विविध >> काल चेतना काल चेतनाअमृता प्रीतम
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काल चेतना
एक बरस में सूरज के हिसाब से बारह महीने होते हैं,
लेकिन चन्द्रमा के हिसाब से तेरह महीने होते हैं।
सूरज बाह्यमुखी शक्ति का प्रतीक है
और चन्द्रमा अन्तर्मुखी शक्ति का।
सूर्य शक्ति मर्द शक्ति गिनी जाती है
और चन्द्र शक्ति स्त्री शक्ति।
दोनों शक्तियाँ स्थूल शक्ति और सूक्ष्म शक्ति की प्रतीक हैं
अन्तर की सूक्ष्म चेतना, जाने कितने जन्मों से,
इंसान के भीतर पड़ी पनपती रहती है।
यह अपने करम से भी बनती-बिगड़ती है
और पिता-पितामह के करमों से भी।
हमारे अपने देश में, कई जातियों में
एक बड़ी रहस्यमय बात कही जाती है,
हर बच्चे के जन्म के समय,
कि बिध माता, तुम रूठकर आना और मानकर जाना।
इसका अर्थ यह लिया जाता है कि बिध माता,
किस्मत को बनाने वाली शक्ति, जब अपने प्रिय
से रूठकर आती है, तो बहुत देर बच्चे के पास बैठती है
और आराम से उसकी किस्मत की लकीरें बनाती है...
मैं समझती हूँ कि बिध माता की यह गाथा
बहुत गहरे अर्थों में है कि वह जब किस्मत
की लकीरें बनाने लगे तो साइकिक शक्ति को न भूल जाए,
पश्चिम की गाथा में जो तेरहवीं थाली परसने का इशारा है,
ठीक वही पूरब की गाथा में साइकिक शक्तियों
से न रूठने का संकेत है।
यह पुस्तक भी तेरहवीं थाली में कुछ परसने का यत्न है।
लेकिन चन्द्रमा के हिसाब से तेरह महीने होते हैं।
सूरज बाह्यमुखी शक्ति का प्रतीक है
और चन्द्रमा अन्तर्मुखी शक्ति का।
सूर्य शक्ति मर्द शक्ति गिनी जाती है
और चन्द्र शक्ति स्त्री शक्ति।
दोनों शक्तियाँ स्थूल शक्ति और सूक्ष्म शक्ति की प्रतीक हैं
अन्तर की सूक्ष्म चेतना, जाने कितने जन्मों से,
इंसान के भीतर पड़ी पनपती रहती है।
यह अपने करम से भी बनती-बिगड़ती है
और पिता-पितामह के करमों से भी।
हमारे अपने देश में, कई जातियों में
एक बड़ी रहस्यमय बात कही जाती है,
हर बच्चे के जन्म के समय,
कि बिध माता, तुम रूठकर आना और मानकर जाना।
इसका अर्थ यह लिया जाता है कि बिध माता,
किस्मत को बनाने वाली शक्ति, जब अपने प्रिय
से रूठकर आती है, तो बहुत देर बच्चे के पास बैठती है
और आराम से उसकी किस्मत की लकीरें बनाती है...
मैं समझती हूँ कि बिध माता की यह गाथा
बहुत गहरे अर्थों में है कि वह जब किस्मत
की लकीरें बनाने लगे तो साइकिक शक्ति को न भूल जाए,
पश्चिम की गाथा में जो तेरहवीं थाली परसने का इशारा है,
ठीक वही पूरब की गाथा में साइकिक शक्तियों
से न रूठने का संकेत है।
यह पुस्तक भी तेरहवीं थाली में कुछ परसने का यत्न है।