नारी विमर्श >> औरत होने की सजा औरत होने की सजाअरविन्द जैन
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पुस्तक पढ़ने के बाद हो सकता है, आपको भी लगे, ‘‘अरे, ऐसे भी कानून हैं ? मुझे तो अभी तक पता ही नहीं था!’’ या फिर, ‘‘हम तो सोच भी नहीं सकते कि सुप्रीम कोर्ट से सजा के बावजूद हत्यारे सालों छुट्टे घूम सकते हैं।’’
Aurat Hone Ki Saja - A Hindi Book by Arvind Jain
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हंस, जुलाई 1993 के संपादकीय में राजेन्द्र यादव ने लिखा था. ‘‘कितना सही नाम रखा है अरविन्द जैन ने अपनी पुस्तक का ‘औरत होने की सजा’... कहती रहिये आप सारे कानूनों को सामंती, सवर्णवादी सा मेल-श़ॉवेनिस्टिक... हम क्यों उस कानून में आसानी से फेर-बदल करें जो हमारे ही वर्चस्व में सेंध लगाते हों ? अरविन्द जैन का कहना है कि समाज, सत्ता, संसद और न्यायपालिका पर पुरुषों का अधिकार होने की वजह से सारे कानून और उनकी व्याख्याएं इस प्रकार से की गई हैं कि आदमी के बच निकलने के हजारों चोर दरवाजे मौजूद हैं जबकि औरत के लिए कानूनी चक्रव्यूह से निकल पाना एकदम असंभव..’’
कानूनी प्रावधानों की चीर-फाड़ करते और अदालती फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाते ये लेख कानूनी अंतर्विरोधों और विसंगतियों के प्रामाणिक खोजी दस्तावेज हैं जो निश्चित रूप से गम्भीर अध्ययन, मौलिक चिंतन और गहरे मानवीय सरोकारों के बिना संभव नहीं। ऐसा काम सिर्फ वकील, विधिवेत्ता या शोध छात्र के बस की बात नहीं। कानूनी पेचीदगियों को साफ, सरल और सहज भाषा में ही नहीं, बल्कि बेहद रोचक, रचनात्मक और नवीन शिल्प में भू लिखा गया है।
कानूनी प्रावधानों की चीर-फाड़ करते और अदालती फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाते ये लेख कानूनी अंतर्विरोधों और विसंगतियों के प्रामाणिक खोजी दस्तावेज हैं जो निश्चित रूप से गम्भीर अध्ययन, मौलिक चिंतन और गहरे मानवीय सरोकारों के बिना संभव नहीं। ऐसा काम सिर्फ वकील, विधिवेत्ता या शोध छात्र के बस की बात नहीं। कानूनी पेचीदगियों को साफ, सरल और सहज भाषा में ही नहीं, बल्कि बेहद रोचक, रचनात्मक और नवीन शिल्प में भू लिखा गया है।
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