गजलें और शायरी >> फैज़ की शायरी फैज़ की शायरीएम. एम. प्रसाद सिंह, चंचल चौहान
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फैज़ की शायरी
फैज की शायरी : एक जुदा अंदाज का जादू
बीसवीं सदी के विश्व-कवियों में पाब्लो नेरुदा, नाजिम हिकमत, ब्रेख्त और महमूद दरवेश के साथ फै़ज़ अहमद फै़ज़ का नाम अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है । हिंदुस्तान-पाकिस्तान और बांग्लादेश अर्थात् इस महाद्वीप के कवियों में रवीन्द्रनाथ टैगोर और इकबाल के बाद फै़ज़ को ही हम लोग याद करते हैं।
फै़ज़ आज़ादी, समाजवाद, सहज मानवीय ममता और गहरी प्रेमानुभूति के शायर के रूप में मशहूर रहे हें । उनकी ग़ज़लें और नज़्में लोगों की स्मृतियों में बस गई हैं और उनकी जुबान पर चढ़ी हुई हैं । फै़ज़ की शायरी आम लोगों की मुसीबतों, संघर्षो और अदूट संकल्पों की ऐसी गाथा है जिसे उर्दू ही नहीं, हिंदी के पाठक भी अपनी साहित्यिक विरासत का हिस्सा मानते हैं।
फै़ज़ के कलमकार और शायर के सम्पूर्ण रचनाकर्म पर हिंदी में यह पहली आलोचनात्मक पुस्तक है । इस किताब में उनके समकालीन मुल्कराज आनंद, सिब्ते हसन, सज्जाद ज़हीर, वज़ीर आगा के लेख तो हैं ही, उनके अलावा उर्दू के बड़े लेखकों में मुहम्मद हसन, शमीम हनफ़ी, अली मुहम्मद सिद्दीकी, जुबैर रज़वी, शमीम फै़ज़ी और अली अहमद फ़ातमी की आलोचनात्मक कृतियां इस पुस्तक में संकलित कर ली गई है।
इस किताब की दूसरी बड़ी खुबी यह है कि शमशेर बहादुर सिंह के बाद इसमें हिंदी के अनेक महत्वपूर्ण रचनाकारों ने जन्मशताब्दी वर्ष में फै़ज़ पर पहली बार लिखा है । मसलन केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी, असग़र वजाहत, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, मनमोहन, असद ज़ैदी, कृष्ण कल्पित, अरुण कमल, प्रणय कृष्ण, वैभव सिंह के लेखों के साथ तीनों संपादकों की अलग-अलग ढंग से लिखी आलोचनात्मक कृतियां इस किताब का विशेष आकर्षण हैं।
दृश्य-श्रव्य कलाओं के मर्मज्ञ सुहैल हाशमी, इतिहासकार ज़हूर सिद्दीक़ी, युवा लेखिका अर्जुमंद आरा और पंजाबी के मशहूर लेखक सतिंदर सिंह नूर के लेखों के कारण इस किताब में अनेक अनछुए प्रसंगों पर भी भरपूर चर्चा की गई है।
इस पुस्तक को छह लेखकों-विद्धानों की टोली ने भरपूर मेहनत के साथ तैयार किया है । इनमें तीन संपादक हैं जिन्हें रेखा अवस्थी, जवरी मल्ल पारख और संजीव कुमार जैसे सहयोगी संपादकों के कठिन अध्यवसाय और परिश्रम की सहायता मिलती रही है । हिंदू-उर्दू और पंजाबी भाषी लोग इस पुस्तक को अवश्य ही पसंद करेंगे।
फै़ज़ आज़ादी, समाजवाद, सहज मानवीय ममता और गहरी प्रेमानुभूति के शायर के रूप में मशहूर रहे हें । उनकी ग़ज़लें और नज़्में लोगों की स्मृतियों में बस गई हैं और उनकी जुबान पर चढ़ी हुई हैं । फै़ज़ की शायरी आम लोगों की मुसीबतों, संघर्षो और अदूट संकल्पों की ऐसी गाथा है जिसे उर्दू ही नहीं, हिंदी के पाठक भी अपनी साहित्यिक विरासत का हिस्सा मानते हैं।
फै़ज़ के कलमकार और शायर के सम्पूर्ण रचनाकर्म पर हिंदी में यह पहली आलोचनात्मक पुस्तक है । इस किताब में उनके समकालीन मुल्कराज आनंद, सिब्ते हसन, सज्जाद ज़हीर, वज़ीर आगा के लेख तो हैं ही, उनके अलावा उर्दू के बड़े लेखकों में मुहम्मद हसन, शमीम हनफ़ी, अली मुहम्मद सिद्दीकी, जुबैर रज़वी, शमीम फै़ज़ी और अली अहमद फ़ातमी की आलोचनात्मक कृतियां इस पुस्तक में संकलित कर ली गई है।
इस किताब की दूसरी बड़ी खुबी यह है कि शमशेर बहादुर सिंह के बाद इसमें हिंदी के अनेक महत्वपूर्ण रचनाकारों ने जन्मशताब्दी वर्ष में फै़ज़ पर पहली बार लिखा है । मसलन केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी, असग़र वजाहत, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, मनमोहन, असद ज़ैदी, कृष्ण कल्पित, अरुण कमल, प्रणय कृष्ण, वैभव सिंह के लेखों के साथ तीनों संपादकों की अलग-अलग ढंग से लिखी आलोचनात्मक कृतियां इस किताब का विशेष आकर्षण हैं।
दृश्य-श्रव्य कलाओं के मर्मज्ञ सुहैल हाशमी, इतिहासकार ज़हूर सिद्दीक़ी, युवा लेखिका अर्जुमंद आरा और पंजाबी के मशहूर लेखक सतिंदर सिंह नूर के लेखों के कारण इस किताब में अनेक अनछुए प्रसंगों पर भी भरपूर चर्चा की गई है।
इस पुस्तक को छह लेखकों-विद्धानों की टोली ने भरपूर मेहनत के साथ तैयार किया है । इनमें तीन संपादक हैं जिन्हें रेखा अवस्थी, जवरी मल्ल पारख और संजीव कुमार जैसे सहयोगी संपादकों के कठिन अध्यवसाय और परिश्रम की सहायता मिलती रही है । हिंदू-उर्दू और पंजाबी भाषी लोग इस पुस्तक को अवश्य ही पसंद करेंगे।
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