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डेज ऑफ माई बेचलरहुड एंड एंबीशन्स

सचिन जैन

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8702
आईएसबीएन :9788128836848

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स्टडी, एंज्वायमेंट, करियर ग्रोथ, सैटलमेंट और रोमांस के सायकिल में सफल जीवन की आपाधापी को बड़े करीने से संजोया है लेखक सचिन जैन ने

Days of my Bachlorhood and Ambitions (Sachin Jain)

एक ‘यंग प्रोफेशनल’ जब एक शाम जल्दी घर पहुंचता है, तो अपने दो बच्चों के इनसिस्ट करने पर वह अपने सफल जीवन पर एक कहानी बुनता है, अपनी कोमल मनोभावनाओं को दर्शाने में जिसमें न केवल एक ‘बड़ा आदमी’ बनने का सपना है, बल्कि प्रेम की पवित्र एवं अनूठी घटनाओं को सिंचित कर अपना ‘सोल मेट’ पाने की भी एक प्यारी-सी आकांक्षा है।

आपका स्वागत है... एक फन, मस्ती और जिम्मेदारी से भरे सफर ‘डेज ऑफ माई बैचलरहुड एंड एम्बीशन्स’ में जिसमें स्टडी, एंज्वायमेंट, करियर ग्रोथ, सैटलमेंट और रोमांस के सायकिल में सफल जीवन की आपाधापी को लेखक सचिन जैन ने बड़े करीने से संजोया है।

एक्नॉलेजमैंट
हिंदी में लिखना प्राथमिकता इसलिए भी थी क्योंकि फर्स्ट बुक के साथ बड़ा गहरा लगाव होता है और मन की सभी संवेदनाओं को मैं मातृभाषा में लिखकर बड़ा अच्छा महसूस कर रहा हूँ, लेकिन आम बोलचाल की मॉडर्न लैंग्वेज ‘हिंग्लिश’ का प्रयोग करना भी जरूरी था।

अगर कोई इंसान किसी को दोस्त बनाता है तो जाहिर है कि अपनी सभी बातें उससे शेयर करना चाहता है। मैं उन सभी लोगों को जो इस बुक के रीडर्स हैं, उन्हें अपना दोस्त बनाना चाहता हूं, तभी मैं उनसे अपनी बात कह पाऊंगा और वे भी उसी भाव से समझ पायेंगे।

स्टोरी प्रोलॉग
इट्स ए रेनी डे !

‘आउटलुक पर मैंने ई ओ डी लिखा, अपनी प्रेजेंटेशन खत्म की और पिछले कई घंटों से काम में लगातार मेरा साथ दे रहे अपने लैपटॉप को थैंक्स बोलकर शट डाउन किया-‘‘एण्ड थैंक्स टू माय ऑफिस अरगोनॉमिक्स।’’

आज मेरे कदम ऑफिस से घर की तरफ कुछ जल्दी ही चल पड़े थे।
रोड पर धीरे-धीरे जमा होता जा रहा ट्रैफिक, चिल्लपों करता गाड़ियों का शोर, टिप-टिप करते हुए सड़क के गड्ढों में भरता पानी जो कार से बाहर झांकने की भी इज़ाजत नहीं देता, मौसम में ह्युमिडिटी, मन में कभी-कभी आती हल्की झल्लाहट व गुस्सा, आखिर कुछ फायदा है भी ऑफिस जल्दी निकालने का...!! उफ्फ क्या यह हैवी ट्रैफिक उसे आसानी से निकालने देगा भला...?... सोचते-सोचते मेरे माथे पर शिकन आ गयी थी लेकिन फिर भी...।

लोगों को बरसात के ऊपर गीत, शेर-ओ-शायरियां लिखते, बच्चों को भरी बारिश में भागते-खेलते, नई उम्र के लड़कों को उत्साह के साथ खुश होते, एक गृहिणी को अपनी रसोई में खुशी से नये-नये पकवान बनाते व दोस्तों को पिकनिक और पार्टी करते देखा है।

यहीं नहीं बल्कि बड़े-बूढ़ों को किस्से-कहानियों से एक-दूसरे में नए प्राण फूंकते देखा है।

शायद ‘बरसात’ उन लोगों के लिए आती है, जो प्यार करने का सही-सही मतलब जानते हैं...बारिश की बूंदों से, प्रकृति की सुंदरता से, पानी में नहाये रंग-बिरंगे फूलों से, ठंडी हवा की महक व स्पर्श से, अपने प्रिय से, जीवनसाथी से या फिर अपनी तन्हाई से तब-जब उन्हें अपनी रचनात्मकता का अहसास होता है, लेकिन फिर भी परिवार का साथ तो हमेशा ही ऊर्जा देता है।


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