कहानी संग्रह >> पानी के बुलबुले पानी के बुलबुलेप्रवेश धवन
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प्रस्तुत कहानी संग्रह की सभी 12 कहानियां कोरी कल्पना लोक की कहानियां नहीं अपितु जमीन से जुड़ी हुई कहानियां हैं
प्रवेश धवन को अपने आसपास के परिवेश की प्रामाणिक जानकारी है। वह नारी मन के स्तर-दर-स्तर फैले अंतर्द्वन्दों का सहज आकलन तो करती ही हैं, पर कुछ ऐसी स्थितियों को भी निर्दिष्ट करती हैं जिन पर पाठकों को सोचने के लिए ठहरने का धीरज संजोना पड़ता है।
कथा संग्रह की प्रथम कहानी, ‘नीलिमा’ में विदूषी अपने आफिस के एक ऐसे विवाहित पुरुष से प्रेम कर बैठती है जो तीन बच्चों का पिता है। उससे वह दाम्पत्य जीवन का भरपूर आनन्द उठाती है। पर उसका प्रेम स्वार्थ की धरातल पर टिका था क्योंकि समीर के रिटायर होते ही उसमें विदूषी की रुचि कम हो जाती है और उसका झुकाव अपने नये बॉस की तरफ हो जाता है। दूसरी ओर नीलिमा जो समीर की पत्नी है, अपनी सारी जिन्दगी तपस्या के रूप में बिता देती है और केवल समीर की होते हुये भी ब्रह्मचर्य का व्रत ले लेती है। परिस्थितियां चाहे कुछ भी रही हों, वह धारज का साथ नहीं छोड़ती और उनका सामना करती है। अन्ततः जीवन के अन्तिम पड़ाव में समीर उसी तरह घर लौटता है जैसे संध्या बेला में पक्षी अपने घोंसलों में लौटते हैं और जीवन की सांझ में दोनों, एक छत के नीचे, एक दूसरे का सुख-दुःख बांटते हुये, दो मित्रों की तरह जीवन बिताने लगते हैं।
कथा संग्रह की प्रथम कहानी, ‘नीलिमा’ में विदूषी अपने आफिस के एक ऐसे विवाहित पुरुष से प्रेम कर बैठती है जो तीन बच्चों का पिता है। उससे वह दाम्पत्य जीवन का भरपूर आनन्द उठाती है। पर उसका प्रेम स्वार्थ की धरातल पर टिका था क्योंकि समीर के रिटायर होते ही उसमें विदूषी की रुचि कम हो जाती है और उसका झुकाव अपने नये बॉस की तरफ हो जाता है। दूसरी ओर नीलिमा जो समीर की पत्नी है, अपनी सारी जिन्दगी तपस्या के रूप में बिता देती है और केवल समीर की होते हुये भी ब्रह्मचर्य का व्रत ले लेती है। परिस्थितियां चाहे कुछ भी रही हों, वह धारज का साथ नहीं छोड़ती और उनका सामना करती है। अन्ततः जीवन के अन्तिम पड़ाव में समीर उसी तरह घर लौटता है जैसे संध्या बेला में पक्षी अपने घोंसलों में लौटते हैं और जीवन की सांझ में दोनों, एक छत के नीचे, एक दूसरे का सुख-दुःख बांटते हुये, दो मित्रों की तरह जीवन बिताने लगते हैं।
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