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क्या दोबारा हो सकता है प्यार ?

रविंदर सिंह

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8681
आईएसबीएन :9780143418788

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क्या दोबारा हो सकता है प्यार ?

Kya Dobara ho Sakta Hai Pyar (Ravinder Singh)

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

रविंदर सिंह एक बेस्टसेलिंग लेखक हैं। उनके पहले उपन्यास ‘आई टू हैड ए लव स्टोरी’ ने लाखों दिलों को छुआ था। ‘कैन लव हैपेन ट्वाइस ?’ उनकी दूसरी किताब है। अपने जीवन का अधिकतर भाग बुर्ला, उड़ीसा में गुज़ारने के बाद रविंदर चंडीगढ़ में बस गए थे। भारत की कई प्रमुख आईटी कंपनियों में कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में काम करने के बाद, रविंदर अब दुनिया भर में प्रसिद्ध इंडियन स्कूल ऑफ बिज़नेस, हैदराबाद में अपनी एमबीए की पढ़ाई कर रहे हैं। रविंदर को खाली समय में स्नूकर खेलना अच्छा लगता है। वह पंजाबी संगीत के दीवाने हैं और उसकी ताल पर नाचना उन्हें बहुत पसंद है।

सलमा ज़ैदी एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जिन्होंने कई राष्ट्रीय समाचार एजेंसियों और समाचार पत्रों में काम किया है। उनके लेख भारत और विदेशों के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। पिछले सत्रह वर्ष से वह बीबीसी वर्ल्ड सर्विस से जुड़ी रहीं। ग्यारह साल लंदन में गुज़ारने के बाद वह भारत लौटी और इस समय स्वतंत्र लेखन कर रही हैं।

इससे पहले कि आप आगे पढ़ें

अब जबकि मैंने यह किताब पूरी कर ली है, जो कि अब प्रिंट में आने ही जा रही है, आपको बताना जरूरी है कि मैं कौन हूँ और यह पुस्तक क्यों लिख रहा हूँ। मैं संयोग से लेखक बना। जीवन में कई अच्छी ओर बुरी बातें होती हैं, सब संयोग से ही। मेरी पहली किताब ‘एक प्रेम कहानी मेरी भी’ मेरे जीवन में गुज़री एक त्रासदी का नतीजा थी और सच कहूँ तो मेरे जीवित रहने का एक कारण भी। मैंने पहले कभी लेखक बनने के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन मेरा सौभाग्य है कि मैं यह बता पा रहा हूँ कि जो किताब मैंने अपनी प्रेमिका को श्रद्धांजलि देने के तौर पर लिखी थी उसे मेरे पाठकों का अथाह प्यार और सम्मान मिला। उस कथा का मेरे पाठकों पर इतना प्रभाव पड़ा कि मुझे अनगिनत ईमेल (जो अब भी आ रही हैं), कतरनें और संदेश मिले। उन्होंने भी अपनी-अपनी प्रेमकथाएँ मुझसे बांटीं और वास्तव में उनमें अपने दिल निकाल कर रख दिए। मुझे अफसोस है कि उनमें से कई प्रेमकहानियों का अंत दुखद था। वे मुझ तक अपनी सच्ची कहानियाँ पहुँचा कर शांति का अनुभव करते हैं। लेकिन वे संदेश पढ़ कर मुझे अहसास हुआ कि किसी प्रेमकहानी का अंत करने के लिए सड़क पर बेकाबू ढंग से दौड़ते हुए ट्रक की ज़रूरत नहीं है, जैसा कि मेरे साथ हुआ। मैंने जाना कि कई लोग स्वयं अपनी प्रेमकथाओं की हत्या कर देते हैं। उसे वे ब्रेक अप का नाम देते हैं।

इस तरह की ईमेल की लगातार बढ़ती तादाद ने मुझे यह सोचने पर विवश कर दिया है कि इन दिनों, दिलों का टूटना (Heart Break) दिल के दौरे (Heart Attack) से ज़्यादा प्रचलन में है। और दर्भाग्यवश बीमा केवल हार्टअटैक के लिए ही होता है। यह एक मुख्य कारण था इस किताब को लिखने का।

तो क्या यह भी मेरी सच्ची कहानी है ?

मेरा मानना है हर काल्पनिक कथा सच्ची कहानी से प्रेरित होती है। हो सकता है यह मेरी कहानी हो, हो सकता है न हो, शायद यह आंशिक रूप से मेरी कहानी हो, शायद न हो, शायद उन कई कहानियों का मिश्रण हो जो मेरे पाठक मुझे लिख कर भेजते हैं। शायद न भी हो। मैं यहाँ यह नहीं बताना चाहता कि मेरी कहानी में कितना तथ्य है और कितनी कल्पना। बल्कि मैं चाहता हूँ कि आप स्वयं अपनी कल्पना के ज़रिए यह पता लगाएँ। लेकिन मैं आपके सामने यह सच्चाई रख रहा हूँ और मेरा विश्वास कीजिए जब मैं यह कह रहा हू: यह हमारी पीढ़ी की सच्ची दास्तान है। यह एक अहम कारण है जो मैंने यह पुस्तक अपने पाठकों को समर्पित की है। जब आप यह कहानी पढ़ेंगे तो मैं यह चाहता हूँ कि आप स्वयं को रवीन की स्थिति में रखे और स्वयं अपनी ही कहानी पढ़ने का आनंद लें।

प्रस्तावना

आप ऐसे व्यक्ति के बारे में क्या कहेंगे जिसने सगाई से पहले ही अपनी प्रेमिका को खो दिया हो ?

क्या यह कि वह दुख के गहरे समुद्र में डूब गया ? या कि यह कि जो हुआ उसके बाद ईश्वर में उसकी आस्था डगमगा गई ? या यह कि वह अपनी ‘नश्वर’ प्रेमिका के प्यार में इतना डूबा हुआ था कि उसने उसकी याद में एक ‘अनश्वर’ प्रेमकहानी लिख दी ?

या फिर यह कि एक लंबे अंतराल के बाद प्रेम ने उसके दरवाजे पर एक बार फिर दस्तक दी ?

एक

अमरदीप जब चंडीगढ़ के भीड़भाड़ वाले हवाई अड्डे के एक्ज़िट गेट से बाहर निकला तो शाम का झुटपुटा शुरू हो चुका था। इस ‘मनमोहक शहर’ की उसकी पहली यात्रा पर कंपकंपाती सर्दी ने उसका स्वागत किया।

शाम कुछ ज़्यादा ही खुशनुमा थी और उसका कारण था उस दिन वैलेंटाइन्स डे का होना। माहौल में मानो प्यार छाया हुआ था और हर ओर लाल रंग की छटा बिखरी हुई थी। तापमान ज़रूर चार डिग्री के आसपास रहा होगा। ठंड को और बढ़ा रही थीं बर्फीली हवाएँ जिनकी वजह से बाहर निकलने वाले यात्री तुरंत अपनी जैकेटें निकालने को बाध्य हो रहे थे।

शुरुआती कुछ लम्हों का आनंद लेते हुए अमरदीप ने अपने शरीर को ठंड महसूस करने का मौका दिया लेकिन वह उसे अधिक समय तक नहीं झेल पाया। उसने जल्दी से अपनी जैकेट निकाली और गर्दन तक उसकी ज़िप खींच दी। उसे अपनी साँसों का धुआँ तक महसूस हो रहा था। ठंड इतनी ज़्यादा थी। बाहर निकलने के द्वार पर लगातार होती घोषणाएँ, टैक्सियों के हॉर्न, यात्रियों की रेलपेल और उनके उत्साही परिजन। माहौल शोरशराबे से पूरी तरह भरा हुआ था।

एक-दो टैक्सी ड्राइवरों ने अमरदीप से भी चलने के लिए पूछा। यात्रियों को भरने की अफरा-तफरी में एक ड्राइवर ने तो उसका बैग तक उठा लिया और बोला,
‘‘कित्थे जाना है पा जी ?’’
अमरदीप ने तुरंत उसके हाथ से बैग छीना और उसे अपनी नागवारी भी जता दी कि वह टैक्सी नहीं लेना चाहता।

फिर वह इस भीड़भाड़ से बाहर निकला। उसके एक हाथ में उसका पसंदीदा इकोनॉमिक टाइम्स और एक आधी भरी पानी की बोतल थी और दूसरे में उसका पहिए लगा सूटकेस का हैंडल था जिसे वह चलते-चलते खींच रहा था। वह पार्किंग स्थल तक आया जहाँ भीड़ नहीं थी बल्कि कुछ सन्नाटा ही था। बिजली के लंबे-लंबे खंभों के नीचे कई कारें खड़ी थीं। अमरदीप ने लाइन से खड़ी कारों में से पहली कार के बॉनेट पर अपनी पीठ टिका दी। अब तक उसके शरीर के खुले हुए हिस्से ठंड से सुन्न पड़ गए थे। उसने अख़बार कार के बॉनेट पर रखा और उसे हवा में उड़ने से बचाने के लिए उसके ऊपर पानी की बोतल रख दी। इधर-उधर किसी की तलाश में नज़रें घुमाते हुए उसने अपनी ठंडी हथेलियों को मला ओर उन पर फूंक मार कर उन्हें गरम करने की कोशिश करने लगा।

कुछ क्षण बाद उसने अपनी जीन्स की जेब से मोबाइल बाहर निकाला और उसे स्विच ऑन किया ताकि वह किसी को कॉल कर सके।

‘‘हाँ, मैं पार्किंग लॉट में हूँ’’, उसने कहा और उस जगह का नक्शा बताता रहा जब तक कि एक काली सैंट्रो उसके सामने आ कर नहीं रुक गई।

‘‘राम जी !’’ किसी ने कार का दरवाज़ा खोलते हुए चिल्ला कर कहा।

यह अमरदीप का वह नाम था जो उसे उसके कॉलेज के दिनों में उसके दोस्तों ने दिया था और जिससे उसे आज तक छुटकारा नहीं मिल पाया था।

उसके दोस्तों हैप्पी और मनप्रीत ने कार से बाहर निकल कर उसे गले लगा लिया। अगले कुछ क्षणों तक वे सब पुरानी बातें याद करके एक दूसरे से गले मिलते रहे ओर मुस्कराते रहे। इतने दिनों के बाद मिलना उन सब को भाव-विह्वल कर रहा था। पिछली बार वे कॉलेज की अपनी पहली रीयूनियन के समय मिले थे जिसको अब लगभग पाँच साल बीत गए थे। शायद यही कारण था कि वे इन क्षणों को पूरी तरह जी लेना चाहते थे और एक-दूसरे को आलिंगन में जकड़े हुए थे। शायद आसपास से गुज़रने वालों को वैलेटाइन्स डे के दिन तीन लड़कों का इतना लिपटना-चिपटना अटपटा भी लगा हो !

पानी की आधी भरी बोतल के नीचे फड़फड़ाते इकोनॉमिक टाइम्स की खबर का शीर्षक था, ‘दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंततः धारा 377 हटाई, समलैंगिकता अब भारत में मान्य।’

कुछ ही क्षणों बाद जबकि हैप्पी ने अमरदीप का सूटकेस कार की डिक्की में डाला, अमरदीप ने पीछे की सीट पर बैठ कर राहत की साँस ली। हैप्पी ने कार स्टार्ट की और मनप्रीत ने गाड़ी का म्यूज़िक सिस्टम बंद कर दिया ताकि वे खुल कर बातें कर सकें। उनकी बातें शुरू हुई और मनप्रीत ने कार हवाई अड्डे से निकाल कर शहर की ओर मोड़ दी। लगभग पंद्रह किलोमीटर चलने के बाद हैप्पी ने एक इंटरनेट कैफे के बाहर कार रोक दी। ‘‘क्या हुआ यार ?’’ मनप्रीत ने पूछा। ‘‘कुछ खास नहीं, जल्दी से एक ईमेल भेजना है !’’ हैप्पी ने अपनी सीट बेल्ट खोलते हुए कहा, ‘‘बस मुझे दस मिनट दे दो, अभी लौटता हूँ।’’

अमरदीप कुछ सवाल करना चाहता था लेकिन उसने स्वयं को रोक लिया। उसे छोटी-छोटी बातों को भी अहमियत देने की हैप्पी की आदत पता थी। हैप्पी की अनुपस्थिति में मनप्रीत और अमरदीप ने कुछ देर बातें कीं। हैप्पी जल्दी ही लौट आया। उसे दस मिनट भी नहीं लगे थे। ‘‘सचमुच बहुत जल्दी हो गया।’’ अमरदीप का कहना था : ‘‘हाँ, मैंने कहा ही था ज़्यादा समय नहीं लगेगा।’’

बिना कुछ अधिक विवरण दिए उसने इंजन स्टार्ट कर दिया। कुछ समय बीता और फिर धीरे-धीरे खामोशी छा गई। हैप्पी कार चलाता रहा। उन तीनों के दिमाग़ में एक ही बात चल रही थी। लेकिन पहल हैप्पी ने की, ‘‘मैं उसे बहुत मिस कर रहा हूँ।’’ कुछ क्षण तक कोई कुछ नहीं बोला। फिर अमरदीप ने अपना हाथ हैप्पी के कंधे पर रखा। ‘‘हम सभी उसे बहुत याद कर रहे हैं। और यह रीयूनियन (पुनर्मिलन) रवीन के लिए ही है।’’ ‘यह सही कह रहा है,’ मनप्रीत का कहना था, ‘‘हम यहाँ अच्छे काम के लिए आए हैं। हम रवीन के लिए आए हैं। इस दिन हमें उदास होने के बजाय खुश होना चाहिए।’’
उनके चेहरों पर आशा की एक किरण दिखाई देने लगी जिसकी जगह फिर एक विजयी मुस्कान ने ले ली-इस संकल्प के साथ कि वे अपने दोस्त की मदद ज़रूर करेंगे।

हैप्पी ने कार का एक्सिलरेटर दबाया। वह शायद यह जताना चाह रहा था कि सबकुछ ठीक-ठाक है। मनप्रीत ने म्यूज़िक सिस्टम की आवाज़ तेज़ कर दी। कुछ देर बाद हैप्पी ने सबका मूड बेहतर बनाने के लिए संगीत के शोर के बीच चिल्ला कर कहा, ‘‘क्या हममें से कोई कभी रेडियो पर आया है ?’’ ‘नही,’ सब ने एक सुर में जवाब दिया। ‘‘क्या किसी ने कभी देखा है कि रेडियो स्टेशन अंदर से कैसा दिखता है ?’’

‘‘हा, हा, हा। नहीं।’’ इस बार जवाब के साथ हँसी के ठहाके भी थे। ‘‘कोई बात नहीं, जब तक हमें यह पता है कि हम क्या करने जा रहे हैं। यह रवीन के लिए है। हू हू।’’ हैप्पी ने अपनी उंगली से कार के डैशबोर्ड के नीचे ग्लव कंपार्टमेंट की ओर इशारा किया और मनप्रीत से कहा कि वह उसे खोल कर उसके अंदर रखा लिफ़ाफा बाहर निकाले। मनप्रीत ने लिफ़ाफा निकाला। यह एक अच्छी तरह से पेक किया गया सफ़ेद लिफ़ाफा था जिसके बाएँ कोने पर एक जाने-माने रेडियो स्टेशन का लोगो छपा हुआ था : सुपरहिट्स 93.5 रेड एफएम...बजाते रहो ! उसके अंदर एक निमंत्रण पत्र था जिसे निकालते समय मनप्रीत की आँखों में एक चमक देखी जा सकती थी। उसने कार की छत पर लगी लाइट जलाई और सबको सुनाने के उद्देश्य से ज़ोर-ज़ोर से पढ़ने लगा।

‘‘इस वैलेंटाइन्स डे की शाम सुपरहिट्स 93.5 रेड एफएम स्टेशन इस दशक की सबसे अधिक बिकने वाली और दिल को छू लेने वाली रोमांटिक गाथा एक प्रेम कहानी मेरी भी (आई टू हैड ए लव स्टोरी) के वास्तविक किरदारों के साथ एक टॉक शो की मेज़बानी करने में खुशी महसूस कर रहा है। हम वास्तव में इस सच्ची रोमांटिक कहानी को आधुनिक काल के ताजमहल के समान मानते हैं जिसे एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की याद में लिखा। इस वैलेंटाइन्स डे पर हमें गर्व है कि हम रवीन, जिन्होंने अपनी इस प्रेम कहानी को लिखा और हमसे बांटा ओर उनके करीबी दोस्तों और इस कहानी में शामिल पात्रों हैप्पी, अमरदीप, और मनप्रीत को अपने मेहमानों के तौर पर पेश कर रहे हैं।’’


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