गजलें और शायरी >> गुले नगमा गुले नगमाफिराक गोरखपुरी
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‘गुले-नगमा’ की कविताओं में भारतीय आत्मा की धड़कने गूँजती सुनाई देती हैं और उनका संगीत भारत की आत्मा का रंगारंग दर्शन कराता है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘फिराक’ साहब ने उर्दू शायरी को एक बिलकुल नया आशिक दिया है और उसी तरह बिलकुल नया माशूक भी। इस नये आशिक की एक बड़ी विषेशता यह है कि इसके भीतर एक ऐसी गम्भीरता पायी जाती है, जो उर्दू शायरी में पहले नजर नहीं आती थी।
‘फिराक’ साहब के काव्य में मानवता की वही आधारभूमि है और उसी स्तर की है जैसे मीर के यहाँ, परन्तु उसके साथ ही उनके काव्य में ऐसी तीव्र प्रबुद्धता है, जो उर्दू के किसी शायर से दब के नहीं रहती, चाहे ज्यादा ही हो। अतएव, उनके आशिक में एक तरफ तो आत्मनिष्ठ मानव की गम्भीरता है, दूसरी तरफ प्रबुद्ध मानव की गरिमा है।
भारत, भारत-प्रेम और परिवेश को लेकर उर्दू कविता में बहुत-कुछ कहा-लिखा गया है, लेकिन जाहिर है उनके स्वरों और ध्वनियों में भारतीयता और मानवता की वह झंकार नहीं सुनाई देती जो ‘फिराक’ की यहाँ मौजूद है। ‘गुले-नगमा’ की कविताएँ इस बात की ताजा मिसाल हैं कि कवि ने भारतीय संस्कृति की आत्मीयता, रहस्यमयता और व्तक्तित्व को अपनी कल्पना और आत्मा में समा लिया है। शायद यही वजह है कि ‘गुले-नगमा’ की कविताओं में भारतीय आत्मा की धड़कने गूँजती सुनाई देती हैं और उनका संगीत भारत की आत्मा का रंगारंग दर्शन कराता है।...
गुले-नगमा सन् 1961 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ तथा 1970 में भारतीय ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित है।
‘फिराक’ साहब के काव्य में मानवता की वही आधारभूमि है और उसी स्तर की है जैसे मीर के यहाँ, परन्तु उसके साथ ही उनके काव्य में ऐसी तीव्र प्रबुद्धता है, जो उर्दू के किसी शायर से दब के नहीं रहती, चाहे ज्यादा ही हो। अतएव, उनके आशिक में एक तरफ तो आत्मनिष्ठ मानव की गम्भीरता है, दूसरी तरफ प्रबुद्ध मानव की गरिमा है।
भारत, भारत-प्रेम और परिवेश को लेकर उर्दू कविता में बहुत-कुछ कहा-लिखा गया है, लेकिन जाहिर है उनके स्वरों और ध्वनियों में भारतीयता और मानवता की वह झंकार नहीं सुनाई देती जो ‘फिराक’ की यहाँ मौजूद है। ‘गुले-नगमा’ की कविताएँ इस बात की ताजा मिसाल हैं कि कवि ने भारतीय संस्कृति की आत्मीयता, रहस्यमयता और व्तक्तित्व को अपनी कल्पना और आत्मा में समा लिया है। शायद यही वजह है कि ‘गुले-नगमा’ की कविताओं में भारतीय आत्मा की धड़कने गूँजती सुनाई देती हैं और उनका संगीत भारत की आत्मा का रंगारंग दर्शन कराता है।...
गुले-नगमा सन् 1961 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ तथा 1970 में भारतीय ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित है।
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