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मेरी प्रिय कहानियाँ

नासिरा शर्मा

प्रकाशक : राजपाल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8682
आईएसबीएन :9788170289866

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मेरी प्रिय कहानियाँ

Meri Priya Kahaniyan - A Hindi EBook By Nasira Sharma

हिन्दी की महिला कथाकारों में कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी की पीढ़ी के बाद जो नाम उभरे, नासिरा शर्मा उनमें अलग से पहचानी जाती हैं। कहानी के अलावा उपन्यास विधा में भी उन्होंने अपनी हैसियत बनाई है। साहित्य के साथ विश्व-राजनीति एवं सामाजिक सरोकारों से संदर्भित ज्वलंत समकालीन प्रश्नों पर भी उन्होंने प्रभूत लेखन किया है। इस संकलन के लिए उन्होंने अपनी बारह कहानियों का चुनाव स्वयं किया है।

‘‘लघु कहानियों और लम्बी कहानियों के बीच यह बारह कहानियाँ मेरी मंझोले साइज़ की कहानियाँ कहला सकती हैं। अपने समय की चर्चित कहानियों में भी इनका शुमार हुआ और मुझे पाठकों के ढेर सारे खत भी मिले और इनका ज़िक्र लगातार प्रशंसकों के मुँह से सुनती रही हूँ। लेकिन इन्हें चुनने की यह सारी वजहें नहीं हैं बल्कि जब मैं इन्हें पढ़ती हूँ तो इनमें खो जाती हूँ। कहानियों का परिवेश नज़रों के सामने जीवित हो उठता है और उस ज़मीन की खुशबू से मेरा दिल व दिमाग़ गमक उठता है।’’

भूमिका
पिछले बारह वर्षों में मैंने कुल चार कहानियाँ लिखी हैं। उसका कारण, एक के बाद दूसरे उपन्यास का आना। लगभग एक दहाई की दूरी ने मुझे इस सवाल का जवाब देना सिखा दिया कि आपकी प्रिय कहानी कौन सी है ? चूंकि यह सवाल कहानियों का है इसलिए जवाब देना और भी आसान हो गया और कहानियों से दूरी की वजह से उसे छाँटने और चुनने में मेरी मदद भी हो गई है।

ये बारह कहानियाँ ‘पतझर का फूल’ (1979) से लेकर ‘खामोश आतिशकदा’ (2007) तक मेरी लेखन यात्रा का एक नमूना-सा है। मैंने काफी लम्बी कहानियाँ और बेहद छोटी कहानियाँ भी लिखी हैं। लघु कहानियों और लम्बी कहानियों के बीच यह बारह कहानियाँ मेरी मंझोले साइज़ की कहानियाँ कहला सकती हैं। अपने समय की चर्चित कहानियों में भी इनका शुमार हुआ और मुझे पाठकों के ढेर सारे खत भी मिले और इनका ज़िक्र लगातार प्रशंसकों के मुँह से सुनती रही हूँ। लेकिन इन्हें चुनने की यह सारी वजहें नहीं हैं बल्कि जब मैं इन्हें पढ़ती हूँ तो इनमें खो जाती हूँ। कहानियों का परिवेश नज़रों रे सामने जीवित हो उठता है और उस ज़मीन की ख़ुशबू से मेरा दिल व दिमाग़ गमक उठता है। वे सारे किरदार मुझे मुस्कराने और उदास होने पर मज़बूर कर देते हैं। एक लगावट का अहसास उभरता है और मैं उनकी दुनिया में ज़हनी तौर पर गुम हो जाती हूँ।
मैंने बचपन में कहानियाँ लिखी हैं। ख्वाब भी मेरा लेखक बनने का था मगर बचपन का देखा हर सपना पूरा तो नहीं होता। दस-बारह साल शादी के बाद बिना कलम छुए गुज़र गए। जो लिखा वह लेख लिखा, ड्रामा लिखा वह भी रेडियो और सेटेलाइट के लिए। बच्चे नर्सरी गए। अरावली की पथरीली ज़मीन पर लगे बोगन बेलिया, अमलतास, गुलमोहर शिरीष के पौधे, कीकर की लहराती पंक्तियों के बीच पर सर उठाने लगे तो दोपहर की ख़ामोशी भरी तन्हाई ने कागज़-क़लम से रिश्ता जोड़ दिया।


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