जीवनी/आत्मकथा >> तुलसीदास तुलसीदासनन्दकिशोर नवल
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तुलसीदास
तुलसीदास हिंदी कवियों की शिरोमणि हैं, लेकिन हिंदी की नई पीढ़ी में उनके प्रति एक उपेक्षा का भाव देखा जाता है। इसका कारण उनका वर्णाश्रम-धर्म में विश्वास करना है। किसी भी कवि को चित्रण की जगह उसके विश्वासों के आधार पर परखना गलत है। संसार में अनेक ऐसे बड़े रचनाकार हुए हैं, जिनके विश्वासों से हम सहमत नहीं होते, लेकिन जो हमारे ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। नई पीढ़ी कबीर की तरफ अधिक झुकी हुई है, जबकि उनका लक्ष्य लोक न होकर परलोक था, वे योगमार्गी थे और वर्ण-व्यवस्था तथा बाह्याचार का विरोध उनका उपलक्ष्य-मात्र था। उनकी महानता में भी किसी को संदेह नहीं है, लेकिन तुलसीदास की महानता का उससे कोई विरोध नहीं। डा. नामवर सिंह के शब्द लेकर कहें, तो साहित्य की गली प्रेम की गली-जैसी सँकरी नहीं है कि उसमें एक से अधिक की समाई न हो। डा. नवल हिंदी के सुपरिचित आलोचक हैं। अब तक वे आधुनिक कविता पर लिखते रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने पहली बार मध्ययुग के एक कवि को विषय बनाया है। स्वभावतः ऐसा उन्होंने अपनी अंतःप्रेरणा से किया है, जिससे उनकी पुस्तक में एक रसज्ञ पाठक से मुलाकात होती है, शुष्क विश्लेषण करनेवाले शास्त्रज्ञ आलोचक से नहीं। इसमें न सिर्फ तीन लेख हैं, जिनसे तुलसीदास की कविता का संपूर्ण चित्र आँखों के सामने आ जाता है। वह चित्र जितना ही भास्वर है, उतना ही सरस भी। इसके बल पर तुलसीदास का कवि-चित्र भी विशालतर होता जाता है।
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