अतिरिक्त >> सब देस पराया सब देस परायागुरदयाल सिंह
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सब देस पराया पुस्तक का आई पैड संस्करण
आई पैड संस्करण
सर्दी की रात। सरसों के तेल के दीये की मद्धिम रोशनी में ताऊ बिशना अपने भतीजे माघी१ को युगों पुरानी एक बात सुना रहा था।
–देवताओं और असुरों ने सागर-मंथन किया तो चौदह रत्न निकले। इनमें एक अमृत कुंभ भी था। यह असुर लेकर भाग गए। देवता सहायता के लिए पहले ब्रह्मा जी के पास पहुँचे, परंतु उन्होंने विष्णु जी के पास भेज दिया। विष्णु जी सहायता के लिए मोहिनी रूप धारण कर जब असुरो के सामने आए तो असुर मंत्रमुग्ध हो बोले–हे सुंदरी, जो भी निर्णय तुम करो वही हमें स्वीकार होगा। मोहनी ने कहा–देखो, अमृत पर सभी का बराबर अधिकार है। सभी मिलकर पान करो।–असुर मान गए।
–परंतु मोहिनी पहले देवताओं को अमृत पान कराने लगी। तभी देवताओं की शक्ल का एक असुर, चोरी से उनकी पंक्ति में आकर बैठ गया–शायद उसे आभास था कि मोहिनी असुरों को धोखा देगी। जब मोहिनी उसे भी अमृत पान कराने लगी तो असुर के दायें बायें बैठे चाँद, सूरज देवताओं ने उसे पहचान लिया। वे चिल्लाकर बोले–यह तो असुर है। मोहिनी-रूप विष्णु ने सुनते ही खंडे से असुर के दो टुकड़े कर दिए। परंतु अमृत-पान के कारण असुर के दोनों रूप अमर हो चुके थे। इसलिए विष्णु ने उन्हें शाप देकर आकाश में स्थित कर दिया। वही दोनों रूप आज तक राहू केतु के नाम से आकाश में स्थित हैं।
–परन्तु दूसरे असुरों का क्या हुआ ताऊ? इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ यहाँ देखें।
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