नारी विमर्श >> पिछले पन्ने की औरतें पिछले पन्ने की औरतेंशरद सिंह
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छिपी रहती है हर औरत के भीतर एक और औरत, लेकिन लोग अकसर देखते हैं सिर्फ बाहर की औरत
Ek Break Ke Baad
इस उपन्यास में जिन औरतों को पात्र के रूप में रखा गया है वे सदियों से सामाजिक उपेक्षा, और्थिक विपन्नता और दैहिक शोषण को अपनी नियति मानकर सहती आ रही हैं। वे बेड़नियों के नाम से भी जानी जाती हैं। ये जिस समुदाय से हैं उसमें धनार्जन का मुख्य साधन नाचना-गाना ही माना जाता है। मगर क्या सच सिर्फ यही है?
समाज में इन औरतों की उपस्थिति का अनुभव तो किया जाता है, किंतु इनके प्रति संवेदनात्मक अनभूति कभी-कभार ही उपजती है। अधिकांश लोगों के लिये ये औरतें ‘बेड़नी’ मात्र हैं, जिन्हें नाचने वाली के रूप में नचाया जा सकता है, जिन्हें भोगा जा सकता है और जिन्हें परम्पराओं की जंजीरों में जकड़ कर बंधुआ बनाए रखा जा सकता है, किंतु जिन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के प्रयत्न यदा-कदा ही उठते हैं। स्त्री-विमर्श पर आधारित इस उपन्यास में सदियों से दलित, पीड़ित, शोषित और उपेक्षित स्त्रियों की जीवन-दशाओं एवं उनसे जुड़ी समस्याओं को रेखांकित किया गया है।
समाज में इन औरतों की उपस्थिति का अनुभव तो किया जाता है, किंतु इनके प्रति संवेदनात्मक अनभूति कभी-कभार ही उपजती है। अधिकांश लोगों के लिये ये औरतें ‘बेड़नी’ मात्र हैं, जिन्हें नाचने वाली के रूप में नचाया जा सकता है, जिन्हें भोगा जा सकता है और जिन्हें परम्पराओं की जंजीरों में जकड़ कर बंधुआ बनाए रखा जा सकता है, किंतु जिन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के प्रयत्न यदा-कदा ही उठते हैं। स्त्री-विमर्श पर आधारित इस उपन्यास में सदियों से दलित, पीड़ित, शोषित और उपेक्षित स्त्रियों की जीवन-दशाओं एवं उनसे जुड़ी समस्याओं को रेखांकित किया गया है।
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