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जीवनी/आत्मकथा >> अन्ना हजारे राजनीति के चक्रव्यूह में

अन्ना हजारे राजनीति के चक्रव्यूह में

नीरज ठाकुर

प्रकाशक : अनुरेखा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8707
आईएसबीएन :0

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अन्ना हजारे राजनीति के चक्रव्यूह में

Anna Hazare : Rajniti ke Chakravyuh Mein (Neeraj Thakur)

हस्तक्षेप


बिना किसी भूमिका के हस्तक्षेप करने का दुस्साहस कर रहा हूँ। जब सच कड़वा हो तो भूमिका की नहीं सीधा हस्तक्षेप करने की ज़रूरत होती है। आजकल हमारे लोकतंत्र के भगवान देश की जनता से नाराज़, हैरान और परेशान हैं। इसकी वज़ह क्या है ? क्योंकि, जनता अब देखने लगी है, सुनने लगी है, यहाँ तक कि बोलने भी लगी है। यह तो गाँधीजी के बन्दरों का सरासर अपमान है। अरे भाई, यह तो हद ही हो गई। आख़िर इस जनता जनार्दन को हो क्या गया है ?

हमारे लोकतंत्र के भगवान कहते हैं हमारा देश संसार का सबसे बड़ा जनतंत्र है। हमारी जनतान्त्रिक व्यवस्था सबसे बेहतर है। जनप्रतिनिधि चुनने के लिए चुनाव होता है और लोग अपना मताधिकार का इस्तेमाल करके अपने प्रतिनिधि संसद में भेजते हैं। चुनाव से पहले हमारे भाग्य विधाता कहते हैं- ‘हम साथ-साथ हैं’ और चुनाव के बाद ‘हम आपके हैं कौन ?’ हमारे देश के तारहरण चाहते हैं कि अगर चुनाव की लूट में किसी ने सत्ता हथिया ली, तो फिर जनता आँख बंद करके सो जाए। पाँच साल तक देश का ‘लोक’ आँख उठा कर ‘तंत्र’ की तरफ देखने की हिम्मत न करे। जनता ने संसद में प्रतिनिधि भेज दिए हैं। अब अगला चुनाव आने तक अपने जननायकों के लच्छेदार भाषण सुनो और सहो। यानी ‘तेल देखो तेल की धार देखो।’ क्या यही है सच्चा लोकतंत्र ?

क्या लोकतंत्र में चुनाव होने के बाद सब कुछ खत्म हो जाता है ? क्या जनता की लोकतंत्र में केवल इतनी ही हिस्सेदारी है कि वह चुनाव के दिन मतदान केन्द्र तक ज़ाए और भ्रष्ट उम्मीदवारों में से सब से कम भ्रष्ट को अपना वोट देकर आ जाए। फिर उसके बाद एक के बाद एक घोटाले पर घोटाले लगातार होते रहें और देश की एक सौ बीस करोड़ जनता पाँच साल होने का इन्तज़ार करती रहे। हमारे जननायक कहते हैं जनता ने हमें चुन कर भेजा है। हम चुने हुए प्रतिनिधि हैं। इसलिए हम जनता को लूटें या पीटें हमें कुछ मत कहो। हम तो कानों में तेल डाल कर कुर्सियों पर बैठे हैं। हमें हर हालत में सहन करो। अरे वाह ! क्या बेमिसाल लोकतंत्र है हमारे देश का।

देश की जनता ने सुरेश कलमाड़ी, ए. राजा, कनिमोझी और अमर सिंह को संसद में देश सेवा करने के लिए पहुँचाया था, लेकिन पट्ठों को संसद रास नहीं आई और तपाक से पहुँच गये तिहाड़ जेल। जाना था जापान, पहुँच गए चीन। हमारी युवा पीढ़ी गाँधी, टैगोर, विवेकानंद, सुभाष चन्द्र बोस और और सरदार पटेल से ज्यादा इन भ्रष्ट देशभक्तों की चर्चा करती और सुनती है। अभी तो तिहाड़ जेल जाने वाले जननायकों की लम्बी कतार है। इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके ज़ुर्म हैं। सबके नामों की चर्चा करूँगा तो शायद वे नाराज हो जायें, कि मैं लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग कर रहा हूँ। हमारे लोकतंत्र में सत्ता और स्वतंत्रता के दुरुप्रयोग का अधिकार केवल जनप्रतिनिधियों के लिए सुरक्षित है।

लोकतंत्र में जनता की इच्छाएँ अनन्त होती हैं। ये निगोड़ी जनता लोकतंत्र के भगवानों से ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ का वरदान माँग रही है। जनता कहती है-बस भगवान् ! बहुत हो गया, बर्दाश्त करने की भी कोई हद होती है। एक-दो-तीन-चार अब न सहेंगे भ्रष्टाचार। लोकतंत्र के भगवानों को यकीन नहीं हो रहा है अपनी आँखों और कानों पर। आखिर क्या हो गया है भारत की जनता को ? चौंसठ साल से देश में रह रही है। भ्रष्टाचार को हँसी खुशी सह रही है। और अब आलम यह है, कि इस छुईमुई जनता से भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होता ? यहाँ तक कि सरकार बहादुरों से एक-एक पैसे का हिसाब माँगा जा रहा है ? इस सड़क छाप जनता की यह हिमाकत ! हमारी बिल्ली और हमें ही म्याऊँ ? सरकार बहादुर की आँखों में खून उतर आता है। हमारे जननायक सोचते हैं-परेशान होकर सिर के बाल नोंचते हैं कि आखिर विद्रोह का तूफ़ान कहाँ से आया है ? जो जनता कल तक आँखें झुका कर बात करती थी, आज आँखों में आँखें डाल कर बात कर रही है ? अगर देश के सारे जननायक भ्रष्टाचार मिटाने में लग जायेंगे तो देश कौन चलायेगा ? सरकारी कुर्सी पर बैठ कर सत्ता के अंडे को अगले चुनाव तक गर्माहट कौन देगा ?


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