नारी विमर्श >> आजाद औरत कितनी आजाद आजाद औरत कितनी आजादशैलेन्द्र सागर, रजनी गुप्ता
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अच्छी बात यह है कि यहाँ स्त्री ही स्त्री-निमर्श करती नजर नहीं आती, पुरुष विचारक भी साथ में हैं...
औरत की आजादी को लेकर वाद विवाद और संवाद तो खूब होता रहा है,लेकिन आजाद औरत कितनी आजाद है, इस पर विधिवत विमर्श कम ही हुआ है। यह पुस्तक इस दृष्टि से बेहतर दुनिया की तलाश है।
यहां एक ओर पुरुष वर्चस्व और स्त्री-मुक्ति की चुनौतियों को समझने की कोशिश सामने है तो स्त्री के आधआरभूत सम्मान को प्रश्न को रेखांकित करने की भी। औरत की बदलती दुनिया पर एक नजर दिखाई देती है तो स्त्री-विमर्श की चुनौतियों और संभावनाओं के साध-साथ नारीवाद की विचारभूमि भी प्रस्तुत है।
इस पुस्तक का मंतव्य स्त्री-संघर्ष के विविध पहलुओं को सामने रखते हुए भूमंडलीकृत समय में स्त्री-मुक्ति की दिशा की सही तस्वीर सामने रखला है।
यहां एक ओर पुरुष वर्चस्व और स्त्री-मुक्ति की चुनौतियों को समझने की कोशिश सामने है तो स्त्री के आधआरभूत सम्मान को प्रश्न को रेखांकित करने की भी। औरत की बदलती दुनिया पर एक नजर दिखाई देती है तो स्त्री-विमर्श की चुनौतियों और संभावनाओं के साध-साथ नारीवाद की विचारभूमि भी प्रस्तुत है।
इस पुस्तक का मंतव्य स्त्री-संघर्ष के विविध पहलुओं को सामने रखते हुए भूमंडलीकृत समय में स्त्री-मुक्ति की दिशा की सही तस्वीर सामने रखला है।
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