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दृष्टान्त महासागर (दो भागों में)

देवेन्द्र चैतन्य

प्रकाशक : रणधीर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :672
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8737
आईएसबीएन :00000

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दृष्टान्त महासागर सम्पूर्ण दो भागों में

Drishtant Mahasagar - Devendra Chaitanya

दृष्टान्त महासागर


हम समाज में अपने चारों ओर देखते हैं कि मनुष्य को वास्तविक मनुष्य बनाने में और उसके चरित्र निर्माण की सच्ची सीख देने के दृष्टांत एवं सत्कथाएँ सबसे अधिक कल्याणकारी हैं। मनुष्य को गुरु सम्मत और मित्र सम्मत उपदेश की अपेक्षा कान्ता सम्मत उपदेश स्वभावतः अधिक प्रिय लगता है-इसी बात का यह प्रताप है कि कथाओं का विशेषतः महापुरुषों के जीवन की प्रेरक बातों का मानव पर सर्वाधिक प्रभाव होता है।

मानव हृदय निसर्गतः सौन्दर्य उपासक है और उसकी सद्वृत्ति एवं सद्आचरण सौन्दर्य की चरमसीमा है। अतः सत्कथाओं की ओर खिंचना मनुष्य का एक अव्यक्त गुण है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, सत्कथआओं में यदि साहित्यिक आकर्षण भी है तो एक सामान्य मनुष्य उनसे अनाकृष्ट कैसे रह सकता है ? जब कथा अथवा दृष्टान्त समय के अनुरूप कहा जाए तो वह मुख्य ज्ञान की धारा में जोड़ने का सेतु बन जाता है। दृष्टान्त चाहे वह किसी भी व्यक्ति, किसी भी देश या किसी भी काल का हो वह अनन्त काल तक मनुष्य जाति को लाभ पहुँचाता है।

इसी बात को ध्यान में रखकर हमने अप्रतिम गुण रखने वाली कथाओं का संग्रह इस दृष्टान्त महासागर के रूप में प्रस्तुत किया है; आशा है समाज के सभी वर्गों के लिए यह जीवन में नई रोशनी देने वाला सिद्ध होगा।
-प्रकाशक


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