लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> वैशेषिकदर्शनम्

वैशेषिकदर्शनम्

आचार्य उदयवीर शास्त्री

प्रकाशक : विजयकुमार गोविन्दराम हंसनंद प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :455
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8744
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

318 पाठक हैं

वैशेषिकदर्शनम्...

Vaisheshikdarshanam - Aacharya Udayveer Shastri

वैशेषिकदर्शनम्


कणाद-गौतम ने जिन परमसूक्ष्म पृथिव्यादि भूत तत्त्वों को जगत् का मूल उपादात माना है, उनका नाम भारतीय दर्शन शास्त्र में विशेष है। इसी आधार पर इस शास्त्र का वैशेषिक नाम है। ‘विशेष’ नामक पदार्थ को मूल मानकर प्रवृत्त हुए शास्त्र का वैशेषिक नाम सर्वथा उपयुक्त है। इन परम सूक्ष्म कणों की विशेष संज्ञा सांख्य-योग में परिभाषित है।

इस ग्रन्थ में वैशेषिक के प्रतिपाद्य पदार्थों का जिस क्रम एवं वर्गीकृत रूप से विवरण प्रस्तुत किया गया है, उसको विद्वत्समाज ने अत्यधिक आदर दिया है। वैशेषिक के समस्त प्रतिपाद्य विषय को मस्तिष्कगत कर ग्रन्थकार ने स्वतन्त्र रचना के रूप में उन सब विषयों को ऐसी पद्धति से प्रस्तुत किया, जो अध्ययनार्थी के लिये अत्यन्त सुख-सुविधा जनक रही। उसके आधार पर वैशेषिक के अध्ययन का काम ही बदल गया। सूत्र क्रम से पठन पाठन धीरे-धीरे शिथिल होता गया।

कणाद सूत्रों का प्रस्तुत विद्योदय भाष्य किसी प्राचीन नवीन व्याख्या का अनुवाद अथवा अनुकरण मात्र नहीं है।

आचार्य उदयवीर शास्त्री


भारतीय दर्शन के उद्भट विद्वान् आचार्य उदयवीर शास्त्री का जन्म 6 जनवरी 1894 को बुलन्दशहर जिले के बनैल ग्राम में हुआ। मृत्यु 16 जनवरी 1991 को अजमेर में हुई।

प्रारम्भिक शिक्षा गुरुकुल सिकन्द्राबाद में हुई। 1910 में गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर से विद्याभास्कर की उपाधि प्राप्त की। 1915 में कलकत्ता से वैशेषिक न्यायतीर्थ तथा 1916 में सांख्य-योग तीर्थ की परिक्षाएँ उत्तीर्ण की। गुरुकुल महाविद्यालय ने इनके वैदुष्य तथा प्रकाण्ड पाण्डित्य से प्रभावित होकर विद्यावाचस्पति की उपाधि प्रदान की। जगन्नाथ पुरी के भूतपूर्व शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्णातीर्थ ने आपके प्रौढ़ पाण्डित्य से मुग्ध होकर आपको ‘शास्त्र-शेवधि’ तथा ‘वेदरत्न’ की उपाधियों से विभुषित किया।

स्वशिक्षा संस्थान गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में अध्यापन प्रारम्भ किया। तत्पश्चात् नेशनल कॉलेज, लाहौर में और कुछ काल दयानन्द ब्राह्म महाविद्यालय में अध्यापक के रूप में रहे। तथा बीकानेर स्थित शार्दूल संस्कृत विद्यापीठ में आचार्य पद पर कार्य किया।

अन्त में ‘विरजानन्द वैदिक शोध संस्थान’ में आ गये। यहाँ रह कर आपने उत्कृष्ट कोटि के दार्शनिक ग्रन्थों का प्रणयन किया।


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book