कहानी संग्रह >> फिरोजशा बाग के किस्से फिरोजशा बाग के किस्सेरोहिंटन मिस्त्री (अनुवाद तारा जोशी)
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मुंबई के एक अपार्टमेंट फि’रोज़शा बाग़ के बाशिंदों की ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों और सतरंगी पहलुओं को उजागर करती, पारसी जीवन और संस्कृति को बारीकी से उकेरती कहानियां
‘दुनिया के बारे में मिस्त्री का बिंदास अंदाज़ हमें याद दिलाता है कि सजीव चित्रण ही कहानी लेखन की पहली और सबसे अहम ज़रूरत है।’
गार्डियन
अंग्रेजी के मशहूर और पुरस्कृत लेखक रोहिंटन मिस्त्री द्वारा लिखी ‘फि’रोज़शा बाग के कि’स्से’ आपस में गुथी ग्यारह कहानियों का ऐसा संगम है जो ज़िंदगी के जटिल ताने-बाने को बेहद सहज ढंग से प्रस्तुत करता है। मिस्त्री उन चुनिंदा पारसी लेखकों में से हैं जिनका अपना अलग अंदाज़-ए-बयां है और हिन्दी पाठकों के सामने वे पहली बार अनूदित रूप में आ रहे हैं।
मुंबई के एक अपार्टमेंट फि’रोज़शा बाग़ के बाशिंदों की ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों और सतरंगी पहलुओं को उजागर करती, पारसी जीवन और संस्कृति को बारीकी से उकेरती इन कहानियों में अपार्टमेंट में रहने वाले आम मध्यम वर्ग के लोगों की रोज़मर्रा का ग़िंदगी के साझा सुख-दुख, उनकी परेशानियां आकार पाती हैं। भूत देखने वाली जाकेली, फिरोज़शा बाग़ के एकमात्र रेफ्रिजिरेटर की मालिक नाजमाई, मक्खीचूस रुस्तमजी और दल साल तक पश्चिमी तर्ज़ के टॉयलेट में पूरी ‘कोशिश’ करने के बाद कनाडा से ‘नाकाम’ वापस लौटने वाले सरोश ‘सिड’ की कहानियां जहां हमारे होठों पर मुसकुराहटें बिखेर जाती हैं, वहीं इनमें छिपी टीस को भी हम महसूस किए बिना नहीं रह पाते। ‘भारत की भीड़-भाड़ भरी, धड़कती ज़िंदगी को इन कहानियों में ख़ूबसूरती से दर्शाया गया है।’
मुंबई के एक अपार्टमेंट फि’रोज़शा बाग़ के बाशिंदों की ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों और सतरंगी पहलुओं को उजागर करती, पारसी जीवन और संस्कृति को बारीकी से उकेरती इन कहानियों में अपार्टमेंट में रहने वाले आम मध्यम वर्ग के लोगों की रोज़मर्रा का ग़िंदगी के साझा सुख-दुख, उनकी परेशानियां आकार पाती हैं। भूत देखने वाली जाकेली, फिरोज़शा बाग़ के एकमात्र रेफ्रिजिरेटर की मालिक नाजमाई, मक्खीचूस रुस्तमजी और दल साल तक पश्चिमी तर्ज़ के टॉयलेट में पूरी ‘कोशिश’ करने के बाद कनाडा से ‘नाकाम’ वापस लौटने वाले सरोश ‘सिड’ की कहानियां जहां हमारे होठों पर मुसकुराहटें बिखेर जाती हैं, वहीं इनमें छिपी टीस को भी हम महसूस किए बिना नहीं रह पाते। ‘भारत की भीड़-भाड़ भरी, धड़कती ज़िंदगी को इन कहानियों में ख़ूबसूरती से दर्शाया गया है।’
संडे टाइम्स
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