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सागर लहरें और भंवर

प्रवेश धवन

प्रकाशक : मंजुली प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8768
आईएसबीएन :8188170364

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हृदय के उद्गार कहे तुमसे तो मन कुछ शांत हुआ।
रात बिछोह के बाद मिलन हुआ तो मन कुछ शांत हुआ।

Sagar Laharen Aur Bhanwar

सच्ची कविता जीवन और समाज दोनों को सही दिशा-दृष्टि देने वाली होती है। वह जीवन को संस्कारित करती है। वह व्यक्ति के संवेदन को सक्रिय बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है- इसका अहसास प्रसिद्ध लेखिका सुश्री प्रवेश धवन की यह कृति सागर, लहरें और भंवर बखूबी कराती है।

बचपन से लिखती आई हूँ। जो कुछ भी मन में आता लिख देती। शुरू से ही संवेदनशील स्वभाव पाया था। अपना निजी दुख हो या किसी और का दुख, मुझे अंदर ही अंदर देर तक सालता रहता और मैं बेचैन हो उठती। ऐसे में अपने भावों को कविता के रूप ढाल कर एक आत्म-तृप्ति का अनुभव करती। हमेशा यही सोचा कि अपने लिये लिख रही हूँ। कभी लगा ही नहीं कि मैं इस योग्य हूँ कि इसे पुस्तक रूप में प्रकाशित कर सकूँगी।

बहुत साहस करके आपके समक्ष प्रस्तुत हूँ अपनी इन रचनाओं के साथ। कुछ खुशी और कुछ घबराहट है मन में। क्या मैं इस कसौटी पर खरी उतरूंगी? केवल समय और आप ही बता सकेंगे कि आपने मुझे स्वीकार किया कि नहीं।

हृदय के उद्गार कहे तुमसे
तो मन कुछ शांत हुआ।
रात बिछोह के बाद मिलन हुआ
तो मन कुछ शांत हुआ।
प्यासी धरा पर शीतल जल बरसा
तो मन कुछ शांत हुआ।
सागर, लहर, भंवर के गीत सुने तुमने
तो मन कुछ शांत हुआ।


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