गीता प्रेस, गोरखपुर >> आदर्श ऋषि मुनि आदर्श ऋषि मुनिसुदर्शन सिंह
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इस पुस्तक में चुने हुए ऋषि-मुनि-संत-भक्तों के सोलह चरित्र तथा उनकी शिक्षा।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
श्रीहरि:
आदर्श ऋषि-मुनि
सनकादि कुमार
सृष्टि के आरम्भ में सब जल-ही-जल था। भगवान् नारायण की नाभि से निकले
प्रकाशमय कमल पर ब्रह्माजी बैठे थे। बहुत लम्बी तपस्या करके उन्होंने
भगवान् नारायण के दर्शन पाये थे। भगवान् ने उन्हें सृष्टि करने का आदेश
दिया था।
ब्रह्माजी का मन भगवान् का दर्शन करके अत्यन्त शुद्ध हो गया था। उन्होंने शुद्ध सात्विक चित्त से सृष्टि के लिये संकल्प किया। इससे चार कुमार उत्पन्न हुए। उनके नाम हैं-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार।
ब्रह्माजी ने उनसे सृष्टि करने को कहा। शुद्ध सत्त्वगुण से उत्पन्न होने के कारण उनका चित्त शुद्ध हो गया था। उनमें सृष्टि करने की इच्छा ही नहीं थी। जन्म से ही वे परम विरक्त, ज्ञानी और भगवान् के भक्त थे। उन्होंने ब्रह्माजी से कहा-
‘पिताजी ! आप हम लोगों को क्षमा करें। भगवान् का भजन करना ही परम लाभ है। भगवान् के भजन को छोड़कर एक क्षण के लिये भी किसी काम में लगना महान् अनर्थ है। हम लोगों को तो आप आशीर्वाद दीजिये कि हमारा मन भगवान् में ही सदा लगा रहे।’
ब्रह्माजी का मन भगवान् का दर्शन करके अत्यन्त शुद्ध हो गया था। उन्होंने शुद्ध सात्विक चित्त से सृष्टि के लिये संकल्प किया। इससे चार कुमार उत्पन्न हुए। उनके नाम हैं-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार।
ब्रह्माजी ने उनसे सृष्टि करने को कहा। शुद्ध सत्त्वगुण से उत्पन्न होने के कारण उनका चित्त शुद्ध हो गया था। उनमें सृष्टि करने की इच्छा ही नहीं थी। जन्म से ही वे परम विरक्त, ज्ञानी और भगवान् के भक्त थे। उन्होंने ब्रह्माजी से कहा-
‘पिताजी ! आप हम लोगों को क्षमा करें। भगवान् का भजन करना ही परम लाभ है। भगवान् के भजन को छोड़कर एक क्षण के लिये भी किसी काम में लगना महान् अनर्थ है। हम लोगों को तो आप आशीर्वाद दीजिये कि हमारा मन भगवान् में ही सदा लगा रहे।’
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