इतिहास और राजनीति >> भारत गांधी के बाद भारत गांधी के बादरामचंद्र गुहा
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‘भारत : गांधी के बाद’ एक व्यापक शोध के बाद किए गए लेखन की नतीजा है जिसे रामचंद्र गुहा ने अपनी मखमली भाषा में रोचक तरीके से लिखा है।
द इकोनॉमिस्ट, वॉल स्ट्रीट जरनल, वाशिंग्टन पोस्ट, सेन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल, टाइम आउट और आउटलुक ने इसे ‘बुक ऑफ द ईयर’ के ख़िताब से नवाज़ा है।
आजाद भारत का जन्म अभावों और गृहयुद्ध जैसे हालातों के बीच हुआ था। यहाँ के लोग जाति, वर्ग, भाषा और धर्म जैसे मुद्दों पर आपस में बंटे हुए थे। इसके बावजूद बीते दशकों में यह देश एक एकीकृत और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने अपनी धमाकेदार मौजूदगी दर्ज करने में कामयाब रहा है। रामचंद्र गुहा ने बड़े ही रोचक तरीके से उन प्रबल विरोधों और संघर्षों की कहानी लिखी है, जिनसे आज़ाद भारत का इतिहास विचारोत्तेजक बन गया है। साथ ही, लेखक ने संगत तरीके से विनाश के उन भविष्यवेत्ताओं को भी ग़लत ठहराया है, जिन्होंने भारत की विविधता और ग़रीबी की वजह से यह भविष्यवाणी की थी कि देश बहुत जल्दी बिखर जाएगा या किसी तानाशाह के चंगुल में फंस जाएगा।
गुहा ने जहां उन कद्दावर ‘प्रांतीय’ नेताओं के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला है जिनके प्रांत का आकार किसी बड़े यूरोपीय देश से छोटा नहीं था, वहीं दूसरे लोगों को भी बराबर की तवज्जो दी है। उन्होंने इतिहास में अब तक उपेक्षित (लेकिन उतने ही महत्त्वपूर्ण) रहे भारतीयों मसलन किसानों, आदिवासियों, महिलाओं, श्रमिकों और संगीतकारों के बारे में भी उतनी ही संवेदनशीलता के साथ लिखा है।
‘रामचंद्र गुहा एक उल्लेखनीय इतिहासकार हैं, जिनके संतुलित दृष्टिकोण, रोचक लेखनशैली और बेमिसाल शोध ने आधुनिक भारत की प्रगति और बदलावों का एक शानदार लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है।’
आजाद भारत का जन्म अभावों और गृहयुद्ध जैसे हालातों के बीच हुआ था। यहाँ के लोग जाति, वर्ग, भाषा और धर्म जैसे मुद्दों पर आपस में बंटे हुए थे। इसके बावजूद बीते दशकों में यह देश एक एकीकृत और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने अपनी धमाकेदार मौजूदगी दर्ज करने में कामयाब रहा है। रामचंद्र गुहा ने बड़े ही रोचक तरीके से उन प्रबल विरोधों और संघर्षों की कहानी लिखी है, जिनसे आज़ाद भारत का इतिहास विचारोत्तेजक बन गया है। साथ ही, लेखक ने संगत तरीके से विनाश के उन भविष्यवेत्ताओं को भी ग़लत ठहराया है, जिन्होंने भारत की विविधता और ग़रीबी की वजह से यह भविष्यवाणी की थी कि देश बहुत जल्दी बिखर जाएगा या किसी तानाशाह के चंगुल में फंस जाएगा।
गुहा ने जहां उन कद्दावर ‘प्रांतीय’ नेताओं के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला है जिनके प्रांत का आकार किसी बड़े यूरोपीय देश से छोटा नहीं था, वहीं दूसरे लोगों को भी बराबर की तवज्जो दी है। उन्होंने इतिहास में अब तक उपेक्षित (लेकिन उतने ही महत्त्वपूर्ण) रहे भारतीयों मसलन किसानों, आदिवासियों, महिलाओं, श्रमिकों और संगीतकारों के बारे में भी उतनी ही संवेदनशीलता के साथ लिखा है।
‘रामचंद्र गुहा एक उल्लेखनीय इतिहासकार हैं, जिनके संतुलित दृष्टिकोण, रोचक लेखनशैली और बेमिसाल शोध ने आधुनिक भारत की प्रगति और बदलावों का एक शानदार लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है।’
-डेविड गिलमोर, कर्ज़न इम्पीरियल स्टेट्समैन के लेखक
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