अतिरिक्त >> सरहद के आर पार सरहद के आर पारसुनील गंगोपाध्याय
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सरहद के आर पार पुस्तक का आई पैड संस्करण
आई पैड संस्करण
त्रिलोचन का जिस्म अब भी पसीने से लथपथ है। जब वह बेहद थका-माँदा और भूखा होता है तो उसे इच्छा होती है कि दुनिया की तमाम वस्तुओं को तोड़-फोड़कर बर्बाद कर दे। उसका शरीर सिर्फ यह बात कहने के दौरान सतर्क हो उठता है।
बाबाजी ने महसूस किया, अभी त्रिलोचन से यह सब ऊँचे दर्जे की बात नहीं जमेगी हकीमपुर मेला लगने में अब भी लगभग पंद्रह दिन बाकी हैं, इसलिए घबराने की कोई बात नहीं। लेकिन गीत की बंदिश तैयार करने के आवेशपूर्ण काम छोड़कर इस लहकती धूप में क्या किसी को रिक्शा चलाना अच्छा लगता है? यह काम बाबाजी को किसी भी वक्त अच्छा नहीं लगता, लेकिन एक मुए पेट के लिए दो कौर भात का इंतजाम कैसे किया जाए?
बाबाजी की घरवाली का सात साल पहले देहांत हो चुका है। लेकिन अभी कुल मिलाकर छह महीने हुए होंगे कि उसके मन में ऐसी तरंग आई कि उसने कोरी लुंगी को गेरुआ रंग से रंग लिया। अब दाढ़ी-बाल बनवाने का भी कोई झंझट नहीं रहा। लेकिन काम के प्रति उसकी लापरवाही ध्यान में आने पर त्रिलोचन बीच-बीच में मजाक में कहता है, ‘साधु का बाना धारण किया है? रिक्शा चलाने से तेरे सम्मान को चोट पहुँचती है तो जाकर भीख माँगा कर। ज्यादा पैसा मिलेगा।’
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