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नारी विमर्श >> औरत के लिए औरत

औरत के लिए औरत

नासिरा शर्मा

प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8772
आईएसबीएन :8171380425

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इन लेखों में जीवन की आंच भी है और आस भी कि स्वयं नारी अपने प्रति होते हुए अत्याचारों और शोषण का रुख बदलेगी..

Ek Break Ke Baad

औरत को लेकर पिछले पचास वर्षों में का फी काम हुआ है, मगर समाजशास्त्र की दृष्टि से 'स्त्री-विमर्श' नाम का मुहावरा हिंदी साहित्य में पहुत बाद में बहस का मुद्दा बना। चाहे उस अन्तर्राष्ट्रीय दहाई को इसका श्रेय मिले या फिर उस जागरूकता को जिसका उदय सामूहिक स्तर पर पश्चिमी देशों में हुआ।

व्क्तिगत स्तर पर इसका प्रारंभ मैं तबसे मानती हूँ जबसे औरत ने घर की चुनौतियों के बीच रहना स्वीकार किया। आज दुनिया पेचीदा हो गई है, उसी तरह जैसे इंसानी रिश्ते भी, इसलिए उसको सुलझाना किसी एक के बस में नहीं है। आज समस्याएं कुछ इस तरह से जुड़ी हुँ कि उलका हल सामूहिक प्रयास द्वारा ही संभव है। इस सच को विश्व स्तर पर समझा गया और इसी के चलते 1975 में मैक्सिको में पहला संयुक्त राष्ट् महिला सम्मेलन आयोजित हुआ। 1975 महिला वर्ष घोषित हुआ और इसी के साथ पूरे एक दशक तक संसार भर में नारी-चेतना को लेकर काम शुरू हुए।

उत्पीड़ित स्त्री संसार में तो हलचल मची ही, साथ ही वह वर्ग भी जागा जो दुनिया की आधी आबादी के प्रति पूरी तरह उदासीन था।

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