भाषा एवं साहित्य >> सूर पदावली सूर पदावलीवाग्देव
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सूरकृत ‘विरह पदावली’, ‘श्रीकृष्ण बाल-माधुरी’ और ‘राम चरितावली’ के प्रमुख पदों की सरल भावार्थ सहित प्रस्तुति
कृष्ण-भक्ति शाखा के कवियों में महाकवि सूरदास का नाम शीर्ष पर प्रतिष्ठित है। अपनी रचनाओं में उन्होंने अपने आराध्य भगवान् श्रीकृष्ण का लीला-गायन पूरी तन्मयता के साथ किया है।
घनश्याम सूर के रोम-रोममें बसते हैं। गुण-अवगुण, सुख-दुःख, राग-द्वेष, लाभ-हानि, जीवन-मरण-सब अपने इष्ट को अर्पित कर वे निर्लिप्त भाव से उनका स्मरण-सुमिरन एवं चिंतन-मनन करते रहे।
सूरदासजी मनुष्यमात्र के कल्याण की भावना से ओतप्रोत रहे। उनके अप्रत्यक्ष उपदेशों का अनुकरण करके हम अपने जीवन की दैवी स्पर्श से आलोकित कर सकते हैं-इसमें जरा भी संदेह नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में सूरदासजी के ऐसे दैवी पदों को संकलित किया गया है, जिनमें जन-कल्याण का संदेश स्थान-स्थान पर पिरोया गया है।
पुस्तक में सूरकृत ‘विरह पदावली’, ‘श्रीकृष्ण बाल-माधुरी’ और ‘राम चरितावली’ के प्रमुख पदों को सरल भावार्थ सहित प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि सामान्य पाठक भी उन्हें सरलता से ग्रहण करके भक्तिरस के आनंद-सागर में गोता लगा सकें।
घनश्याम सूर के रोम-रोममें बसते हैं। गुण-अवगुण, सुख-दुःख, राग-द्वेष, लाभ-हानि, जीवन-मरण-सब अपने इष्ट को अर्पित कर वे निर्लिप्त भाव से उनका स्मरण-सुमिरन एवं चिंतन-मनन करते रहे।
सूरदासजी मनुष्यमात्र के कल्याण की भावना से ओतप्रोत रहे। उनके अप्रत्यक्ष उपदेशों का अनुकरण करके हम अपने जीवन की दैवी स्पर्श से आलोकित कर सकते हैं-इसमें जरा भी संदेह नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में सूरदासजी के ऐसे दैवी पदों को संकलित किया गया है, जिनमें जन-कल्याण का संदेश स्थान-स्थान पर पिरोया गया है।
पुस्तक में सूरकृत ‘विरह पदावली’, ‘श्रीकृष्ण बाल-माधुरी’ और ‘राम चरितावली’ के प्रमुख पदों को सरल भावार्थ सहित प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि सामान्य पाठक भी उन्हें सरलता से ग्रहण करके भक्तिरस के आनंद-सागर में गोता लगा सकें।
वाग्देव
बाल्यकाल से ही लेखन का शौक रहा। बी.कॉम करके के बाद हिंदी के प्रति रुझान बढ़ा। स्फुट लेखन की परिणति ‘रहीम दोहावली’ तथा ‘सूरदास पदावली’ पुस्तकें हैं।
अपनी बात
कृष्ण-भक्ति शाखा के कवियों में महाकवि सूरदास का नाम शीर्ष पर प्रतिष्ठित है। अपनी रचनाओं में उन्होंने अपने आराध्य भगवान् श्रीकृष्ण का लीला-गायन पूरी तन्मयता के साथ किया है। उनके काव्य में सत्यनिष्ठ, एकांगी और एक समर्पित भक्त की भावना का साक्षात् अवलोकन किया जा सकता है। उनके काव्य में भावना के चरमोत्कर्ष के दर्शन पग-पग पर होते हैं। शायद तभी कहा भी गया है –
सीता के राम, राधा के श्याम।
मीरा के गिरधर नागर, सूर के घनश्याम।।
मीरा के गिरधर नागर, सूर के घनश्याम।।
घनश्याम सूर के रोम-रोममें बसते हैं। गुण-अवगुण, सुख-दुःख, राग-द्वेष, लाभ-हानि, जीवन-मरण-सब अपने इष्ट को अर्पित कर वे निर्लिप्त भाव से उनका स्मरण-सुमिरन एवं चिंतन-मनन करते रहते हैं। और इस प्रकार वे भौतिक, सांसारिक और आध्यात्मिक-तीनों प्रकार के कष्टों से मुक्त रहते हैं। अपने ग्रंथों में सूरदासजी नें संसार को यही संदेश दिया है। उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि मनुष्य-जीवन बहुत मूल्यवान् है, इसे सत्कर्मों में लगाएँ, प्रभु-स्मरण में लगाएँ। इस तरह जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल सकती है। वरना यह कीमती जीवन व्यर्थ चला जाएगा।
स्पष्ट है, सूरदासजी मनुष्यमात्र के कल्याण की भावना से ओतप्रोत रहे। यही कारण है कि उनका काव्य जन-कल्याण की भावना से भरा बड़ा है। उनके अप्रत्यक्ष उपदेशों का अनुकरण करके हम अपने जीवन की दैवी स्पर्श से आलोकित कर सकते हैं-इसमें जरा भी संदेह नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में सूरदासजी के ऐसे दैवी पदों को संकलित किया गया है, जिनमें जन-कल्याण का संदेश स्थान-स्थान पर पिरोया गया है।
पुस्तक में सूरकृत ‘विरह पदावली’, ‘श्रीकृष्ण बाल-माधुरी’ और ‘राम चरितावली’ के प्रमुख पदों को सरल भावार्थ सहित प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि सामान्य पाठक भी उन्हें सरलता से ग्रहण करके आनंदित हो सकें।
स्पष्ट है, सूरदासजी मनुष्यमात्र के कल्याण की भावना से ओतप्रोत रहे। यही कारण है कि उनका काव्य जन-कल्याण की भावना से भरा बड़ा है। उनके अप्रत्यक्ष उपदेशों का अनुकरण करके हम अपने जीवन की दैवी स्पर्श से आलोकित कर सकते हैं-इसमें जरा भी संदेह नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में सूरदासजी के ऐसे दैवी पदों को संकलित किया गया है, जिनमें जन-कल्याण का संदेश स्थान-स्थान पर पिरोया गया है।
पुस्तक में सूरकृत ‘विरह पदावली’, ‘श्रीकृष्ण बाल-माधुरी’ और ‘राम चरितावली’ के प्रमुख पदों को सरल भावार्थ सहित प्रस्तुत किया गया है, जिससे कि सामान्य पाठक भी उन्हें सरलता से ग्रहण करके आनंदित हो सकें।
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