलब्धियों पर बेजोड़ पुस्तक-माला की ही नवीनतम कड़ी है औरत : कल, आज और कल....

Ek Break Ke Baad

पौराणिक या प्रागैतिहासिक काल की सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा जैसी देवियों को एक ओर पूजा स्थल पर ही रख कर देखें तो भारत के इतिहास में वैदिक काल की अपाला, घोषा, वाक्, सूर्या, सावित्री जैसी मंत्रदृष्टा ऋषिकाएं, उपनिषद् काल की गार्गी, मैत्रेयी जासी विदुषियां, मध्यकाल व पूर्व-आधुनिक काल की अहिल्याबाई होल्कर, रजिया बेगम जैसी शासक और चांदबीबी, लक्ष्मीबाई जैसी वीर स्त्रियां अपना गौरवपूर्ण स्थान रखती हैं। पर सामान्य स्त्री का इतिहास इससे अलग रहा है। प्राचीनकाल की अधिकार-संपन्न भारतीय नारी मध्यकाल के बाद 19वीं शताब्दी तक आते-आते लगभग पूरी तरह अधिकारविहीन व पर निर्भर हो चुकी थी।

पर स्वतंत्रता-पूर्व नवजागरणकाल से स्थिति बदलने लगी थी। आजादी की लड़ाई और सामाजिक सुधारों में बराबर की हिस्सेदारी से भारतीय स्त्री को स्वतंत्र भारत के संविधान में अनायास ही बराबरी के वैधानिक अधिकार मिल गए। उन्नत कहे जाने वाले पश्चिमी देशों की स्त्रियों के लिए, जिन्हें पुरुष-प्रतिद्वन्दिता में पड़कर अपने वोट के अधिकार के लिए भी घोर अपमान सहते हुए, अस्सी वर्ष लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। यह एक आश्चर्यजनक घटना थी और भारतीय महिलाओं की अभूतपूर्व सफलता, इसलिए कि हमारे यहां स्त्रियों को अपने अधिकारों के लिए अलग संघर्ष नहीं करना पड़ा। नवजागरण काल के सामाजिक सुधार हों या अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम, भारतीय स्त्रियों अपनी लड़ाई पुरुषों की अगुवाई में, उनके साथ-सहयोग से, उनके कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी थी, इसलिए किसी भी क्षेत्र में उतरने के लिए उन्होंने मार्ग की बाधाओं को आसानी से पार किया। देश की आजादी के तुरंत बाद उन्हें मिले बराबरी के अधिकार इसी साझी लड़ाई के प्रतिफल-स्वरूप थे।

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